जम्मू-कश्मीर में जहर की खेती के लिए जो बीज रोपे गये थे अब उसकी फसल तैयार हो चुकी है और हिजबुल मुजाहिदीन का कमांडर ‘जाकिर मूसा’ फरमा रहा है कि घाटी में जो आतंकवाद का दौर चलाकर मार-काट मचाई जा रही है उसका सम्बन्ध इसकी कथित ‘आजादी’ की लड़ाई से नहीं है बल्कि ‘इस्लामी राज’ कायम करने से है और ‘हुर्रियत’ के नेता भी अगर कश्मीर की समस्या को ‘राजनीतिक समस्या’ कहने की जुर्रत करेंगे तो उनका सिर कलम कर दिया जायेगा। कश्मीर में जिस तरह अलगाववादियों ने हिंसा का समर्थन किया है अब वही हिंसा उन्हें डसने के लिए तैयार हो गई है। पिछले लगभग 30 सालों से जिस तरह कश्मीर वादी को दोजख में तब्दील करने की मुहिम अलगाववादियों ने दहशतगर्दी के सहारे चलाई उसका यह अंजाम होना ही था क्योंकि जो भस्मासुर घाटी में तबाही मचाने के लिए उन्होंने पैदा किये थे उनके हौसलों को भारतीय फौजों की मुखालफत करके इन्हीं अलगाववादियों ने बढ़ाया अत: अब उन्हें अपने आकाओं के सिर पर हाथ फेरने से कौन रोक सकता है।
पाक अधिकृत कश्मीर के मुजफ्फराबाद में बैठकर मूसा एक वीडियो जारी करके जब यह ऐलान करता है कि उसकी लड़ाई कथित कश्मीरी स्वतन्त्रता के लिए नहीं बल्कि इस्लाम के लिए है तो साफ हो जाता है कि दहशतगर्द कश्मीर का तालिबानीकरण करके इसे आईएस की तर्ज पर चलाना चाहते हैं और ऐसे निजाम में हुर्रियत के लिए भी कोई जगह नहीं हो सकती क्योंकि इसके नेता कश्मीर समस्या का राजनीतिक हल चाहते हैं। बहुत साफ है कि अब हालात ऐसे होते जा रहे हैं कि घाटी को सेना के हवाले करके आतंकवादियों को मुंहतोड़ जवाब दिया जाये और कश्मीरी जनता को सुरक्षा प्रदान की जाये क्योंकि दहशतगर्दों की ऐसी हरकतों से कश्मीर का कोई नागरिक स्वयं को सुरक्षित महसूस नहीं कर सकता। हिजबुल मुजाहिदीन जैसी तंजीमें कश्मीर को दूसरा सीरिया बना देना चाहती हैं जिसका मुकाबला करने के लिए भारत को माकूल कदम उठाने होंगे। अगर बात राजनीतिक हल से आगे निकल कर इस्लामी हुकूमत काबिज करने तक पहुंच रही है तो भारतीय संघ की धर्मनिरपेक्ष सरकार अपने एक सूबे को दहशतगर्दों के रहमो- करम पर नहीं छोड़ सकती है। इसका समय रहते ही इलाज किया जाना बहुत जरूरी है क्योंकि पड़ोसी पाकिस्तान ऐसे दहशतगर्दों की लगातार पीठ थपथपा रहा है। इससे यह भी साबित होता है कि पाकिस्तान बुरहान वानी जैसे दहशतगर्द को क्यों शहीद का दर्जा दे रहा था क्योंकि वानी भी हिजबुल का ही कमांडर था।
अत: पाकिस्तान की मंशा भी कश्मीर को इस्लामी जेहाद के साये तले लाने की है। अभी तक पाकिस्तान जिस कश्मीर का कलमा पढ़ता रहा है उसे वह इस्लामी जेहाद फैलाकर बर्बाद कर देना चाहता है क्योंकि आम कश्मीरियों के लिए उनकी महान संस्कृति सबसे ज्यादा प्रमुख रही है। इस सूबे में कट्टरपंथियों की दाल कभी नहीं गली और हर संकट के समय कश्मीरियों ने भारत का ही साथ दिया। इसकी सबसे बड़ी वजह कश्मीर की वह गंगा-जमुनी तहजीब रही जिसका पाबन्द होने में हर कश्मीरी फख्र महसूस करता है। इसी महान संस्कृति के तेजो-ताब से घबराकर दहशतगर्दों ने इस्लाम का बहाना ढूंढा है और कश्मीरियों को तास्सुबी बनाने की चालें चली हैं लेकिन अफसोस इस बात का है कि सूबे की सियासी पार्टियां दहशतगर्दों के खिलाफ एकजुट होकर हुर्रियत जैसी तंजीमों की मुखालफत नहीं कर सकीं और उल्टे भारतीय फौजों के खिलाफ ही लोगों को भड़काने का काम करती रहीं और उन पर तोहमत लगाती रहीं। चन्द वोटों की खातिर इन सियासी पार्टियों ने कश्मीर को बारूदी सुरंगों से सराबोर होते देखा और अपने-अपने हिसाब से उसका हिसाब-किताब लोगों को दिया मगर अब पानी सिर से ऊंचा जाने को तैयार है। कश्मीर को इस्लामी निजाम में बदलने की कसमें खाई जा रही हैं। इसके लिए कौन जिम्मेदार है? अपने सीने पर हाथ रखकर सभी इसका उत्तर दें।