लंगर की परम्परा की शुरूआत 15वीं शताब्दी में गुरु नानक देव जी ने की थी। गुरु नानक जहां भी गए, जमीन पर बैठकर भोजन करते थे। उन्होंने लंगर की परम्परा की शुरूआत समाज में व्याप्त ऊंच-नीच, जात-पात को समाप्त करने के लिए की थी। फिर सिखों के तीसरे गुरु अमरदास जी ने लंगर की परम्परा को आगे बढ़ाया। पूरे विश्व में जहां-जहां भी सिख बसे हुए हैं, उन्होंने इस लंगर प्रथा को कायम रखा हुआ है।
सिख समुदाय द्वारा गुरु पर्वों पर, मेलों पर और शुभ अवसरों पर लंगर आयोजित किया जाता है। गुरुद्वारों में तो नियमित लंगर होते हैं। मुगल बादशाह अकबर ने भी गुरु के लंगर में आम लोगों के साथ बैठकर प्रसाद चखा था। हिन्दू धर्म स्थलों पर भी लंगर लगाए जाते हैं। शक्तिपीठों पर प्रबन्ध कमेटियां और सामाजिक संस्थाएं लंगर आयोजित करती हैं। बाबा अमरनाथ की यात्रा के दौरान अनेक संस्थाएं वहां श्रद्धालुओं के लिए लंगर लगाती हैं।
सिख धर्म का एक प्रमुख संदेश है-किरत करो नाम जपो और वंड छको यानी मेहनत करो, गुरु का सिमरन करो और मिल-बांटकर खाओ। लंगर में विभिन्न जातियों के लोग, सब छोटे-बड़े एक ही स्थान पर बैठकर लंगर खाते हैं। इससे मोहभाव, एकता भाव, शक्ति बल के साझे मूल्यों को चार चांद लगते हैं। लंगर की परम्परा सामाजिक एकता और सांझे भाईचारे की मजबूत नींव का आधार है। गुरु नानक देव जी ने यह संदेश दिया था कि ईश्वर एक है और जाति और सम्प्रदाय से अधिक महत्वपूर्ण होता है मानव का मानव से प्रेम क्योंकि-एक पिता एकस के हम बारिक’।
अमृतसर के स्वर्ण मन्दिर में दुनिया का सबसे बड़ा लंगर आयोजित होता है। यहां रोजाना हजारों लोग पंक्तियों में बैठकर लंगर खाते हैं। लंगर के माध्यम से सामाजिक समरसता का संदेश बहुत सशक्त है। स्वर्ण मन्दिर की रसोई को दुनिया की सबसे बड़ी रसोई कहा जाता है। रोज लगभग 12 हजार किलो आटा, 14 हजार किलो दाल, 1500 किलो चावल और 2000 किलो सब्जियों का इस्तेमाल होता है।
रोजाना रोटी मेकिंग मशीनें आैर श्रद्धालु 2 लाख चपातियां बनाते हैं। खीर बनाने में 5 हजार लीटर दूध, एक हजार किलो चीनी आैर 500 किलो घी का इस्तेमाल होता है। गुरु के लंगर पर जीएसटी की मार पड़ रही है। गुरुद्वारों के 450 साल के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ है कि लंगर कर व्यवस्था से प्रभावित हो रहा है। स्वर्ण मन्दिर में चलने वाले लंगर पर जीएसटी का विरोध हो रहा है। शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबन्धक कमेटी का कहना है कि यह एक सेवा है, जो लोगों को मुफ्त दी जाती है।
ऐसे में लंगर पर जीएसटी लगाना उचित नहीं है। पंजाब में कांग्रेस, अकाली दल और अन्य राजनीतिक दलों ने स्वर्ण मन्दिर, दुर्ग्याणा मन्दिर और रामतीर्थ मन्दिर में लंगर पर जीएसटी हटाने की मांग की है। पंजाब सरकार ने स्वर्ण मन्दिर, दुर्ग्याणा मन्दिर में लंगर के लिए होने वाली खरीदारी पर राज्य सरकार की तरफ से लगने वाले जीएसटी को खत्म करने का फैसला किया है। अब बारी केन्द्र की है।
लंगर पर जीएसटी को लेकर अकाली दल के नेता सुखबीर बादल ने भी भाजपा नेताओं से मुलाकात की थी। वित्त मंत्रालय पहले भी सफाई दे चुका है कि धार्मिक संस्थानों द्वारा चलाए जा रहे किसी फूड कोर्ट में दिए जाने वाले मुफ्त भोजन को जीएसटी के दायरे से बाहर रखा गया है। हालांकि लंगर बनाने के लिए इस्तेमाल होने वाली सामग्री जैसे चीनी, वनस्पति तेल, घी इत्यादि पर कर लगेगा। वित्त मंत्रालय का कहना है कि इनमें से ज्यादातर सामग्री का इस्तेमाल कई तरीके से होता है। ऐसे में चीनी आदि का इस्तेमाल किस उद्देश्य से होता है, इसे अलग करके देखना मुश्किल है। इनके लिए अलग दर नहीं रखी जा सकती।
वित्त मंत्री अरुण जेटली के सामने मुश्किल यह है कि यदि कुछ धार्मिक स्थानों को एक बार ऐसी राहत प्रदान कर दी गई तो देशभर में हजारों अन्य धर्मस्थलों से ऐसी मांग उठनी शुरू हो जाएगी। दूसरी ओर वास्तविकता यह है कि दुनिया की सबसे बड़ी रसोई पर जीएसटी का बोझ बढ़ रहा है। अब यह मांग उठी है कि स्वर्ण मन्दिर में आयोजित लंगर को वैट की तर्ज पर छूट दी जाए।
प्रसाद पर जीएसटी लगाना दानदाता को दंडित करने के समान है। गुरुद्वारा कमेटियों का सुझाव है कि स्वर्ण मन्दिर में जीएसटी लगने से पहले लंगर के लिए जितनी खरीदारी होती थी, उसकी गणना करवाकर उतनी मात्रा ही जीएसटी से मुक्त कर दी जाए। पूर्ववर्ती सरकारों ने भी लंगर पर वैट माफ कर दिया था। सिख समुदाय लंगर पर जीएसटी से आहत है। देशभर की गुरुद्वारा कमेटियां 14 अप्रैल को सभी गुरुद्वारों में जीएसटी हटाने का प्रस्ताव पारित कर केन्द्र को भेजेंगी। लोकतंत्र में जनभावनाओं का ध्यान तो रखना ही होगा। वित्त मंत्रालय को चाहिए भी कि इस मसले का समाधान निकाले, लंगर को जीएसटी से मुक्त कर दे।