एक अंग्रेजी कहावत है-‘‘अगर इच्छाएं अश्व होतीं तो हर भिखारी सह सवार हो जाता।’’ इच्छाएं सचमुच इच्छाएं हैं अश्व नहीं। आजकल तुर्की और पाकिस्तान सह सवार बने हुए हैं। उनके पास इस्लामोफोबिया यानी उन्माद नामक एक खतरनाक नस्ल का घोड़ा है, जिसकी सवारी ये दोनों देश कर रहे हैं। भारत की नरेन्द्र मोदी सरकार ने जब जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 का विशेष दर्जा खत्म किया तो तुर्की ने पाकिस्तान का खुलकर साथ दिया था लेकिन अब ऐसी सनसनीखेज रिपोर्ट आ रही है कि तुर्की ईस्ट सीरिया के अपने लड़ाकों को कश्मीर भेजने की तैयारी कर रहा है। ग्रीस के पत्रकार एंड्रीस माउंटजोरिलियास ने अपनी रिपोर्ट में तुर्की के षड्यंत्र का खुलासा किया है।
तुर्की के राष्ट्रपति रेचेप तैय्यप अर्दोआन इस्लामिक दुनिया में सऊदी अरब के प्रभुत्व को चुनौती देकर खुद नेतृत्व की भूमिका में आना चाहता है। कश्मीर में भाड़े के लड़ाकों को भेजना भी उसकी इसी रणनीति का हिस्सा है। कश्मीर जाने वाले लड़ाकों को धन की खुली पेशकश की जा रही है और यह सारी साजिश सीरिया की राष्ट्रीय सेना में शामिल हुए गैंग सुलेमान शाह के प्रमुख अबू एस्मा के नेतृत्व में रची जा रही है। कश्मीर मुद्दे पर पाकिस्तान को तुर्की से ही खुला समर्थन मिला है। तुर्की के राष्ट्रपति अर्दोआन ने अपने भाषण में कहा था कि कश्मीर हमारे लिए उतना ही अहम है जितना पाकिस्तान के लिए। तुर्की ने संयुक्त राष्ट्र मंच से भी कश्मीर मुद्दे पर पाकिस्तान को खुला समर्थन दिया है।
ग्रीस के पत्रकार की रिपोर्ट सत्य है तो भारत की खुफिया एजैंसियों और सुरक्षा बलों को सतर्क हो जाना चाहिए। आज इस्लामोफोबिया पूरे विश्व के लिए खतरा बन चुका है। भारत चीख-चीख कर पूरी दुनिया से कहता रहा कि हम इस्लामी और पाक प्रायोजित आतंकवाद से त्रस्त हैं तब अमेरिका पाकिस्तान काे डालरों की वर्षा करता रहा। उसे 9/11 हमले के बाद पाकिस्तान की असलियत समझ में आई। इसी तरह फ्रांस ने भी कट्टरपंथी इस्लाम को नहीं समझा था। जब उसे तपिश महसूस हुई तो उसने इस्लामोफोबिया के विरुद्ध अपने देश में निर्णायक लड़ाई शुरू कर दी है। फ्रांस लगातार आतंकवादी हमलों का शिकार होता आया है। एक टीचर की गला काट कर हत्या की घटना के बाद फ्रांस की मस्जिदों की तलाशी ली जा रही है। इनमें से कुछ को बंद कर दिया गया है। इससे पूर्व पेरिस में स्थित एक बड़ी मस्जिद को बंद कर दिया गया है क्योंकि इस मस्जिद में इस्लामिक गतिविधियां हो रही थीं। फ्रांस सरकार ने 120 से ज्यादा घरों की तलाशी ली है। फ्रांसीसी राष्ट्रपति इमुुनल मैंक्रो की तरफ से चेतावनी दी गई है कि अब वो लोग डर के साये में रहेंगे जो फ्रांस की जनता को डरा कर रखना चाहते हैं। वैसे तो फ्रांस 2015 से आतंकवाद झेल रहा है लेकिन विश्लेषकों का कहना है कि जो इस बार हो रहा है वह पहले कभी नहीं हुआ। सरकार ने कट्टरपंथी इस्लामिक गतिविधियों में शामिल संगठन को ही खत्म कर दिया है और सरकार ने आतंकवादियों को मिलने वाली वित्तीय सहायता के स्रोत को पहचान लिया है।
तुर्की के राष्ट्रपति अर्दोआन फ्रांस को धमकियां दे रहे हैं और उन्होंने फ्रांस के बहिष्कार का आह्वान किया हुआ है। धमकियों की परवाह न करते हुए फ्रांस सरकार जो कुछ कर रही है वह उसका अधिकार है। फ्रांस की मस्जिदों से भारी मात्रा में हथियार और भकड़ाऊ प्रचार सामग्री मिली है। मस्जिदों में नमाज पढ़ने वालों के लिए कानून अंतिम चरण में है। कानून लागू करने के लिए देश के मुस्लिम संगठनों को दो हफ्ते का समय दिया था और कहा गया था कि मुसलमानों को इस देश के प्रजातांत्रिक मूल्यों को स्वीकार करना होगा और यह मानना होगा कि इस्लाम धर्म है, राजनीतिक आंदोलन नहीं और किसी अन्य देश से हर प्रकार का संबंध खत्म करना होगा।
भारत आैर फ्रांस सिर्फ संगठित जिहादी नेटवर्क का सामना ही नहीं कर रहे, दोनों देशों का मुकाबला ऐसे युवा आतंकवादियों से है जो अपने ही देश में हैं और जिन्हें चरमपंथी जुनून से भर दिया गया है। कश्मीर में तो पाकिस्तानी भाड़े के आतंकवादी घुसपैठ कर लेते हैं। यदि फ्रांस सरकार ने देश के कानूनों और देश की सुरक्षा को एक विचाराधारा से मिल रही चुनौतियों के खिलाफ कदम उठाया है तो बिल्कुल सही किया है। फ्रांस और भारत धर्मनिरपेक्ष मूल्यों का बचाव करते आए हैं लेकिन पानी अब सिर से ऊपर निकलता जा रहा है। तुर्की के राष्ट्रपति अर्दोआन को लगता है कि इस्लामिक दुनिया का नेतृत्व करना तुर्की का ऐतिहासिक हक है लेकिन वह इस बात को भूल जाते हैं कि वो अब 2.2 करोड़ वर्ग किलोमीटर वाले ऑटोमन साम्राज्य के सुल्तान नहीं हैं बल्कि 7 लाख 83 हजार वर्ग किलोमीटर में सिमट चुके तुर्की के राष्ट्रपति हैं। ऑटोमन साम्राज्य का पहले विश्व युद्ध के साथ ही 1923 में अंत हो गया था और आधुनिक तुर्की बना था। तुर्की ने अगर कश्मीर में साजिश को अंजाम देने का प्रयास किया तो उसे मुंहतोड़ जवाब मिलेगा। दरअसल समूचे विश्व को आतंकवाद से मुक्ति नहीं पानी, हमें उस आतंकवाद से मुक्ति पानी है जो मजहबी जुनून के नाम पर फैल रहा है। इस भयावह स्थिति में जनता से भी अपेक्षा है कि वह भी अपना कर्त्तव्य निभाए। यह परीक्षा की घड़ी है। हमारा भी शत्रु जिहादी आतंकवाद है। भारत को भी फ्रांस से सबक लेते हुए हर षड्यंत्र को विफल बनाने के लिए सावधान रहना होगा।
आदित्य नारायण चोपड़ा
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