भारत की भूमिका और यूक्रेन

भारत की भूमिका और यूक्रेन
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किसी भी अन्य देश की तरह भारत भी व्यावहारिक यथार्थवाद और अपने राष्ट्रीय हितों के आधार पर अपनी नीतियां अपनाने का अधिकार रखता है। इसके साथ-साथ भारत का सभी देशों से संबंध बनाए रखना और दरवाजों को खुला रखना भारत के हितों के लिए अनुकूल है। इसका अर्थ यह नहीं है कि भारत युद्ध का समर्थन करता है। भगवान बुद्ध के देश भारत ने समूचे विश्व को युद्ध की बजाय शांति का ही संदेश दिया है। रूस-यूक्रेन युद्ध के बीच प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की यूक्रेन यात्रा काफी अहम रही है। पूरी दुनिया की नजरें प्रधानमंत्री की यात्रा पर लगी हुई थीं। पिछले महीने जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी मास्को गए थे और वे पुतिन से गले मिले थे तो उनकी काफी आलोचना हुई थी। यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की ने भी काफी आपत्ति की थी। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने यूक्रेन की यात्रा कर जिस तरह से जेलेंस्की को गले लगाया, उनके कंधे पर हाथ रखा और द्विपक्षीय बैठक में सभी महत्वपूर्ण ​बिन्दुओं पर चर्चा की वह इस तथ्य को रेखांकित करता है कि भारत रूस और यूक्रेन दोनों के साथ अपने रिश्तों में संतुलन बनाना चाहता है और यह दिखाना चाहता है कि युद्ध का प्रभाव उनके संबंधों पर नहीं पड़ा है।
इस दौरे को वैश्विक शांति को बढ़ावा देने में भूमिका निभाने की भारत की रणनीति के रूप में भी देखा जा रहा है। भारत और यूक्रेन के राजनयिक संबंध 30 वर्ष पहले कायम किए गए थे। नरेन्द्र मोदी वहां जाने वाले पहले प्रधानमंत्री हैं। नरेन्द्र मोदी लगातार अन्तर्राष्ट्रीय मंचों पर ग्लोबल साऊथ की आवाज बनते रहे हैं। ग्लोबल साऊथ की भलाई के​ लिए युद्ध का रुकना बहुत जरूरी है। यूक्रेन की धरती पर खड़े होकर प्रधानमंत्री ने सीधा संदेश दिया है कि भारत रूस और यूक्रेन के बीच शांति वार्ता में योगदान देने का इच्छुक है। इसका कारण यह भी है कि रूस भारत का अभिन्न मित्र है और यूक्रेन के साथ भारत के संबंध दोस्ताना हैं। नरेन्द्र मोदी की यूक्रेन यात्रा के दौरान 8 घंटे तक रूसी हमलों को रोका जाना अपने आप में महत्वपूर्ण है। प्रधानमंत्री ने जेलेंस्की काे कहा है ​िक युद्ध किसी समस्या का समाधान नहीं है, बल्कि दोनों देशों को समाधान निकालने के लिए वार्ता की मेज पर आना चाहिए। नरेन्द्र मोदी ने स्वयं युद्ध रोकने के लिए कोई विशिष्ट प्रस्ताव तो नहीं दिया बल्कि यह संकेत दिया कि भारत मास्को और कीव के बीच संदेशों के आदान-प्रदान के ​लिए या संवाद के लिए चैनल मोहैय्या करा सकता है।
यूक्रेन पर रूस के आक्रमण पर भारत की प्रतिक्रिया किसी पक्ष को भला-बुरा कहे बिना नागरिकों की हत्या की निंदा तक सीमित रही है। यूक्रेन संकट पर भारत का रुख विश्व में कोई एकाकी रुख नहीं है। ऐसा कई देशों ने भी किया है। अमेरिका के सबसे घनिष्ठ सहयोगी इजराइल ने रूसी हमले की निंदा तो की लेकिन प्रतिबंध व्यवस्था में शा​िमल होने से इंकार कर ​िदया आैर यूक्रेन को अपनी रक्षा प्रणाली देने से इंकार कर दिया था। उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन (नाटो) के सदस्य तुर्किये ने भी ऐसा ही किया। कुछ पश्चिमी देशों ने अपनी ऊर्जा आैर खाद्यान्न जरूरतों को पूरा करने के ​लिए रूस से संबंध बनाए रखे लेकिन इन देशों की सार्वजनिक आलोचना नहीं की गई जितनी कि भारत की। अमेरिका और उसके समर्थक देशों ने भारत को चुनिंदा रूप से लक्षित किया। कौन नहीं जानता कि सोवियत संघ के जमाने से ही रूस ने भारत का साथ दिया है। युद्ध हो या शांति काल वह मजबूती के साथ भारत के साथ खड़ा रहा है। भारत-रूस के संबंधों की प्रगाढ़ता का लम्बा इतिहास रहा है। अमेरिका का दबाव न झेलते हुए रूस से सस्ते तेल की खरीद करने के संबंध में भारत ने स्पष्ट कर दिया है कि यह निर्णय बाजार और राष्ट्रीय हितों को देखकर लिया गया।
खास बात यह है कि चाहे अमेरिका या अन्य यूरोपीय देशों या कोई भी और अन्य शक्ति भारत किसी के दबाव में आए बगैर अपने राष्ट्रीय हितों के अनुरूप स्वतंत्र और संतुलित नीति पर कायम है। यही वजह है कि दुनिया आज यह उम्मीद लगाए हुए है कि दोनों देशों से निकटता के चलते भारत शांति प्रयासों को अंजाम तक पहुंचाने में विशेष भूमिका निभा सकता है। बहुत से सवाल अब भी सामने हैं कि क्या भारत की भूमिका दोनों देशों को स्वीकार्य होगी? क्या यूक्रेन और रूस एक-दूसरे की शर्तों को स्वीकार करेंगे? पुतिन यूक्रेन के कब्जाये हुए इलाके छोड़ना नहीं चाहते और चाहते हैं ​िक यूक्रेन के सैनिक बिना कोई प्रतिरोध किए अपनी बैरकों में लौट जाएं। स्विट्जरलैंड में यूक्रेन की ओर से आयोजित शांति सम्मेलन में पुतिन की शर्तों को ठुकराया जा चुका है। पुतिन की लड़ाई नाटो के साथ है। जब तक जेलेंस्की नाटो से दूर रहने का प्रस्ताव नहीं देते तब तक पुतिन कोई प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं करेंगे। भारत इस समय तलवार की धार पर बहुत सतर्क होकर चल रहा है। कूटनीति में जरा भी संतुलन इधर-उधर हुआ तो भारतीय हितों को नुक्सान हो सकता है। इस समय यूक्रेन रूस के कुर्स्क इलाके में जबरदस्त घुसपैठ कर चुका है और रूस अपने इलाके को खाली कराने के लिए ताबड़तोड़ हमले करेगा। इससे युद्ध और भड़क सकता है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने युद्ध रोकने का ही संदेश दिया है। युद्ध रोकने के ​िलए अभी बहुत प्रयास करने होंगे।

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