चुनौतियों के बावजूद भारतीय अर्थव्यवस्था तीव्र गति से आगे बढ़ रही है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी लगातार यह वायदा करते आ रहे हैं कि वह भारत को तीसरी बड़ी अर्थव्यवस्था बनाएंगे। वह पहले भी कह चुके हैं कि 2047 तक जब भारत आजादी के सौ वर्ष पूरे कर लेगा तो उस समय तक भारत की अर्थव्यवस्था को आत्मनिर्भर बनाना है। भारत को विकसित देश बनाने की महत्वकांक्षा रखना एक सकारात्मक सोच है और यह सम्भव भी है। क्योंकि भारत की प्रगति की चर्चा पूरी दुनिया में हो रही है। इस सदी के शुरूआती दशक में जब अमेरिका के होम लोन संकट से जन्मी आर्थिक मंदी ने सारी दुनिया को अपनी चपेट में ले लिया था तब भारत की आर्थिक मजबूती को दुनिया ने महसूस किया। कोरोना काल की चुनौती को भी भारत ने बहुत सूझबूझ से लिया। न केवल उसने खुद को सम्भाला बल्कि दुनिया भर के देशों को वैक्सीन और जरूरी सामान देकर सम्मान अर्जित किया।
अब भारतीय अर्थव्यवस्था दुनिया को संदेश दे रही है। बढ़ते वैश्विक जोखिमों के बीच भारतीय अर्थव्यवस्था ने इस वित्तीय वर्ष की पहली छमाही में काफी अच्छा प्रदर्शन किया है। आरबीआई गवर्नर ने पिछले सप्ताह कहा था कि पहली तिमाही में 7.8 प्रतिशत की मजबूत वृद्धि के बाद दूसरी तिमाही में आश्चर्यजनक वृद्धि हो सकती है। वैश्विक स्तर पर कमजोर विनिर्माण पीएमआई के विपरीत, विनिर्माण और सेवाओं के लिए क्रय प्रबंधक सूचकांक (पीएमआई) जैसे उच्च आवृत्ति डेटा मजबूत विस्तार क्षेत्र में बने हुए हैं। कर संग्रह मजबूत है, सार्वजनिक निवेश पर जोर जारी है और वित्तीय स्थितियां सहायक रही हैं। स्वस्थ निजी कॉर्पोरेट क्षेत्र की बैलेंस शीट और अच्छी पूंजी वाले बैंक भारत के लचीलेपन को बढ़ाते हैं।
अब तक घरेलू गति और ताकत ने दूसरी तिमाही में उच्च खाद्य मुद्रास्फीति और कमजोर निर्यात से उत्पन्न बाधाओं को दूर कर दिया है। खपत भी रुकी हुई है। शहरी भारत लगभग दो-तिहाई सेवा क्षेत्र गतिविधि के साथ यहां अग्रणी है। बैंक ऋण वृद्धि 15 प्रतिशत से अधिक मजबूत बनी हुई है, खुदरा ऋण वृद्धि 18 प्रतिशत से अधिक है जिससे खपत बढ़ रही है। खाद्य मुद्रास्फीति में अस्थायी उछाल के कारण जुलाई-सितंबर तिमाही में कुछ अस्थिरता पैदा करने वाली मुद्रास्फीति की स्थिति शांत हो गई है।
कुछ दीर्घकालिक एवं अल्पकालिक रुझानों को धत्ता बताते हुए 1.72 लाख करोड़ रुपये से थोड़ा ज्यादा के संग्रह के साथ सकल वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) राजस्व ने अक्तूबर माह में अपना दूसरा सबसे बड़ा मासिक आंकड़ा दर्ज किया। इन आंकड़ों के संदर्भ में पहली बात तो यह कि वे पिछले साल के संग्रह के मुकाबले 13.4 फीसदी की वृद्धि दर्शाते हैं जो 2023 में अब तक की सबसे ज्यादा वृद्धि है। इसके अलावा ये आंकड़े इस वित्तीय वर्ष की दूसरी तिमाही के दौरान अनुभव की गई राजस्व वृद्धि में लगातार गिरावट के रुझान को पलट देते हैं। अप्रैल से लेकर जून तक के दौरान हुई 11.5 फीसदी की औसत वृद्धि से नीचे लुढ़ककर, जीएसटी राजस्व में होने वाली वृद्धि जुलाई और सितंबर के बीच 10.6 फीसदी रह गई थी । इसमें से 10.2 फीसदी की 27 महीने की सबसे कम वृद्धि पिछले महीने देखी गई। वित्त मंत्रालय की उम्मीद होगी कि जीएसटी संग्रह के वृद्धि दर में यह तेजी बनी रहे ताकि उसके 2023-24 के राजकोषीय गणित को किसी भी संभावित खर्च या सब्सिडी संबंधी झटके से कुछ राहत मिल सके, चाहे वे झटके ईंधन या यूरिया की कीमतों जैसे बाहरी जोखिमों या मुफ्त खाद्यान्न कार्यक्रम के विस्तार जैसी चुनाव पूर्व सौगात सरीखे आंतरिक जोखिमों से पैदा हों। एक व्यापक समय सीमा में अगर देखा जाए तो पिछले महीने के मध्य वर्ष के अप्रत्यक्ष करों के संग्रह इस रुझान को झुठलाते हैं कि सबसे अधिक राजस्व अप्रैल में हासिल होता है क्योंकि उस महीने व्यवसाय जगत संबंधित वित्तीय वर्ष के लिए अपने खाते को बंद कर देते हैं। साल के अंत में होने वाले अनुपालनों ने इस साल अप्रैल के खजाने को बढ़ाकर रिकॉर्ड 1.87 लाख करोड़ रुपये तक पहुंचा दिया था।
नीति आयोग ने भारतीय अर्थव्यवस्था को लेकर एक दृष्टि पत्र तैयार किया है। दृष्टि पत्र के अनुसार 2047 तक भारत 29.02 लाख करोड़ की अर्थव्यवस्था बन सकता है। इसके लिए नीति आयोग ने योजनाओं का ब्यौरा भी तैयार किया है।
निश्चित तौर पर थोड़ा महत्वाकांक्षी लक्ष्य निर्धारित करने में कोई दिक्कत नहीं है। हकीकत यह है कि उनकी मदद से नीतिगत परिवर्तनों को सही दिशा में आगे ले जाने में मदद मिल सकती है। नीति आयोग जिस नीतिगत पथ पर चल रहा है और जिसके लिए वह अन्य सरकारी विभागों के साथ काम कर रहा है और शायद जिसके लिए वह स्वतंत्र और निजी क्षेत्र के अर्थशास्त्र विशेषज्ञों से भी मशविरा करेगा, उस नीति को देखना भी दिलचस्प होगा। इसके साथ ही भारत को लगातार आयात कम कर निर्यात बढ़ाना होगा और साथ ही दूरसंचार विनिर्माण और अन्य क्षेत्रों में निवेश बढ़ाना होगा।