ईरान-इजराइल महायुद्ध!

ईरान-इजराइल महायुद्ध!
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सालों से सुनते आ रहे हैं कि तीसरा विश्व युद्ध शुरू होगा। एक तरफ यूक्रेन-रूस युद्ध तो दूसरी तरफ इजराइल-हमास युद्ध चल ही रहा है जिसमें अब बहुत खतरनाक मोड़ आ गया है। मंगलवार की रात ईरान द्वारा इजराइल पर 200 बैलिस्टिक मिसाइलों से हमला किए जाने के बाद ​​िस्थतियां बेकाबू होती नजर आ रही हैं। ऐसे में तृतीय विश्व युद्ध का भय व्याप्त हो गया है। पिछले दो विश्व युद्ध इसी तरह से शुरू हुए थे। पहले दो देश आपस में लड़े। खेमेबाजी में बंटी दुनिया के देश भी युद्ध लड़ने लगे। इस तरह धीरे-धीरे पूरी दुनिया युद्ध में उलझ गई। ईरान के हमले से आक्रोश से भरे इजराइल के प्रधानमंत्री नेतन्याहू ने चेतावनी दे दी है कि ईरान ने मिसाइल दागकर बहुत बड़ी गलती की है। ईरान को इसकी बहुत बड़ी कीमत चुकानी होगी। लेबनान में इजराइली हमले में हिजबुल्ला चीफ नसरल्लाह के मारे जाने के बाद संघर्ष के बेकाबू होने का खतरा पहले ही बढ़ चुका था। नसरल्लाह और अन्य कमांडरों की मौत के बाद ईरान भी काफी गुस्से में था। पिछले कुछ समय से इजराइल भी ईरान के राजनायिकों, वैज्ञानिकों, कमांडरों को एक-एक करके निशाना बनाता आ रहा है। तेहरान के एक गेस्ट हाऊस में हमास नेता इस्माइल हानिए की मौत के बाद ईरान बदला लेने पर उतारू था। एक समय ईरान और इजराइल मित्र राष्ट्र हुआ करते थे। अब दोनों ही देश एक-दूसरे के कट्टर दुश्मन हैं। ईरान ने लगातार इजराइल विरोधी देशों सीरिया, यमन, लेबनान को न केवल हथियार ​िदए ​बल्कि वहां आतंकी संगठन भी बनाए ताकि वह इजराइल को आतंकित कर सके। 80 के दशक में इस्लामिक जेहाद वो पहला आतंकी गुट था जो फिलिस्तीन की मांग को लेकर इजराइल को परेशान कर रहा था। उसे ईरान का खुला समर्थन प्राप्त था। इसी समय ईरान ने ​हिजबुल्ला को भी तैयार किया जो इजराइल में लगातार अ​िस्थरता फैला रहा था। दोनों देशों के बीच दुश्मनी की नींव ईरान की इस्लामिक क्रांति के बाद पड़ी जब धा​िर्मक नेता अयातुल्ला अली खामेनेई ने सत्ता संभाली। 1979 में ईरान इस्लामिक देश घोषित हो गया और खामेनेई ने इजराइल और अमेरिका को शैतानी देश घोषित किया और कहा कि यहूदियों ने फिलिस्तीनियों का हक मारा है। तब से ही दोनों देशों में शैडो वॉर चल रही है। ईरान उन सारे देशों को फिलिस्तीन के नाम पर उकसाता रहा है जो इजराइल को घेरे हुए हैं। दोनों ही देश सीधे-सीधे लड़ाई से बचते रहे हैं और छिप-छिपाकर हमले करते रहे हैं लेकिन अब शैडो वॉर युद्ध में तब्दील हो गई है। अब ​अमेरिका, ब्रिटेन और अन्य देश खुलकर इजराइल के साथ खड़े हैं। यद्यपि इजराइल बहुत ताकतवर देश है लेकिन यह समझना गलत होगा कि ईरान और हिजबुल्ला जल्दी समर्पण कर देंगे।
