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भारतीय दवा कम्पनियों पर आंच

पिछले कुछ समय से कुछ देशों में खांसी के सिरप से बच्चों की मौतें या गम्भीर रूप से बीमार होने के कई मामले सामने आ रहे हैं। कफ सिरप बनाने वाली भारतीय कम्पनियां निशाने पर हैं।

पिछले कुछ समय से कुछ देशों में खांसी के सिरप से बच्चों की मौतें या गम्भीर रूप से बीमार होने के कई मामले सामने आ रहे हैं। कफ सिरप बनाने वाली भारतीय कम्पनियां निशाने पर हैं। इससे भारत के फार्मा उद्योग की प्रतिष्ठा पर आंच आ रही है। अमेरिका के सैंटर फाॅर डिजीज कंट्राेल प्रिवैंशन और गाम्बिया के स्वास्थ्य प्राधिकार ने गाम्बिया में हुई बच्चों की मौत के लिए भारत में बने कफ सिरप को जिम्मेदार बताया। जांच में यह बात सामने आई है कि गाम्बिया में हुई बच्चों की मौतें और भारत में निर्मित कफ सिरप के सेवन के बीच गहरा संबंध है। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी पिछले वर्ष अलर्ट जारी करके कहा था​ ​कि भारत की कम्पनी द्वारा सप्लाई किए जा रहे चार तरह के कफ सिरप की गुणवत्ता मानदंडों के अनुरूप नहीं है। उज्जबेकिस्तान में भी नोएडा की कम्पनी द्वारा सप्लाई किए गए कफ सिरप के पीने से कई बच्चों की मौत हो गई थी। जांच में कफ सिरप के 22 सैंपल फेल हो चुके हैं। अब इस कम्पनी के मालिक फरार हो चुके हैं। जबकि कम्पनी के ऑपरेशन हैड समेत तीन लोगों को गिरफ्तार किया जा चुका है। विश्व स्वास्थ्य संगठन का कहना है कि कफ सि​रप में मिलावट के लिए घातक रसायनों का इस्तेमाल हो रहा है, जिनकी मामूली मात्रा भी जानलेवा हो सकती है। इन्हें दवाओं में कभी भी नहीं मिलाया जाना चाहिए। मिलावटी दवाओं के कहर का अनुमान इससे लगाया जा सकता है कि तीन-चार देशों में ही 300 से अधिक बच्चों की मौत हो चुकी है।
भारत इस समय दवाओं की दुनिया में बादशाह बना हुआ है। भारत के फार्मा सैक्टर का आकार 2030 तक 130 अरब डालर हो जाएगा। दुनिया के लगभग हर देश में भारतीय दवाएं पहुंचती हैं। फार्मा सैक्टर लगातार नई उड़ान भर रहा है। अमेरिका, ब्रिटेन, ​दक्षिण अफ्रीका, रूस और नाइजीरिया में भारत की दवाएं सबसे ज्यादा जाती हैं। भारत दुनिया के शीर्ष पांच फार्मा बाजारों में शामिल है। भारत दुनिया के देशों को सबसे अधिक जेनेरिक दवा उपलब्ध कराने वाला देश है। वैश्विक आंकड़ों पर नजर डालें तो ​िवदेशों में 20 फीसदी जेनेरिक दवाओं का ​निर्यात भारत से किया जाता है। इसका सीधा मतलब है कि दुनियाभर के देशों में भारतीय दवाएं गुणवत्ता और मूल्य दोनों के लिहाज से अन्तर्राष्ट्रीय मानकों पर खरी हैं। भारत में बनी जेनेरिक दवाओं की मांग अमेरिका, कनाडा, जापान, आस्ट्रेलिया, ब्रिटेन समेत अनेक विकासशील देशों में भी है। भारत का दवा उद्योग 60 चिकित्सीय श्रेणियों में 60,000 जेनेरिक ब्रांड मुहैया कराता है। भारत अमेरिका की 40 फीसदी जेनेरिक दवाओं की मांग को पूरा करता है। वहीं हम अफ्रीका की 50 प्रतिशत जेनेरिक दवाओं की मांग को पूरा करते हैं। इसके साथ ही ब्रिटेन की जेनेरिक समेत सभी दवाओं की मांग का 25 फीसदी हिस्सा भारत ही पूरा करता है। लैटिन अमेरिका और अफ्रीका के गरीब देशों की सस्ती दवा जरूरतों को पूरा करने में भारत का बहुत बड़ा योगदान है।
