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कोरोना से भारत का युद्ध?

भारत का संघीय ढांचा राज्यों से लेकर केन्द्र तक लोक प्रतिनिधित्व के धागे से इस प्रकार बंधा हुआ है कि दोनों स्तर पर चुनी हुई सरकारें एक-दूसरे की पूरक के रूप में कार्य करते हुए जनता के प्रति जवाबदेही के नियम से आबद्ध रहती हैं।

भारत का संघीय ढांचा राज्यों से लेकर केन्द्र तक लोक प्रतिनिधित्व के धागे से इस प्रकार बंधा हुआ है कि दोनों स्तर पर चुनी हुई सरकारें एक-दूसरे की पूरक के रूप में कार्य करते हुए जनता के प्रति जवाबदेही के नियम से आबद्ध रहती हैं। इसलिए यह बेवजह नहीं है कि भारत की संसद द्वारा बनाये गये कानूनों को राज्य अपने क्षेत्र में लागू करने को स्वतन्त्र रहते हैं बशर्ते वे केन्द्रीय सूची से न हों। हमारे संविधान निर्माताओं ने केन्द्र व राज्यों के अन्तर्सम्बन्धों के बारे में लम्बी बहस की थी और अधिकार क्षेत्र के विषयों की त्रिस्तरीय सूची केन्द्र, राज्य व समवर्ती बनाई थी जिससे हर परिस्थिति में जनता के चुने हुए प्रतिनिधि आपस में बिना किसी द्वेष या कलह के सहयोग व सलाह-मशविरा करते हुए जन अपेक्षाएं पूरी कर सकें। बेशक किसी भी राष्ट्रीय आपदा के समय भारत की स्वयंभू सरकार सर्वशक्तिमान स्वरूप में राज्यों के अधिकार समाहित करने को स्वतन्त्र रहेगी।
2005 में ‘राष्ट्रीय आपदा प्रबन्धन  कानून’ बना कर केन्द्र ने सभी प्रदेशों के लोगों को अचानक आयी मुसीबत से छुटकारा दिलाने के उद्देश्य को लक्ष्य बनाया। कोरोना वायरस को महामारी करार देने के साथ ही इस कानून के तहत मोदी सरकार ने राष्ट्रीय स्तर पर लाॅकडाऊन की घोषणा की थी। यह घोषणा हर राज्य में कोरोना से निजात पाने की गरज से की गई थी परन्तु राज्य सरकारों को भी यह हक पहले से ही था कि वे अपने लिहाज से इससे छुटकारा पाने के लिए आवश्यक कदम उठायें। इसी वजह से पं. बंगाल से लेकर पंजाब व राजस्थान की राज्य सरकारों ने कोरोना के प्रकोप को देखते हुए 25 मार्च से पहले  ही अपने-अपने इलाको में लाॅकडाऊन जैसे हालात बना दिये थे। यह भारत के राज्यों के संघ (यूनियन आफ इंडिया) होने का एेसा प्रमाण था जिसमें लोगों द्वारा चुनी गई प्रादेशिक सरकारें अपने लोगों की सुरक्षा के उपाय कर रही थीं परन्तु आम लोगों द्वारा ही चुनी गई केन्द्र की सरकार ने कोरोना की भयावहता का राष्ट्रीय स्तर पर संज्ञान लिया तो इसे ‘राष्ट्रीय आपदा’ घोषित कर दिया और राज्य सरकारों के प्रयासों में अपने सक्रिय योगदान का एेलान कर दिया परन्तु प. बगाल की तृणमूल कांग्रेस की ममता दीदी की राज्य सरकार और केन्द्र की भाजपा सरकार के बीत कोरोना को रोकने के उपायों को लेकर जो विवाद और लागडांट पिछले कई सप्ताहों से परोक्ष व प्रत्यक्ष रूप से चल रही है उससे कोरोना के खिलाफ युद्ध किसी राजनैतिक लड़ाई का रूप लेता जा रहा है।
