कोराेना महामारी के दौरान जब आयात-निर्यात ठप्प होकर रह गया था तो सेमीकंडक्टर चिप्स की सप्लाई प्रभावित होने से भारत में व्यापक स्तर पर उत्पादन प्रभावित हुआ। भारत ही नहीं अमेरिका जैसी वैश्विक शक्तियां भी प्रभावित हुईं। तब भारत ने सेमीकंडक्टर निर्माण की दिशा में कदम बढ़ाए।
भारत 2021 में "भारत सेमीकंडक्टर मिशन" लेकर आया, जिससे भारत को सेमीकंडक्टर हब बनाने की उम्मीद है। इसके लिए देश में उत्पादन को सुविधाजनक बनाने के लिए एक उपयुक्त पारिस्थितिकी तंत्र प्रदान करने की आवश्यकता है। इसमें विश्वसनीय बिजली, जल संसाधन, परिवहन नेटवर्क और दूरसंचार जैसे पर्याप्त बुनियादी ढांचे, इंजीनियरिंग, सामग्री विज्ञान और इलेक्ट्रॉनिक्स में विशेषज्ञता जैसी कुशल जनशक्ति, प्रमुख ग्राहकों से निकटता, आपूर्ति शृंखला और लक्ष्य बाजार, लीड समय और शिपिंग जोखिम और सबसे महत्वपूर्ण भौगोलिक शामिल हैं। पीएम मोदी ने दिसंबर 2021 में एक गंभीर चर्चा शुरू की और चिप और डिस्प्ले निर्माण के लिए 76,000 करोड़ रुपये की उत्पादन-लिंक्ड प्रोत्साहन (पीएलआई) योजना लेकर आई।
चिप्स निर्माण अपने आप में जटिल प्रक्रिया है क्योंकि यह पूरी तरह से तकनीकी पर आधारित है। चिप का उत्पादन एक अत्यधिक सटीक और महंगी प्रक्रिया है जिसमें कई जटिल चरण शामिल होते हैं। यहां तक कि बिजली की आपूर्ति में थोड़ी-सी बाधा भी भारी नुक्सान करा सकती है। बहरहाल, भारत ने इस दिशा में शुरुआत करके अच्छा काम किया है और इस क्षेत्र की सफलता के लिए सरकारी संरक्षण और निजी क्षेत्र के निवेश, दोनों की आवश्यकता होगी। चिप्स उत्पादन में चीन, ताइवान, कोरिया आदि जैसे पूर्वी एशियाई दिग्गजों का एकाधिकार रहा है। वैश्विक सप्लाई चेन को टूटने से बचने के लिए विविधिकरण की आवश्यकता थी। हालांकि भारत सेमीकंडक्टर चिप्स डिजाइन में वैश्विक नेता है लेकिन वर्तमान में यह लगभग 100 प्रतिशत सेमीकंडक्टर आयात करता है।
इलेक्ट्रॉनिक्स विभाग द्वारा जारी एक आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार भारत का सेमीकंडक्टर चिप्स का कुल आयात 2020-21 में 67,497 करोड़ रुपये से बढ़कर 2022-23 में 129,703 करोड़ रुपये हो गया है। इसके अतिरिक्त, 2022-23 में चीन से आयात 24,604 करोड़ रुपये से बढ़कर 37,681 करोड़ रुपये हो गया। भारतीय सेमीकंडक्टर उद्योग 2026 तक 55 बिलियन डॉलर तक पहुंचने का अनुमान है। इसी महीने 13 मार्च को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तीन बहुत ही महत्वपूर्ण सेमीकंडक्टर परियोजनाओं की आधारशिला रखी। गुजरात में धोलेरा विशेष निवेश क्षेत्र (डीएसआईआर) में सेमीकंडक्टर निर्माण सुविधा और मोरीगांव में आउटसोर्स सेमीकंडक्टर असेंबली और टेस्ट (ओएसएटी) सुविधाएं असम में और साणंद गुजरात में। सेमीकंडक्टर फैब्रिकेशन यूनिट की स्थापना पावरचिप सेमीकंडक्टर मैन्युफैक्चरिंग कॉर्पोरेशन, ताइवान के साथ साझेदारी में की जा रही है।
चिप बनाने वाली अमेरिकी कंपनी माइक्रॉन द्वारा पिछले साल गुजरात में अपने पहले सेमीकंडक्टर संयंत्र के निर्माण की नींव रखने के बाद भारत ने अपनी सेमीकंडक्टर महत्वाकांक्षाओं को बढ़ा दिया है। हाल में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने करीब 1.26 लाख करोड़ रुपये के निवेश वाली तीन और सेमीकंडक्टर इकाइयों की स्थापना को मंजूरी दी जिनमें भारत का पहला सेमीकंडक्टर फैब्रिकेशन संयंत्र शामिल होगा। टाटा इलेक्ट्रॉनिक्स प्राइवेट लिमिटेड ताइवान की पावरचिप सेमीकंडक्टर मैन्युफैक्चरिंग कॉर्प के साथ साझेदारी में गुजरात के धोलेरा में एक सेमीकंडक्टर फैब की स्थापना करेगी। इसके अलावा असम के मोरीगांव और गुजरात के साणंद में दो सेमीकंडक्टर एटीएमपी (असेंबली, टेस्टिंग, मार्किंग और पैकेजिंग) इकाइयों की स्थापना की जाएगी। यह भारत की सेमीकंडक्टर संभावनाओं के लिहाज से एक बड़ी छलांग है, यह देखते हुए कि वैश्विक कंपनियों को यहां कारखाने लगाने के लिए प्रोत्साहित करने के सरकारों के प्रयास के बावजूद देश कई दशकों तक अवसर से वंचित रहा।
इस ऐलान से पहले दुनिया में चिप की भारी तंगी देखने को मिली थी। इसके अलावा, जैसे-जैसे भू-राजनीतिक तनाव बढ़ रहा है घरेलू इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण को आर्थिक वृद्धि के संभावित वाहक के रूप में देखा जा रहा है। यह अनुमान लगाना बहुत कठिन नहीं है कि मुख्य भूमिका चीन और ताइवान के बीच की दुश्मनी किस तरह से सेमीकंडक्टर चिप के उत्पादन को गहराई से प्रभावित कर सकती है।
कई और देश भी अपने यहां चिप विनिर्माण कारखाने शुरू करने की कोशिश में लगे हैं, इनमें मलेशिया और वियतनाम जैसे विकासशील देश भी शामिल हैं। अमेरिका और यूरोपीय संघ जैसे देशों-क्षेत्रों में नई दिल्ली से ज्यादा आकर्षक प्रोत्साहन योजनाएं पेश की गई हैं। ऐसे में भारत को बहुत उच्च गुणवत्ता वाली चिप का निर्माण शुरू करने से पहले इंतजार करना होगा। सेमीकंडक्टर उत्पादन में भारत की ऊंची छलांग से न केवल भारतीय उद्योगों को फायदा होगा बल्कि इससे काफी संख्या में भारतीयों को रोजगार भी मिलेगा। भारत को सेमीकंडक्टर निर्माण कम्पनियों में कुशल कारीगरों की जरूरत पड़ेगी और यह जरूरी है कि अनुभवी कारीगर भारत में ही तैयार किये जाएं। इसके लिए शिक्षण संस्थान में नए पाठ्यक्रम शामिल करने की भी जरूरत है। अतः इस क्षेत्र का भविष्य उज्ज्वल है और इस क्षेत्र में भारत की ऊंची छलांग भारत को विश्व की तीसरी बड़ी अर्थव्यवस्था बनाने में मददगार साबित होगी।