इसमें कोई संदेह नहीं कि भारत में उच्च शिक्षा के अनेक संस्थान खुले हैं और इनकी संख्या में लगातार बढ़ौतरी भी हो रही है। 2014 तक लगभग 10-15 भारतीय विश्वविद्यालय क्यू.एस. और टाइम्स हायर एजुकेशन रैंकिंग में सूचीबद्ध थे। अब 2024 में 50 से अधिक भारतीय विश्वविद्यालय विश्व रैंकिंग में सूचीबद्ध हैं जो एक मजबूत और सक्रिय प्रणाली को दर्शाता है। 46 विश्वविद्यालयों के साथ भारतीय उच्च शिक्षा प्रणाली 2025 के लिए क्यू.एस. वलूड यूनिवूसटी रैंकिंग में 7वें और एशिया में तीसरे स्थान पर है तथा केवल 49 विश्वविद्यालयों के साथ जापान और 71 विश्वविद्यालयों के साथ चीन से पीछे है। 96 उच्च शिक्षण संस्थानों के साथ भारत टाइम्स हायर एजुकेशन इम्पेक्ट रैंकिंग 2024 में सबसे अधिक प्रतिनिधित्व वाला देश बन गया है। इसके बावजूद भारतीय छात्रों के विदेश में जाकर शिक्षा प्राप्त करने की ललक खत्म नहीं हो रही। भारतीय छात्रों के अभिभावक भी इस बात के िलए ललायिक रहते हैं कि उनके बच्चे विदेशों में उच्च शिक्षा प्राप्त कर अपना स्वर्णिम भविष्य तैयार करें।
पढ़ाई के लिए विदेश में छात्रों जाने के आंकड़ों से पता चलता है कि भारतीय शिक्षा प्रणाली किस संकट से जूझ रही है। विदेश में बेहतर अवसरों की तलाश में बड़ी संख्या में छात्र देश छोड़ रहे हैं। यह स्थिति सिर्फ़ एक झलक भर है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के लागू होने के तीन साल बाद यानी 2023 में 8.94 लाख (8,94,783) छात्र अपनी पढ़ाई के लिए विदेश चले गए। इसके अलावा इस साल 20 जुलाई तक 3.6 लाख (3,60,588) छात्र देश छोड़ चुके हैं और साल के अंत तक और भी छात्रों के देश छोड़ने की संभावना है क्योंकि दाख़िले का दौर फिर से शुरू हो रहा है।
संसद में उपलब्ध कराए गए आंकड़ों से पता चलता है कि कोविड-19 के वर्षों (2020 और 2021) को छोड़कर 2016 से ही शिक्षा के बेहतर अवसरों के लिए विदेश जाने वाले छात्रों की संख्या में लगातार वृद्धि हो रही है। हाल ही में राष्ट्रीय संस्थागत रैंकिंग फ्रेमवर्क (एनआईआरएफ) 2024 की घोषणा की गई, जिसमें भारत के विभिन्न शैक्षणिक संस्थानों की उत्कृष्टता और उपलब्धियों को प्रदर्शित किया गया। उम्मीद की जा सकती है कि उच्च शिक्षा की गुणवत्ता बढ़ाने में मूल्यांकन, मान्यता और रैंकिंग के लिए मजबूत और एकीकृत प्रणाली प्रमुख भूमिका निभाएगी। हालांकि जनसंख्या के अनुपात में उच्च शिक्षण संस्थानों की संख्या एवं गुणवत्ता की दृष्टि से भारत की स्थिति सुखद नहीं है।
एनआईआरएफ रैंकिंग राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) की भावना को गहराई से प्रतिबिंबित करती है। एनआईआरएफ विभिन्न मापदंडों के आधार पर देशभर के संस्थानों को रैंकिंग देने की एक पद्धति है। इस वर्ष सभी श्रेणियों में आईआईटी मद्रास ने लगातार छठे साल शीर्ष स्थान बरकरार रखा। दूसरे स्थान पर आईआईएससी बेंगलुरु और तीसरे स्थान पर आईआईटी बॉम्बे है। इंजीनियरिंग श्रेणी में आईआईटी मद्रास फिर से शीर्ष स्थान पर काबिज है। राष्ट्रीय स्तर पर रैकिंग तो अच्छी है लेकिन अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर हमारे शैक्षणिक संस्थान काफी पिछड़े हुए हैं। भारत का कोई भी शिक्षा संस्थान विश्व के चोटी के 200 संस्थानों में भी शामिल नहीं है। सेंटर फॉर वर्ल्ड यूनिवर्सिटी रैंकिंग (सीडब्ल्यूयूआर) के अनुसार भारतीय प्रबंधन संस्थान अहमदाबाद के नेतृत्व में भारत के 65 विश्वविद्यालय और संस्थान विश्व स्तर पर शीर्ष 2000 में शामिल हैं लेकिन देश अंतर्राष्ट्रीय मंच पर उच्च शिक्षा में अपनी प्रतिस्पर्धात्मकता खो रहा है। सीडब्ल्यूयूआर द्वारा जारी ग्लोबल 2000 सूची के 2024 संस्करण में 32 भारतीय संस्थान ऊपर चढ़े, जबकि 33 में गिरावट देखी गई।
देश का शीर्ष संस्थान आईआईएम-ए वैश्विक स्तर पर 410वें स्थान पर रहा, जबकि पिछले साल यह 419वें स्थान पर था। इसके बाद भारतीय विज्ञान संस्थान (501) और भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान बॉम्बे (568) का स्थान रहा। यह रैंकिंग चार कारकों पर 62 मिलियन परिणाम-आधारित डेटा बिंदुओं के विश्लेषण पर आधारित है- शिक्षा की गुणवत्ता, रोजगार योग्यता, संकाय की गुणवत्ता और अनुसंधान। भारत के शीर्ष 10 संस्थानों में से सात की रैंकिंग में गिरावट देखी गई। सवाल शिक्षा की गुणवत्ता का है। िपछड़ने का कारण भी यही है कि भारत के शिक्षण संस्थानों में शिक्षा की गुणवत्ता पर तब ज्यादा ध्यान नहीं दिया जाता है। शिक्षा का बाजार तो बहुत बड़ा है लेिकन इसका बाजारीकरण हो चुका है।
शिक्षा की गुणवत्ता बढ़ाकर और उसकी पहुंच सर्वसाधारण तक सुनिश्चित करके ही भारत में अंतर्निहित अपरिमित संसाधनों और भारतवासियों की असीम क्षमताओं का पूर्ण विकास संभव है। विकसित भारत के लक्ष्य को साकार करने के लिए शैक्षिक उत्कृष्टता का माहौल बनाना होगा। हमारी रैंकिंग व्यवस्था में एक मानदंड के रूप में कौशल को भी शामिल किया जाना चाहिए। साथ ही ढांचे में शिक्षा के अमूर्त पहलुओं को लाने के लिए तंत्र विकसित करना चाहिए। जब तक हम अपने शिक्षण संस्थानों को वैश्विक मानकों के अनुरूप नहीं बनाते तब तक न तो भारतीय छात्र और न ही विदेशी छात्र यहां पढ़ने के लिए इच्छुक होंगे। भारत को फिर से ज्ञान का गुरु बनाने के लिए शिक्षा संस्थानों में नवाचार, अनुसंधान पर बल देना चाहिए बल्कि शिक्षा के नए तरीके अपनाए जाने चाहिए।
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