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दो दुश्मनों का अन्तरंग मिलन!

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भारत के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश के दो संसदीय क्षेत्रों फूलपुर और गोरखपुर में होने वाले उपचुनावों के महत्व का अन्दाजा इसी हकीकत से लगाया जा सकता है कि बहुजन समाज पार्टी और समाजवादी पार्टी ने यहां मिलकर लड़ने का फैसला किया है। सुश्री मायावती की बहुजन समाज पार्टी ने श्री मुलायम सिंह की समाजवादी पार्टी के प्रत्याशियों को समर्थन देने का फैसला करके यही सिद्ध किया है कि राज्य की आम जनता के बीच इन दोनों ही पार्टियों को अपनी साख बचाये रखने के लिए साथ आना पड़ रहा है।

इसका राजनीतिक अर्थ यही है कि दोनों पार्टियों की ताकत राज्य में इस कदर कम हो चुकी है कि वे अलग-अलग रहकर अपने बूते पर जीत का भरोसा खो चुकी हैं। हालांकि वर्तमान लोकसभा का कार्यकाल अगले साल के मई महीने तक केवल 12 महीनों के आसपास ही बचा है फिर भी ये पार्टियां इकट्ठे होकर अपनी हार से बचना चाहती हैं और कांग्रेस पार्टी को विपक्षी दल की प्रमुख भूमिका में देखने से बचना चाहती हैं। यह इसी बात का प्रमाण है कि दोनों के ही नीचे से जमीन खिसक रही है। क्योंकि दो कट्टर राजनीतिक विरोधी तभी एक मंच पर आ सकते हैं जब उनमें से प्रत्येक की प्रतिरोध क्षमता में भारी कमी दर्ज हो चुकी हो।

वैसे वैचारिक रूप से इन दोनों पार्टियों का एकमात्र सिद्धान्त जातिवाद रहा है जिसे उन्होंने कड़ी मशक्कत करके राज्य की जनता को इस आधार पर बांटने में पूरे पच्चीस साल लगाए हैं और उत्तर प्रदेश को पचास साल पीछे ले जाकर फैंक दिया है। बिना शक इस स्थिति का लाभ सबसे ज्यादा आज की राज्य की सत्तारूढ़ पार्टी भाजपा को मिला है और सबसे ज्यादा नुक्सान उस कांग्रेस पार्टी को उठाना पड़ा है जिसे इस राज्य की स्वाभाविक सत्तारूढ़ पार्टी माना जाता था। यदि बसपा व सपा के गठजोड़ को और बारीकी से देखा जाए तो यह राज्य में कांग्रेस पार्टी के पुनरुत्थान को रोकने की दृष्टि से किया गया रणनीतिक गठजोड़ है क्योंकि 1989 के बाद से यह पार्टी लगातार सत्ता से दूर चल रही है और हाशिये पर जा चुकी है।

इसकी वजह भी ये दोनों पार्टियां ही हैं जिन्होंने कांग्रेस के वोट बैंक को पूरी तरह आपस में बांट कर इसे लावारिस बनाने में किसी प्रकार की कसर नहीं छोड़ी। सुश्री मायावती ने दलित व श्री मुलायम सिंह ने पिछड़ी जातियों के मतों को इस तरह कब्जाया कि अल्पसंख्यक मुस्लिम मतदाता इन दोनों के बीच बंट गए। इसकी असली वजह राज्य में भाजपा का धमाकेदार उदय रहा। भाजपा के बारे में इन दोनों पार्टियों ने डर का माहौल पैदा करके एक तरफ अल्पसंख्यक मुसलमानों को कांग्रेस से दूर किया और दूसरी तरफ जातिमूलक पहचान बनाकर उसे जर्जर बना डाला। जो नुक्सान कांग्रेस को होना था वही हुआ और स्थिति यहां तक आ गई कि 400 की विधानसभा में इसकी सीटें मात्र सात रह गईं।

कांग्रेस को अपनी पूंछ पर बिठा कर सैर कराने वाली पार्टी के किरदार में आने के लिए जिस शर्म और रुसवाई का सामना करना पड़ा उसका सबसे बड़ा उदाहरण पिछले साल उत्तर प्रदेश में हुए विधानसभा चुनावों के परिणाम हैं जिनमें अन्त समय में समाजवादी पार्टी व कांग्रेस में समझौता हुआ था मगर इसके लिए जिम्मेदार खुद कांग्रेस पार्टी ही थी और खासतौर श्री राहुल गांधी ही थे जिन्होंने अकेला चलने के स्थान पर पिछले पांच साल तक सत्ता में रहने वाली उस समाजवादी पार्टी का साथ देना उचित समझा था जिसके राज में उत्तर प्रदेश पूरी तरह अराजकता और ​तु​ष्टीकरण की भेंट चढ़ा दिया गया था।

आम जनता के बीच समाजवादी राज के खिलाफ पैदा हुए रोष का शिकार कांग्रेस पार्टी बिना कुछ करे-धरे ही बना दी गई। यह ताजा पिछला इतिहास है मगर दो उपचुनाव जिन फूलपुर व गोरखपुर क्षेत्रों में हो रहे हैं वहां कांग्रेस पार्टी ने अपने प्रत्याशियों की घोषणा कर दी है। राज्य में सत्तारूढ़ भाजपा की योगी आदित्यनाथ सरकार के अभी तक जो कारनामे हैं वे राज्य की जनता को सन्देश दे रहे हैं कि बजाय बदलाव आने के पुराने बसपा व सपा शासन की रवायतें दोहराई जा रही हैं। सरकार काम से ज्यादा प्रचार पर जोर दे रही है इसके बावजूद गोरखपुर स्वयं मुख्यमन्त्री योगी आदित्यनाथ का चुनाव क्षेत्र है।

यह चुनाव क्षेत्र गोरखनाथ मठ की लोकतान्त्रिक बपौती के रूप में रहा है और मठ के महंतों का ही कमोबेस इस पर कब्जा रहा है। महन्त अवैद्यनाथ व महन्त दिग्विजय नाथ से लेकर योगी जी इसका प्रतिनिधित्व करते रहे हैं। दूसरे फूलपुर का प्रतिनिधित्व उन्हीं के उप मुख्यमन्त्री केशव प्रसाद मौर्य कर रहे थे। अतः कहा जा सकता है कि ये दोनों उपचुनाव भाजपा के लिए नाक का प्रश्न हैं।

इन दोनों ही क्षेत्रों में उसकी विजय राज्य सरकार की प्रतिष्ठा से जुड़ी हुई है। बसपा व सपा का साथ आना भी इसी तथ्य से परोक्ष रूप से जुड़ा हुआ माना जा सकता है। यह भाजपा को नुक्सान पहुंचाने के साथ-साथ कांग्रेस की तरफ से आम मतदाता का ध्यान हटाने का प्रयास भी है। इस समीकरण को जो राजनीतिक दल नहीं समझ सकता उसे राजनीति में रहने का अधिकार कैसे दिया जा सकता है।

जमीन सूंघ कर राजनीति करने वाले लोग बता सकते हैं कि इस गठबन्धन के असली मायने क्या हैं और उनका अन्तिम लक्ष्य क्या है ? पं. जवाहर लाल नेहरू की फूलपुर सीट को पिछले तीन सालों से जिस तरह कांटेदार प्रत्याशियों ने सजाया है उससे तो खुद उत्तर प्रदेश लहूलुहान होकर आज तौबा कर रहा है।

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