यह वातावरण दीवार पर लिखी हुई यह इबारत साफ पढ़ रहा है कि इसका परिणाम अन्ततः प. बंगाल की आम जनता को ही भुगतना होगा और यकीनी तौर पर प. बंगाल की प्रबुद्ध और सजग जनता इस तरह के विवाद को किसी भी सूरत में लोक हित में नहीं लेगी। पं. बंगाल समेत दूसरे चार राज्यों के कुछ चुनिन्दा स्थानों पर केन्द्र द्वारा भेजे गये ‘अन्तर्विभागीय दल’ का स्वागत ममता दीदी ने करने से इन्कार कर दिया है और इसे संघीय ढांचे के शिष्टाचार के विरुद्ध बताया है। हकीकत यह है कि केन्द्र आपदा प्रबन्धन कानून के तहत एेसी टीमें अपने चुनीन्दा स्थानों पर भेज सकता है। इसमें कोई दो राय नहीं है कि ममता दीदी की सरकार कोरोना के खिलाफ उसी तरह लड़ रही है जिस तरह अन्य राज्यों की सरकारें लड़ रही हैं परन्तु उनके काम करने का ढंग जाहिर तौर पर वह नहीं है जो दूसरे राज्यों के मुख्यमन्त्रियोंं का है मगर इसका मतलब यह कतई नहीं है कि राज्य की भाजपा इकाई के अध्यक्ष दिलीप घोष उनकी कार्य प्रणाली को दलगत घेरे में ले आयें और बजाय कोरोना से लड़ने के तृणमूल कांग्रेस से लड़ने लगें। अपनी पार्टी के राजनैतिक हितों को देखना उनका फर्ज हो सकता है मगर उससे पहले उन्हें प. बंगाल की जनता के हितों का ध्यान रखना होगा। लाॅकडाऊन के पूरा होने के समय तक सभी राजनैतिक मतभेद उन्हें अपने दफ्तर में बिछी दरियों के नीचे दबा कर रखने चाहिए और तृणमूल कांग्रेस के नेताओं को भी राजनीतिक प्रतियोगिता से बचना चाहिए।
यह समझ में आना चाहिए कि प. बंगाल की जनता इस प्रकार के विवाद से प्रभावित होने वाली जनता नहीं है। इसकी वजह यह है कि इस राज्य के लोग भारतीयता के तर्कपूर्ण पैमाने की भाषा को गढ़ना और समझना जानते हैं। ममता दीदी जमीन पर जो कुछ भी कर रही हैं वह सब इस प्रदेश की जनता के सामने है। कोरोना से युद्ध लड़ने में यदि वह किसी प्रकार की भी कोताही करती हैं तो इस राज्य की जनता उन्हें कभी माफ नहीं कर सकती। अतः उनकी कमियों को राजनैतिक चोगा पहन कर नहीं बल्कि लोकहित का बाना धारण करके बताया जाना चाहिए। जरूरी यह है कि यदि ममता दीदी की तरफ से किसी प्रकार की अनदेखी हो रही है तो उस तरफ उनका ध्यान केन्द्रीय स्वास्थ्य मन्त्री डा. हर्षवर्धन दिलाएं न कि प्रदेश भाजपा के अध्यक्ष क्योंकि कोरोना से लड़ने के लिए हर स्तर पर सरकारों को ही कदम उठाने हैं।
दूसरी तरफ ममता दीदी को भी केन्द्रीय दल को वह सहयोग देना चाहिए जिसकी दरकार राष्ट्रीय आपदा प्रबन्धन अधिनियम के तहत की जाती है। कोरोना पर विजय प्राप्त करना ही इस समय लक्ष्य है और इस लक्ष्य से भटकने का अर्थ आम जनता के स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ ही माना जायेगा लेकिन इस राज्य के राज्यपाल महामहिम जगदीप धनखड़ भी महान हैं कि हर विवाद में अपनी टांग अड़ा देते हैं। राज्यपाल कोई चुना हुआ व्यक्ति नहीं बल्कि राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त उनका प्रतिनिनिधि होता है जिसका कार्यकाल उनकी प्रसन्नता पर निर्भर करता है मगर हुजूर हैं कि हर मौके पर अपनी प्रसन्नता का ही ख्याल रखते हैं। आवश्यक है कि कोरोना के खिलाफ लड़ाई संयुक्त रूप से गहन सहयोग के साथ हो जिसमें यह पता ही न लग पाये कि कौन सी सरकार किस पार्टी की है। बस यह आभास हो कि भारत कोरोना से युद्ध लड़ रहा है।
आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com

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