नसों में घुलता नशा

नसों में घुलता नशा
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ड्रग्स तस्करी पूरी दुनिया के लिए एक बड़ी चुनौती है। नशे का फैलता जाल बहुत बड़ी समस्या बन चुका है। दुनिया का कोई भी ऐसा देश नहीं है जहां के लोगों को नशे की लत नहीं लगी हो। भारत भी इस समस्या से अछूता नहीं है। दिल्ली में पांच हजार करोड़ की कोकीन और थाइलैंड की मारिजुआना ड्रग्स की बरामदगी इस बात का संकेत दे रही है कि देश में या तो इसकी खपत कई गुणा बढ़ चुकी है या फिर भारत नशीले पदार्थों की आपूूर्ति के किसी बड़े नेटवर्क का केन्द्र बन गया है। दिल्ली पुलिस ने अन्तर्राष्ट्रीय ड्रग रैकेट का भंडाफोड़ करते हुए चार लोगों को गिरफ्तार किया है। नशे की इस खेप को दिवाली, दशहरे से पहले सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाया जाना था। इसके लिए पूरी सप्लाई चेन तैयार रखी गई थी। नशीले पदार्थों की इतनी बड़ी खेप अलग-अलग देशों से होती हुई भारत पहुंची थी। कोकीन की यह खरीद-फरोख्त पैसे से नहीं बल्कि क्रिप्टो करंसी के साथ की जाती थी। त्यौहारों के दिनों में दिल्ली, मुम्बई, गुजरात और देशभर में बड़े कॉर्स्ट होते हैं। इन कार्यक्रमोें में नशे की खेप पहुंचाई जानी थी। किसी समाज और देश को भीतर से खोखला करना हो तो उसकी युवा शक्ति को नशे की गर्त में धकेलना काफी है। पंजाब, हिमाचल, महाराष्ट्र आैर गुजरात जैसे कई राज्यों में नशे की लत के कारण युवाओं का भविष्य बर्बाद हो चुका है।
आज देश में कहीं से कोई भी व्यक्ति नशे का सामान खरीद सकता है। उसे ना कोई रोकने वाला है ना कोई टोकने वाला है। नशे का सामान बेचने वाले सौदागर दिनों दिन धनवान होते जा रहे हैं। जिस कारण से उनका पुलिस व प्रशासन पर पूरा प्रभाव रहता है। जिसकी बदौलत वह शासन, प्रशासन से मिलकर सरेआम धड़ल्ले से अपना धंधा करते रहते हैं। नशे की प्रवृत्ति के खिलाफ हमारा समाज भी जागरुक नहीं है। नशे की लत के चलते पंजाब जैसा संपन्न प्रांत नशेडि़यों का प्रदेश कहलाने लगा था। वैसी ही स्थिति आज देश के अधिकांश प्रदेशों की हो रही है। नशे को लेकर पंजाब जब सुर्खियों में आया तो पूरे देश का ध्यान उस तरफ गया।
पुलिस, भारतीय नौसेना, एनसीबी, डीआरआई समेत कई एजैंसियां एक साथ मिलकर ड्रग्स के खिलाफ सख्त मुहिम चला रही हैं। इसके बावजूद गुजरात और मुम्बई के बंदरगाहों पर करोड़ों रुपए की ड्रग्स पकड़ी जा रही है। भारत में सबसे अधिक ड्रग्स की खेप अफगानिस्तान से आती है। यानी भारत का मुख्य स्रोत अफगानिस्तान है। इसके पीछे भी कारण है, अफगानिस्तान में काफी समय से वहां पर अफीम की खेती और तमाम नशीली दवाईयाें का व्यापार होता आ रहा है। अब तो तालिबान के सत्ता में आने के बाद इस तरह के व्यापारों में काफी तेजी देखी जा रही है। भारत समेत दुनिया भर में 80 से 85 प्रतिशत ड्रग्स की सप्लाई अफगानिस्तान से होती है। तालिबान इन्हीं पैसों की बदौलत अपने आप को मजबूत कर रहा है। दुनिया भर की सुरक्षा एजैंसियों में तालिबान ने नाक में दम कर रखा है। वहीं इसमें पाकिस्तान की भी अहम भूमिका होती है। भारत के पंजाब, श्रीनगर और राजस्थान में सीमा के पास कई बार ड्रग्स और अफीम की खेप को पकड़ा जाता है। कई बार तो इसके लिए तस्कर सुरंग तक खोद डालते हैं। इसके अलावा अब ड्रोन की मदद से भी इस काम को अंजाम दिया जा रहा है। भारत में नेपाल और पाकिस्तान के जरिए भी ड्रग्स को पहुंचाने का प्रयास किया जाता है। गम्भीर पहलू यह भी है कि आखिर ड्रग्स नेटवर्क में कौन-कौन लोग शामिल हैं और ड्रग्स की इतनी भारी खपत देश के किन इलाकों और समाज के किन वर्गों के बीच हो रही है। इस समस्या का एक सिरा दिखावे की परम्परा, अमीरों जैसी जीवन शैली, परिवारों की टूटन, बेरोजगारी, अकेलेपन और तनाव से भी जुड़ा हुआ है। हमारी युवा पीढ़ी को नशे की अंधेरी गलियों में धकेल दिया गया है। इस धंधे में लगे लोगों को कहीं न कहीं राजनीतिक संरक्षण भी हासिल है। कोरोना काल में नशीले पदार्थों का कारोबार इंटरनेट के अवैध स्वरूप डार्क नेट और समुद्री मार्ग के जरिये बढ़ा है। नशीले पदार्थों की 90 प्रतिशत बिक्री डार्क नेट पर ही होती है। ड्रग्स माफिया का ताल्लुक केवल धंधे से नहीं है बल्कि उनके तार क्राइम सिंडीकेट आैर आतंकवादी संगठनों से भी जुड़े हुए होते हैं। ड्रग्स से बनाया गया धन हथियारों की खरीद-फरोख्त और आतंकवाद को प्रोत्साहित करने का ही काम करता है। भारत का ड्रग्स बाजार बनना समाज और राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा बन रहा है। अगर समय रहते इन्हें नियंत्रित नहीं ​किया गया तो समाज के भीतर ही संघर्ष का खतरा उत्पन्न हो जाएगा। ड्रग्स की समस्या से नैतिक मूल्यों का पतन हो जाता है, जो समाज के ​िलए घातक सिद्ध होगा। सरकारी एजैंसियों को साइबर मोर्चे पर अंकुश लगाने की उन्नत तकनीकों का इस्तेमाल करना होगा और समाज को भी इस बात पर मंथन करना होगा कि युवा पीढ़ी को नशे की गिरफ्त से कैसे बचाएं।

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