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इस्राइल ऐतिहासिक मोड़ पर

वयोवृद्ध राजनेता और इस्राइल के प्रमुख परिवार से ताल्लुक रखने वाले इसाक हर्जोग इस्राइल के राष्ट्रपति निर्वाचित हुए हैं।

वयोवृद्ध राजनेता और इस्राइल के प्रमुख परिवार से ताल्लुक रखने वाले इसाक हर्जोग इस्राइल के राष्ट्रपति निर्वाचित हुए हैं। हर्जोग इस्राइली लेवर पार्टी के पूर्व प्रमुख हैं और विपक्षी नेता हैं, जिन्होंने वर्ष 2013 में प्रधानमंत्री नेतन्याहू के खिलाफ संदीय चुनाव लड़ा था, लेकिन वह हार गए थे। इस्राइल में राष्ट्रपति औपचारिक तौर पर राष्ट्राध्यक्ष होता है और संसदीय चुनावों के बाद सरकार बनाने के लिए राजनीतिक पार्टियों से संवाद उसकी प्रमुख जिम्मेदारी होती है। इस्राइल में राजनीतिक संकट के बीच दो साल में चार बार संसदीय चुनाव हो चुके हैं। सियासत में बड़े उलटफेर होते ही रहते हैं लेकिन प्रधानमंत्री नेतन्याहू के लिए बड़ी अजीब स्थिति है, जिस शख्स को उन्होंने चुनावों में पराजित किया था, वह राष्ट्रपति निर्वाचित हुआ है। इसके साथ ही प्रधानमंत्री नेतन्याहू की विदाई का रास्ता साफ हो गया है, क्योंकि विपक्षी दलों के बीच गठबंधन सरकार बनाने को लेकर सहमति बन गई है। नेतन्याहू इस्राइल के सबसे लम्बे समय तक प्रधानमंत्री रहने वाले नेता हैं और पिछले 12 वर्ष से देश की राजनीति उनके ही इर्दगिर्द घूमती रही है। विपक्ष के नेता येर लेपिड ने घोषणा की कि आठ दलों के बीच गठबंधन सरकार बनाने पर सहमति हो गई है।
गठबंधन के लिए  समझौते के तहत बारी-बारी से दो अलग-अलग दलों के नेता प्रधानमंत्री बनेंगे। सबसे पहले दक्षिणपंथी यामिना पार्टी के नेता नेफटाली बैनेट प्रधानमंत्री बनेंगे। बैनेट 2023 तक प्रधानमंत्री रहंेगे, उस वर्ष 27 अगस्त को वे ये पद मध्यमार्गी येश एटिड पार्टी के नेता येर लेपिड को सौंप देंगे। 8 दलों के गठबंधन में अरब इस्लामी पार्टी ‘राम’ पार्टी के नेता मसूर अब्बास भी शामिल  हैं। 120 सीटों वाली इस्राइली संसद नीसैट में 61 का बहुमत सिद्ध करने के लिए सभी आठ दलों को गठबंधन करने की जरूरत थी। 
यद्यपि नेतन्याहू ने विपक्षी गठबंधन को अपवित्र करार देते हुए इसे देश की सुरक्षा के लिए खतरनाक करार दिया है। नेतन्याहू हारी हुई बाजी जीतने में माहिर हैं लेकिन इस बार स्थितियां काफी भिन्न हैं। उन पर भ्रष्टाचार के मुकदमे चल रहे हैं, इसके बावजूद वे पिछले दो साल में हुए चार चुनावों में  खंडित जनादेश आने के बावजूद प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बने रहे हैं। नेतन्याहू की लिकुड पार्टी मार्च में हुए आम चुनावों में बहुमत हासिल नहीं कर सकी थी और चुनाव के बाद भी वह सहयोगियों का समर्थन नहीं हासिल कर सके। नेतन्याहू ने ईरान और गाजा का वास्ता देकर अपनी गद्दी बचाने की भरपूर कोशिश की। लेकिन विपक्षी गठबंधन का उद्देश्य इस समय नेतन्याहू शासन का अंत करना है। कोरोना काल में इस्राइल आैर फिलि​स्तीन में 11 दिन चली लड़ाई ने भी दुनिया का ध्यान यरुशलम की ओर खींचा था, जहां इस्राइल ने मानवाधिकारों का उल्लंघन करते हुए फिलिस्तीन नागरिकों को निशाना बनाया।
अब सवाल यह है कि इस्राइल में विपक्षी दलों की गठबंधन सरकार कैसी होगी क्योंकि इनके बीच भी कई तरह के मतभेद हैं। गठबंधन में दक्षिणपंथी, वामपंथी और मध्यमार्गी पार्टियां शामिल हैं। यह एक ऐतिहासिक घटनाक्रम है, क्योंकि पहली बार एक अरब इस्राइल पार्टी यूनाइटेड अरब लिस्ट गठबंधन में शामिल है। यूनाइटेड अरब लिस्ट को हिब्रू में राम कहा जाता है। किसी नेता के सरकार में मंत्री बनने की सम्भावना नहीं, लेकिन गठबंधन के साथ उनके लिए महत्वपूर्ण मुद्दों पर बातचीत होगी। नेफटाली बैनेट को सख्त दक्षिणपंथी नेता माना जाता है लेकिन विपक्षी गठबंधन के बाद अब यह अटकलें लगाई जा रही हैं कि वहां पर वामपंथी नेताओं का बोलबाला होगा और सरकार पर वामपंथी नेताओं का दबाव होगा। यद्यपि बैनेट कहते हैं कि यह सामूहिक नेतृत्व की सरकार होगी और हर किसी की बात सुनी जाएगी। 
बैनेट का कहना है कि नई सरकार ना पलायन करेगी, ना समझौता करेगी, ना अपना क्षेत्र किसी को सौंपेगी और न ही सैन्य आपरेशन करने से डरेगी। गठबंधन में शामिल कुछ दल स्वतंत्र​ फिलिस्तीन के पक्ष में हैं। इस्राइल में विपक्ष को सरकार बनाने के लिए ‘राम’ की जरूरत पड़ी है। अरब समर्थित ‘राम’ पार्टी का समर्थन लेने के बाद इस्राइल की नई सरकार विरोधियों पर उसी तरह से आक्रामक नहीं हो पाएगी। अगर नई सरकार को फिलिस्तीन या हमास के खिलाफ किसी आपरेशन को चलाना पड़ा तो उसमें अलग-अलग विचारधारा के बीच खिंचाव शुरू हो जाएगा और विचारधारा के बीच इस्राइल अपनी आक्रामकता खो देगा। गठबंधन सरकार का भविष्य अनिश्चित है। एक ना एक दिन तो इनमें मतभेद सामने आएंगे ही। राम पार्टी का किंगमेकर बनना फिलिस्तीन के लिए राहत की बात होगी। देखना होगा कि गठबंधन की खिचड़ी सरकार इस्राइल में कैसा प्रदर्शन करती है।
आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com

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