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बुलंद हुई भारत की आवाज

दुनिया के पांच बड़े देशों रूस, चीन, भारत, ब्राजील और दक्षिण अफ्रीका के संगठन ब्रिक्स ने अफगानिस्तान को लेकर ​चिंता जताई है।

दुनिया के पांच बड़े देशों रूस, चीन, भारत, ब्राजील और दक्षिण अफ्रीका के संगठन ब्रिक्स ने अफगानिस्तान को लेकर ​चिंता जताई है। ब्रिक्स की बैठक की अध्यक्षता करते हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भारत का स्टैंड दो टूक प्रस्तुत किया और आतंकवाद के खिलाफ एक कार्ययोजना का प्रस्ताव रखा। ब्रिक्स देशों ने इस कार्ययोजना पर मुहर भी लगा दी है। संयुक्त घोषणापत्र में यह बात कही गई है कि अफगानिस्तान आतंक की एक और  पनाहगाह न बने। बैठक में रूस के राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने अफगानिस्तान के हालात पर सीधे तौर पर जिक्र किया। आतंकवाद के खिलाफ साझा लड़ाई और वैश्विक स्तर पर और गहरे सहयोग की भी बात है। यह भी कहा गया कि अफगानिस्तान को नशा उत्पादकों के कारोबार का केन्द्र नहीं बनने दिया जाएगा। वहां अफगानी महिलाओं, बच्चों और अल्पसंख्यकों के मानवाधिकारों के लिए कदम उठाए जाएंगे। ​ब्रिक्स बैठक में जिस तरह से प्रधानमंत्री मोदी के कार्ययोजना पर सहमति की मुहर लगी है, उससे स्पष्ट है कि वैश्विक शक्तियां भारत की आवाज को नजरंदाज नहीं कर सकतीं। रूस के राष्ट्रपति ब्लादि​मीर पुतिन का रुख भारतीय भावनाओं के अनुकूल रहा। एक तरफ उन्होंने अफगानिस्तान के हालात के लिए अमेरिका को जिम्मेदार ठहराया तो दूसरी तरफ यह भी कहा कि वहां जो कुछ हो चुका है, उसे सुधारने के लिए अन्तर्राष्ट्रीय समुदाय को मिलकर प्रयास करने होंगे। चीन के राष्ट्रपति ने भी सहयोग पर सहमति जताई। मोदी सरकार ने दुनिया की दो शक्तियों रूस और अमेरिका के सामने अपनी बात खुलकर रख दी है। सरकार दोनों देशों के साथ स्वतंत्र रुख लेकर चल रही है। रूसी सिक्योरिटी काउंसिल के सचिव जनरल निकोलाई पत्रुशेव से राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल ने मुलाकात की थी। विदेश मंत्री एस. जयशंकर का लगातार अमेरिका से सम्पर्क बना हुआ है।
रूस हमारा गहरा मित्र रहा है और वह भारतीय भावनाओं को समझता है। आजादी के बाद से ही भारत के विकास में सोवियत संघ की बड़ी भूमिका रही है। जब भी भारत को जरूरत पड़ी, रूस हमारे साथ खड़ा रहा। भारत और रूस के संबंधों को उसी स्तर पर लाया जाना जरूरी है, जैसे पहले कभी थे और सोवियत संघ के विघटन के बाद वर्षों से विभिन्न कारणों से संबंध बाधित भी हुए थे। इसीलिए भारत मानता है कि रूस हमारा सभी मौसमोें का दोस्त है। रिश्तों में ठहराव के बावजूद रूस ने चीन से हमारी तनातनी के दौर में हमें सामरिक सहायता दी, जबकि चीन के साथ रूस के बड़े अच्छे संबंध हैं। एस 400 मिसाइल सिस्टम और कुछ अन्य उपकरणों की आपूर्ति पर चीन को भी ऐतराज था, पर रूस ने उस पर ध्यान ही नहीं दिया। अमेरिका ने भी बहुत दबाव बनाने की ​कोशिश की थी। पाबंदियां लगाने की चेतावनी भी दी गई थी, परन्तु भारत भी टस से मस नहीं हुआ। अब सवाल यह है कि अफगानिस्तान में भारत के हित कैसे सुरक्षित रहें। अफगानिस्तान का मसला काफी उलझा हुआ है क्योंकि रूस और चीन अपने-अपने हित साध रहे हैं। पाकिस्तान पूरी तरह से दहशतगर्द की भूमिका में है। 
अफगानिस्तान में मुसलमान ही मुसलमान को मार रहा है। पाकिस्तान भी मुस्लिम देश है, वह हालात को सुलगा रहा है। तालिबान की टेकर कैबिनेट बन चुकी है। यह कैबिनेट पाकिस्तान के हस्तक्षेप से बनी है। अफगानिस्तान में जो घटनाक्रम जारी है, उससे एशिया क्षेत्र सर्वाधिक प्रभावित होगा। इसमें कोई संदेह नहीं कि आतंकी हमले की ‘टेकर कैबिनेट’ का मंसूबा होगा। कुछ मौलानाओं का प्रलाय सुनाई देने लगा है कि अफगानिस्तान को फतेह करने के बाद अब ताजिकिस्तान, उज्बेकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान और सऊदी अरब को फतेह करना है। रूस का भी मानना है कि अफगानिस्तान का आतंक भारत और रूस पहुंच सकता है। चीन को भी अपनी चिंताएं हैं। 
रूस ने भी नई तालिबान सरकार को मान्यता देने के संबंध में कुछ नहीं कहा है। रूस और चीन भी नहीं चाहेंगे कि एशिया में तनातनी और अस्थिरता का माहौल बने। भारत को चाहिए कि रूस को अफगानिस्तान के मामले में भरोसे में लिया जाए। भारत और रूस का सहयोग बढ़ेगा तो वह चीन को भी समझा सकता है। भारत सभी पहलों को समावेशी दृष्टि से देखता है कि रूस से भी हमारे संबंध अच्छे रहें और अमेरिका से भी। अगर अफगानिस्तान के मामले में दुनिया एकजुट नहीं हुई तो फिर भयंकर परिणाम होंगे। ​ब्रिक्स बैठक का संदेश तो सकारात्मक है, देखना होगा कि व्यावहारिक स्तर पर क्या किया जाता है। वैसे उम्मीद कम ही है कि तालिबान की टैरर कैबिनेट देश चला पाएगी, क्योंकि वहां भी बहुत से समूह आपस में उलझ गए हैं।
आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com

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