भारत सरकार और नगा विद्रोहियों के विद्रोहियों के संगठन एनएससीएन-आईएम (नेशनल सोशलिस्ट सेंटर आफ नागालिम) के बीच दिल्ली में चल रही बातचीत में अवरोध आ गया है। इस अवरोध की मुख्य वजह नगा संगठन द्वारा अपने पृथक ध्वज व संविधान की मांग है जिस पर भारत सरकार किसी तौर पर राजी होती नहीं दिखाई पड़ रही है। इसके साथ ही नगा संगठन ‘वृहद नागालैंड या नागालिम’ की मांग पर भी अड़ा है जो आसपास के असम, मणिपुर व अरुणाचल प्रदेश के नागा बहुल इलाकों को मिला कर बनाया जाना चाहिए। यह मांग भी कमोबेश भारत सरकार को मंजूर नहीं है। वस्तुतः नगालैंड के अलगाव की समस्या भारत की आजादी के समय से भी पहले की है। इससे पूर्व नगा नागिरक तत्कालीन अंग्रेज सरकार से भी अपनी पृथक स्वतन्त्रता के लिए लड़ रहे थे। स्वतन्त्रता मिलने के बाद नगा संगठनों ने अपना विद्रोही आन्दोलन स्व. ए.जेड. फिजों के नेतृत्व में जारी रखा जिस पर स्व. इदिरा गांधी के शासनकाल में अंकुश लगा। इसके बावजूद नगाओं ने अपना विद्रोह जारी रखा परन्तु इसके बाद इन्होंने हथियार न उठाने के कई समझौते बाद की सरकारों के साथ किये मगर राज्य में लोकतान्त्रिक सरकारों के गठन होने के बावजूद कुछ नगा संगठनों ने पृथकता की मांग नहीं छोड़ी और नगा नागरिकों की उपराष्ट्रीयता की मांग पर अड़ना जारी रखा। हालांकि नगा संगठनों के भीतर ही आपसी फूट पड़ जाने और नेताओं की कशमकश से इनके सशस्त्र विद्रोह पर लगाम भी लगी परन्तु इन संगठनों का एक न एक गुट हथियारों का इस्तेमाल करता रहा।
2014 में सत्तारूढ़ होने पर प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी ने नगा विद्रोह समाप्त करने के लिए एक नई पहल की और एनएससीएन-आईएम के प्रमुख श्री मुइवा के साथ समझौता किया। यह सन्धि ऐतिहासिक कही गई जिसमें संगठन ने सशस्त्र संघर्ष का रास्ता छोड़ कर शान्ति व बातचीत का रास्ता अपनाने की कसम खाई और इस बाबत पुख्ता नया समझौता करने का वचन दिया। नगा संगठनों को वार्ता की मेज पर लाने में राज्य के वर्तमान राज्यपाल श्री आर.एन. रवि ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई जो पूर्व में गुप्तचर सेवा विभाग (आईबी) के विशेष निदेशक रह चुके थे। भारत की सरकार की तरफ से नगा संगठनों से बातचीत करने के वह ही वार्ताकार नियुक्त किये गये थे मगर अब जबकि वह पिछले साल से इस राज्य के राज्यपाल हैं, नगा संगठनों को उनके रवैये से शिकायत होने लगी है। इसकी वजह यह है कि श्री रवि ने नगा संगठन के नेता मुइवों की यह मांग मानने से इनकार कर दिया है कि नागालिम एक स्वयंभू क्षेत्र या प्रदेश होगा। मुइवों का कहना है कि नागालिम भारत के साथ एक स्वयंभू क्षेत्र होना चाहिए जबकि श्री रवि का कहना है कि भारत के भीतर नागालिम एक राज्य होगा। मुइवों कहते हैं कि इसका पृथक झंडा और संविधान होना चाहिए जबकि भारत सरकार का मत है कि पृथक संविधान का कोई औचित्य ही नहीं बनता है। इससे 2015 के समझौते के असफल होने की संभावना बढ़ रही है। श्री रवि अभी भी प्रमुख वार्ताकार हैं और गुप्तचर सेवाओं के प्रमुख होने की वजह से वह नगालैंड की असलियत जानते हैं और कथित विद्रोही व अलगाववादी संगठनों की कार्यशैली से भी भलीभांति परिचित हैं। वह यह भी जानते हैं कि इस राज्य में सशस्त्र नगा संगठन किस प्रकार अपनी समानान्तर सरकारें बन्दूक की नोक पर चलाते रहे हैं। अतः अब श्री मुइवा कह रहे हैं कि उनकी जगह किसी दूसरे वार्ताकार को नियुक्त किया जाना चाहिए।
मोदी सरकार चाहती है कि चालू वर्ष में नगा विद्रोहियों के साथ पक्का शान्ति समझौता हो जाये। इसके तहत राज्य की सत्ता भी असम समझौते की तर्ज पर नगा संगठनों के हवाले की जा सकती है, बशर्तें ये संगठन भारत की प्रभुसत्ता और संप्रभुता के भीतर एक पूर्ण राज्य का दर्जा स्वीकार करें। श्री मुइवा नगालैंड के लोगों को स्वतन्त्रता दिवस पर सम्बोधित करते हैं, परन्तु अपने सम्बोधन को कभी सार्वजनिक नहीं करते परन्तु इस बार उन्होंने नई दिल्ली में रहते हुए सम्बोधित किया और उसे सार्वजनिक भी किया जिसमें पृथक झंडे व संविधान की बात कही गई, जिससे ऐसा लगता है कि मुइवा 2015 के समझौते को हल्का करने का प्रयास कर रहे हैं। श्री मुइवा से फिलहाल नई दिल्ली में ही गुप्तचर विभाग के वरिष्ठ अधिकारी अनौपचारिक वार्ता कर रहे हैं। इसी से अन्दाजा लगाया जा सकता है कि नगालैंड की समस्या कितनी गहरी है। मुइवा का कहना है कि 2015 का समझौते का मुख्य आधार ‘सह अस्तित्व व सांझी संप्रभुता’ थे। इसे श्री मुइवा अब दो अलग-अलग राष्ट्रों की संप्रभुता के रूप मे परिभाषित कर रहे हैं जो कि पूर्णतः गलत है। इसका मतलब यही निकलता है कि भारत की संप्रभुता का सम्मान नागालिम करेगा और भारत के भीतर अन्य राज्यों या लोगों के साथ सह अस्तित्व के साथ रहेगा।
आदित्य नारायण चोपड़ा
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