दरअसल जेनेरिक दवाओं की रासायनिक सरंचना ब्रांडेड दवाइयों के समान की होती है लेकिन वे रासायनिक नामों से ही बेची जाती हैं ​िजनसे आम जनता परिचित नहीं होती। उदाहरण के तौर पर क्रोसिन और कालपोल ब्रांडेड दवाओं के तहत आती हैं जबकि जेनेरिक दवाओं में इनका नाम पैरासिटामोल है। अब सवाल उठता है कि जेनेरिक दवा और दूसरी दवा में क्या अंतर है। असल में जब कोई दवा कम्पनी कई सालों की रिसर्च और टेस्टिंग के बाद दवा बनाती है तो उसके बाद उस दवा का पेटेंट कराती है। अमूमन किसी दवा के लिए पेटेंट 10 से 15 साल के लिए होता है। जब तक के लिए कम्पनी को पेटेंट मिलता है तब तक उस दवा को सिर्फ वही कम्पनी बना सकती है लेकिन जब दवा का पेटेंट खत्म हो जाता है तब उसे जेनेरिक दवा कहा जाता है। यानी पेटेंट खत्म हो जाने के बाद कई सारी कम्पनियां उस दवा को बना और बेच सकती हैं लेकिन हर कम्पनी की दवा का नाम और दाम अलग-अलग होता है। ऐसी स्थिति में वो दवा ब्रांडेड जेनेरिक दवा के नाम से जानी जाती है। भारतीय बाजार में मिलने वाली सिर्फ 9 फीसदी दवाएं ही पेटेंट हैं, जबकि 70 फीसदी से ज्यादा दवाएं ब्रांडेड जेनेरिक हैं। प्रधानमंत्री जन औषधि केन्द्र में जेनेरिक दवाएं ही मिलती हैं।
वैक्सीन बनाने के मामले में भी भारत दुनिया में टॉप पर है। दुनिया के 70 प्रतिशत टीकों की जरूरत भारत ही पूरा करता है। कोरोना महामारी के दौरान तैयार ​की गई वैक्सीन ने दुनियाभर में प्रतिष्ठा हासिल की है। भारत द्वारा तैयार लाइफ सेविंग ड्रग्स की मांग भी दुनियाभर में है। दुखद बात यह है कि कुछ दवा निर्माता कम्पनियां अधिक कमाई के लालच में दवाओं में घातक तत्वों की मिलावट करती हैं या उत्पादन प्रक्रिया में लापरवाही करती हैं। नकली दवाइयों का धंधा भी फलफूल रहा है। देश में नकली दवाओं के मामले सामने आते रहते हैं लेकिन जितनी तेजी से कार्रवाई होनी चाहिए उतनी नहीं हो पाती। दरअसल डाक्टरों, अस्पतालाें तथा खराब गुणवत्ता वाली दवाओं के निर्माताओं के बीच सांठगांठ इतनी गहरी है कि ड्रग माफिया धड़ल्ले से काम कर रहा है। दवाओं में मिलावट अक्षम्य अपराध होना चाहिए। जहरीले कफ सिरप ने भारत के दवा उद्योग की प्रतिष्ठा को जबर्दस्त आघात पहुंचाया है और इससे देश की छवि पर भी नाकारात्मक असर पड़ा है। केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय, राज्य सरकाराें और ड्रग्स कंट्रोलर को दवाओं की गुणवता की जांच लगातार करनी चाहिए और अपराधियों को दंडित करने के लिए ठोस कदम उठाने चाहिए तभी भारत की प्रतिष्ठा बच सकती है।
आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com

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