भारत : इजराइल का कड़ा विरोध

भारत : इजराइल का कड़ा विरोध
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इजराइल-फिलिस्तीन युद्ध को चलते एक वर्ष से ऊपर बीत चुका है और बजाये इस युद्ध के सीमित होने के इसका विस्तार ईरान व लेबनान और यमन की तरफ हो रहा है। यह युद्ध पूरे पश्चिम एशिया की शान्ति के लिए ही खतरा नहीं है बल्कि विश्व शान्ति के लिए भी बहुत बड़ी चुनौती है। होना तो यह चाहिए था कि विश्व के सभी देशों को मिलकर इस युद्ध को शान्त करने के गंभीर प्रयास करने चाहिए थे मगर इसके उलट हो यह रहा है कि विश्व के कुछ शक्तिशाली कहे जाने वाले देश स्वयं इस युद्ध में किसी न किसी पक्ष के साथ दिखाई पड़ रहे हैं। भारत का रुख फिलिस्तीन के मामले में बहुत साफ रहा है और यह मानता है कि अरब की इस धरती पर पहला हक फिलिस्तीनियों का उसी तरह है जिस तरह फ्रांस की धरती पर फ्रांसीसियों का और ब्रिटेन की धरती पर अंग्रेजों का। परन्तु 1947 के करीब नवगठित राष्ट्रसंघ ने दो नये देशों पाकिस्तान और इजराइल के अस्तित्व की घोषणा की। इजराइल को फिलिस्तीनियों की धरती पर ही बसाया गया और इसे एेसा यहूदी देश घोषित किया गया जहां दुनियाभर केे यहूदी आकर बस सकें क्योंकि पूरी दुनिया में यहूदियों का अपना कोई मुल्क नहीं था। पश्चिमी देशों व अमेरिका की हिमायत पर यह काम हुआ।
ध्यान देने वाली बात यह है कि पाकिस्तान के निर्माण में जहां ब्रिटेन व अन्य पश्चिमी देशों की हामी थी वहीं अमेरिका इसका शुरू में पक्षधर नहीं था। परन्तु बाद में द्वितीय विश्व युद्ध के बाद उसने भी पश्चिमी देशों की हां में हां मिलाना बेहतर समझा लेकिन इजराइल के अस्तित्व में आने के बाद यह देश लगातार फिलिस्तीनी भूमि पर अतिक्रमण करके अपना विस्तार करता रहा और इस मामले में उसने क्षेत्र के सभी अरब देशों से डटकर मुकाबला भी किया। 1948 के बाद से अब तक फिलिस्तीन व इजराइल के बीच हुए चार युद्धों के बाद इजराइल का विस्तार होता रहा और फिलिस्तीन सिकुड़ता रहा। इस स्थिति के चलते फिलिस्तीन में लड़ाकू संगठनों का जन्म हुआ जिन्हें अमेरिका आतंकवादी संगठन बताता है। इन्हीं में से एक 'हमास' संगठन ने पिछले वर्ष 7 अक्तूबर को इजराइल के ढाई सौ से अधिक नागरिकों का अपहरण किया और इजराइल में नृशंस हत्याकांड भी किया। इसी के बाद से इजराइली फौजों ने हमास के खिलाफ जंग का एेलान किया। इस जंग में अब तक 44 हजार से अधिक नागरिकों की मृत्यु हो चुकी है जिनमें फिलिस्तीनी औरतों व बच्चों की संख्या सर्वाधिक है।
हमास के समर्थन में पड़ोसी देश लेबनान में सक्रिय दूसरे लड़ाकू संगठन हिजबुल्लाह ने अभियान चलाया जिसका माकूल जवाब इजराइल की ओर से दिया गया। इसी प्रकार दूसरे निकट के अरब देश यमन में सक्रिय लड़ाकू संगठन हूती की तरफ से भी इजराइल पर हमला किया गया और इजराइली फौजों ने इसका भी जबर्दस्त जवाब दिया। परन्तु ईरान की सहानुभूति हिजबुल्लाह के साथ समझी जाती है जिसके सरपराह को इजराइल ने ईरान की धरती पर ही हलाक किया, जिसकी वजह से ईरान भी इस युद्ध में शामिल हो गया। अब हिजबुल्लाह और इजराइल में भयंकर युद्ध हो रहा है। एक तरफ हिजबुल्लाह इजराइल को निशाने पर रखकर हमले कर रहा है तो दूसरी तरफ इजराइल उसका जवाब दे रहा है और इस संघर्ष में युद्ध के वे सभी नियम तार-तार हो रहे हैं जिन्हें आम जनता की सुरक्षार्थ बनाया जाता है। इजराइल की सीमा कई अरब देशों से लगी हुई है जिनमें लेबनान भी एक है। इजराइल-लेबनान सीमा पर शान्ति बनाये रखने के लिए राष्ट्रसंघ की शान्ति सेना तैनात है जिसमें भारत की फौजों के सिपाही भी शामिल हैं। कुल 34 देश एेसे हैं जिनके राष्ट्रसंघ शान्ति सेना में सिपाही शामिल हैं। भारत का इसमें दूसरा सबसे बड़ा दस्ता है जिसमें 900 सिपाही शामिल हैं।
इजराइल की फौजों ने लेबनान को निशाना बनाते वक्त इस शान्ति सेना की चौकियों पर भी हमला बोल दिया क्योंकि इजराइल कह रहा था कि हिजबुल्लाह के लड़ाके इन चौकियों की आड़ लेकर उस पर गोला-बारूद बरसा रहे हैं। इजराइली हमले में श्रीलंका के शान्ति सेना में शामिल दो जवान गंभीर रूप से घायल हो गये। जिसका कड़ा विरोध सभी 34 देशों ने किया है और भारत ने भी इसमें अपनी शिरकत को जग-जाहिर किया है। जब से इजराइल व हमास के बीच युद्ध चल रहा है तब से भारत का रुख यह रहा है कि वह बातचीत द्वारा समस्या का हल चाहता है और इजराइल के विरोध से भी बचता रहता है। मगर पहली बार भारत ने इजराइल का स्पष्ट रूप से विरोध करके साफ कर दिया है कि वह इजराइल की मनमानी का समर्थन भी किसी तौर पर नहीं कर सकता। इन सभी 34 देशों की ओर से जारी वक्तव्य पर भारत ने भी हस्ताक्षर किये हैं जिसमें इजराइल की निन्दा की गई है।
बेशक भारत के इजराइल के साथ भी दोस्ताना सम्बन्ध हैं मगर वह उसके अन्तर्राष्ट्रीय नियामकों को तोड़ने वाले किसी भी कदम का समर्थन नहीं कर सकता। वैसे तो फिलिस्तीन में इजराइल जो कुछ भी कर रहा है वह मानवीयता के विरुद्ध ही कहा जायेगा क्योंकि उसने पूरी गाजा पट्टी के क्षेत्र को ही रणस्थली में बदल दिया है और नागरिकों को दर-बदर कर दिया है। परन्तु लेबनान में तैनात शान्ति सैनिकों पर भी हमला करके इजराइल ने अपना किसी नियम-कायदे को न मानने वाले देश के रूप में परिचय दिया है, जिसे किसी सूरत में भी स्वीकार नहीं किया जा सकता।

आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com

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