आजकल अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी बड़ी चर्चा में है। कारण यह है कि इस बात का निर्णय होना है क्या यह एक अल्पसंख्यक शिक्षा संस्था है अथवा नहीं। इसका मुकदमा भी काफी दिन से सुप्रीम कोर्ट में चल रहा है। सुप्रीम कोर्ट ने बीते शुक्रवार को अलीगढ़ मुस्लिम विश्विद्यालय के अल्पसंख्यक दर्जे को लेकर महत्वपूर्ण फैसला दिया। सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद एएमयू के छात्रों में खुशी की लहर दौड़ गई। उधर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री, योगी आदित्यनाथ ने कहा है कि एएमयू, सभी सुविधाएं केंद्र से प्राप्त कर रहा है, जिनमें इसे अध्यापक गण व अन्य सभी कार्यकर्ता केंद्र से वेतन लेते हैं और पिछड़ों तबक़ों, जनजातियों, दलितों आदि को दाखिला नहीं दिया जाता है और मुस्लिमों के लिए पचास प्रतिशत प्रवेश मान्य है, जो नाइंसाफी है।
इस आधे-अधूरे निर्णय को लेकर मुस्लिम तबका बहुत प्रसन्न है जिस में विशेष रूप से ऐसे मुस्लिम भी शामिल हैं, जिन्होंने अपनी पढ़ाई एएमयू, जामिया आदि मुस्लिम संस्थाओं से न करके ऑक्सफोर्ड, सेंट स्टीफेंस, कैंब्रिज, बेलियल, ब्रॉसल्स, कैंब्रिज आदि से की है और मुस्लिमों को चाहते हैं कि एएमयू, जामिया आदि से पढ़ें। ऐसे लोगों को क़ौम खूब समझती है कि ये मुसलमानों को आरक्षण के जाल में फंसा कर, उनके नाम में कमाई रोटियां सेकते रहना चाहते हैं। इनको चाहिए कि ये मुस्लिमों को मैरिट और महारत का सबक़ दें कि वे अपने हाथों पर भरोसा कर कामरेड आफताब अहमद सिद्दीकी, सलमान खुर्शीद, ए.आर. अंतुले नजीब जंग आदि का हवाला दें कि मेहनत कर अपना और समाज का नाम रौशन कर भारत को जगत गुरु बनाएं।
इसका एक कारण यह भी है कि मुस्लिम, जो अंग्रेज़ों के आगमन से पूर्व दो सौ वर्ष भारत में देश की सत्ता पर काबिज रहे, उन्हें आरक्षण, कोटा, माईनोरिटी आदि ऐसे शब्दों से परहेज करना होगा। उनकी 75 वर्ष से कोई सुनवाई नहीं कर रहा, अतः उन्हें इस अंधेरे में खुद ही अपने लिए एक शमा जलानी होगी और ऐसे शिक्षा संस्थान बनाने होंगे जो अंतर्राष्ट्रीय स्तर के हों और उन में देश-विदेश के शिक्षार्थी प्रवेश पाने के लिए होड़ लगी रहे। अलीगढ़, जामिया, मानू, हमदर्द आदि अवश्य ही भारत की मुस्लिम शिक्षण संस्थाएं हैं और शिक्षा का प्रचार प्रसार अवश्य कर रही हैं, मगर उनका ऐसा मान-सम्मान और धाक नहीं, जैसी हार्वर्ड, ऑक्सफोर्ड आदि की है। आरक्षण तो वास्तव में उन पिछड़े वर्गों के लिए है, जो समाज में नाना प्रकार की नाइंसाफियों व कुटिलताओं को झेलते हैं। यही कारण था कि गांधी जी ने दबे-कुचले दलित समाज के लोगों को हरिजन, अर्थात अल्लाह के बंदा कहा था।
वास्तव में आरक्षण मजहब, जाति आधार पर देने की बजाय केवल उस व्यक्ति को दिया जाना चाहिए जो गरीब हो। गरीब चाहे हिंदू हो, मुस्लिम हो, ईसाई हो या कोई और हो, ब्राह्मण हो या दलित, हक उसी का बनता है। वैसे आजकल ऐसा भी देखा जा रहा है कि जनरल कैटेगरी वाले काबिल होने के बावजूद विभिन्न अवसरों से वंचित हो रहे हैं। अतः आरक्षण को अमीर और गरीब कैटेगरी में बांटने पर गंभीरता से विचार होना चाहिए।
जहां तक सुप्रीम कोर्ट का संबंध है, साल 1967 में अजीज बाशा बनाम यूनियन ऑफ इंडिया केस में तत्कालीन सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने कहा था कि जामिया मिलिया इस्लामिया को अल्पसंख्यक संस्था का रुतबा नहीं दिया जाना चाहिए, क्योंकि इसके संस्थापकों ने हिंदू-मुस्लिम बात न कर के इसको सभी को दािखला देने की बात कही थी अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी को अल्पसंख्यक का दर्जा मिलेगा या नहीं, इसका फैसला सुप्रीम कोर्ट की तीन जजों के बेंच पर छोड़ दिया गया है।
देश के सबसे प्रतिष्ठित शैक्षणिक संस्थानों में शुमार अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय को दोबारा अल्पसंख्यक का दर्जा बहाल होने पर छात्रों ने तिरंगा लहराकर अपनी खुशी का इजहार किया। इस खास मौके पर एएमयू के छात्रों ने बाब-ए-सैयद पर इकट्ठा हुए और राष्ट्र प्रेम का संदेश देते हुए तिरंगा हाथों में थामे हुए दिखाई दिए। इस ऐतिहासिक दिन पर छात्रों ने एक-दूसरे को गले लगाकर और तिरंगा लहराकर अपनी खुशी का इजहार किया। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद एएमयू में ईद की तरह रौनक दिखाई पड़ी।
एएमयू का अल्पसंख्यक दर्जा बहाल होने के लिए छात्र और शिक्षक लंबे समय से इंतजार कर रहे थे। यह मुद्दा सालों से कानूनी विवादों में उलझा हुआ था। इसके बहाल होने की खबर आते ही छात्रों में खुशी की लहर दौड़ गई। छात्र अपनी क्लासों से बाहर निकलकर एक-दूसरे को बधाई देते हुए नजर आए। छात्रों के मुताबिक, यह न केवल उनकी पहचान की बहाली है बल्कि उनके विशेषाधिकारों की रक्षा की दिशा में भी एक महत्वपूर्ण कदम है। एएमयू के छात्रों के अनुसार, अल्पसंख्यक दर्जा विश्वविद्यालय की विशेष पहचान का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, जो इसकी स्थापना के उद्देश्यों और उद्देश्यपूर्ण शिक्षा के सिद्धांतों को बनाए रखता है। छात्रों के मुताबिक, यह दर्जा न सिर्फ उनके अधिकारों यह जीत न केवल एएमयू के छात्रों की है बल्कि यह उन सभी लोगों जीत है जो भारत में समानता, सद्भाव और विविधता के मूल्यों में विश्वास रखते हैं। फैसला जो भी आए, ऐसा आए कि देश और मुस्लिम समाज के लिए बेहतर हो !