पिछले तीन दशक से भी ज्यादा समय से हिजबुल्ला का नेतृत्व कर रहा नसरल्लाह मध्यपूर्व के सबसे प्रभावशाली व्यक्तित्वों में शुमार किया जाता था। उसकी कमी की जल्द भरपाई होना मुश्किल है। मगर ​िहजबुल्ला के लिए यह इकलौता झटका नहीं है। हाल के हमलों में उसके एक दर्जन से ज्यादा टॉप के कमांडर मारे जा चुके हैं। बहुचर्चित पेजर और वॉकी टॉकी हमलों ने उसके इंटरनल कम्युनिकेशन सिस्टम को भी लगभग खत्म कर दिया है। ऐसे में खुद को समेटकर इजराइल पर दोबारा वैसा ही हमला करना हिजबुल्ला के लिए काफी मुश्किल होगा।
पिछले कुछ दशकों में हिजबुल्ला दुनिया का सबसे ताकतवर नॉन स्टेट एक्टर बन चुका है। उसके पास डेढ़ लाख से अधिक रॉकेट और मिसाइलें बताई जाती हैं। दूसरी तरफ ईरान की सबसे बड़ी ताकत इसकी सैन्य संरचना है। ईरान पश्चिम एशिया में प्रॉक्सी मि​िलशिया के नेटवर्क को हथियारों से लैस करता है। हिजबुल्ला यमन में हूती, सीरिया और ईराक में मि​िलशिया समूह, गाजा में हमास और फिलिस्तीनी इस्लामिक जेहाद शा​िमल है। संयुक्त राष्ट्र लगातार गुहार लगा रहा है कि युद्ध को रोका जाए।
मगर जिस तरह इजराइल हमास, हिजबुल्ला और हूती विद्रोहियों के खिलाफ हमले कर रहा है, उसमें बहुत सारे बेगुनाह लोग मारे गए हैं और मारे जा रहे हैं। उसमें अंतर्राष्ट्रीय युद्ध नियमों की भी अनदेखी हो रही है। अस्पतालों, स्कूलों तक को निशाना बनाया जा रहा है। बहुत सारे रिहाइशी इलाके ध्वस्त किए जा चुके हैं। बीमार और लाचार लोगों तक जरूरी सुविधाएं भी नहीं पहुंच पा रहीं। हिजबुल्ला के कमांडर हसन नसरल्लाह को मार गिराने के बाद इजराइल ने अपना रुख यमन के हूती विद्रोहियों की तरफ केंद्रित कर दिया है।
वहां भी वैसी ही तबाही की आशंका है जैसी फिलिस्तीन के गाजा पट्टी और लेबनान के बेरूत में देखने को मिली है। इसमें सारी दुनिया की चिंता मानवाधिकारों के हनन को लेकर पैदा हो गई है। आतंकवादियों पर हमले से शायद ही किसी को एेतराज हो पर जिस तरह बेगुनाह लोग, स्त्रियां, बूढ़े और बच्चे मारे जा रहे हैं, फिलिस्तीन में बहुत सारे लोग बंधक बनाए गए हैं, वह स्वाभाविक ही परेशान करने वाली बात है।
इस युद्ध में रूस, चीन आैर अन्य अमेरिका विरोधी देशों पर सबकी नजरें लगी हुई हैं। अगर यह संघर्ष लंबा हुआ तो वैश्विक अर्थव्यवस्था के लिए चुनौतियां खड़ी हो जाएंगी। तेल की कीमतें और महंगाई इतनी बढ़ेगी कि सभी को नुकसान होगा। पहले ही दुनिया कोरोना महामारी और रूस-यूक्रेन युद्ध का खामियाजा भुगत रही है। युद्ध अंतत: वार्ता की मेज पर ही खत्म होते हैं लेकिन तब तक मानवता चीखती, सिसकती और कराहती रहेगी।

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