उस दिन आसमां भी बिलखा होगा
जब सीमा पर जवान शहीद हुआ होगा
अस्ताचल को जाता भानू भी ठिठका होगा
जब डोली में बैठी बहना को शहीद भाई का मुंह दिखाया होगा
आंगन में बैठी बूढ़ी मां का आंचल भी दूध से भीग गया होगा
काल भी अपने किए खोटे काम पर पछताया होगा
जब मेहंदी वाले हाथों ने अपनी मांग को मिटाया होगा।
लेकिन अब आसमां लगातार बिलख रहा है। सरहद पार से रमजान के महीने में भी फायरिंग करने का दुस्साहस नहीं रुक रहा। सरकार ने रमजान के पवित्र महीने में संघर्ष विराम की घोषणा कर भटके युवाओं को मुख्यधारा में लाने का प्रयास किया था परन्तु पाकिस्तान की नापाक हरकतें जारी हैं। जम्मू-कश्मीर में अघोषित युद्ध जारी है। सीमापार से गोलाबारी, ग्रेनेड हमले लगातार बढ़ते जा रहे हैं। हमारे जवान शहादतें दे रहे हैं। जम्मू-कश्मीर के सांबा और रामगढ़ सैक्टर में पाकिस्तान की फायरिंग में बीएसएफ के असिस्टैंट कमांडेंट समेत चार जवान शहीद हुए जबकि पांच जवान घायल हुए।
आज राष्ट्र फिर सवाल पूछ रहा है कि क्या हमारे जवानों की जान इतनी सस्ती है? क्या हमने हिंसक हो उठे भेड़ियों के सामने अपने जवान चारा समझकर डाल रखे हैं। भेड़िये लगातार आक्रामक हैं और हम असहाय हो चुके हैं।पिछले चार वर्षों में इस वर्ष सबसे ज्यादा जवान सीमा पर सीजफायर उल्लंघन में शहीद हुए हैं। वर्ष 2014 में तीन जवान शहीद हुए थे, 2015 में 10 जवानों की शहादत हुई, 2016 में 13 जवानों ने देश के लिए अपनी जान दी, 2017 में पाक गोलीबारी में 18 जवानों को अपनी जान गंवानी पड़ी और 2018 में अब तक 27 जवान शहीद हो चुके हैं। चार वर्ष में कुल 71 जवानों ने देश के लिए कुर्बानी दी है। अभी तो आधा वर्ष ही बीता है। मौत का आखिरी आंकड़ा क्या होगा, उसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती है। एक जवान की तो इसी माह शादी तय थी। घर में जश्न का माहौल था, शादी के कार्ड भी छप चुके थे लेकिन माहौल मातम में बदल गया। यह सही है कि भारतीय सेना भी पाक को मुंहतोड़ जवाब दे रही है, दुश्मन की कई चौकियां भी तबाह की जा रही हैं। पाक रेंजर्स भी जरूर ढेर हुए होंगे। यह युद्ध का परिदृश्य नहीं तो और क्या है? भले ही युद्ध की घोषणा नहीं की गई लेकिन सीमाओं पर और जम्मू-कश्मीर में लगातार हमलों को आप क्या नाम देंगे? भारत की बेटियां विधवा हो रही हैं, माताओं की गोद सूनी हो रही है, पिता की आंखों में आंसुओं का सैलाब उमड़ पड़ा है, बच्चे अनाथ हो रहे हैं।
उन घरों और आंगनों का क्रंदन, विलाप, चीख-पुकार और उम्रभर के दर्द का अहसास राष्ट्रीय नेतृत्व और इस राष्ट्र को भी होना चाहिए। पाकिस्तान में जुलाई माह में आम चुनाव होने हैं और यह भी तय है कि कश्मीर व भारत वहां के हर राजनीतिक दल का चुनावी मुद्दा होंगे। वहां का हर नेता भारत के विरुद्ध आग उगलेगा। ऐसी स्थिति में पाकिस्तान से उम्मीदें नहीं की जानी चाहिएं कि वह संघर्ष विराम का पालन करेगा। लगातार हमले और हत्याओं के बावजूद मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती वार्ता का राग अलाप रही हैं। वह कहती हैं ‘‘समाधान वार्ता से ही निकलेगा, पाकिस्तान हमारे जवानों को नहीं मारे।’’ मैं समझ नहीं पा रहा कि महबूबा भारत की पैरोकार हैं या पाकिस्तान की। भारत बातचीत किससे करे, पाकिस्तानी फौज से या दीवारों से। महबूबा की बयानबाजी के बाद जैश-ए-मोहम्मद का सरगना मसूद अजहर रमजान के दौरान आतंकी हमलों को और ज्यादा और तीखे करने की धमकियां देता है। उसने तो संघर्ष विराम को आतंकवादियों के लिए ईदी करार दिया है। यह कहां का इन्साफ है कि पत्थरबाजों का सामना करने वाले जवानों के खिलाफ तो कानूनी केस दर्ज किए जाएं और पत्थरबाजों को माफी दे दी जाए। क्या सीआरपीएफ वाहन को घेर कर पथराव करना पत्थरबाजों का अधिकार है? इससे हमारे जवानों का मनोबल गिर सकता है।
29 मई को दोनों देशों के डीजीएमआे के बीच 2003 के संघर्ष विराम समझौते को लागू करने पर सहमति होने के बावजूद परगवाल, कानाचक आैर खौर सैक्टर में अंतर्राष्ट्रीय सीमा पर पाकिस्तानी रेंजर्स की भारी गोलीबारी में जवानों की शहादत का सिलसिला जारी है। यह पाकिस्तान की कुटिल रणनीति है। अब अमरनाथ यात्रा शुरू होने वाली है। आतंकी यात्रा को निशाना बना सकतेे हैं। आतंकी, अलगाववादी आैर पत्थरबाज मिलकर कश्मीर में शांति नहीं होने देंगे। राष्ट्रीय नेतृत्व को स्थिति का गम्भीरता से विश्लेषण करना चाहिए कि आखिर संघर्ष विराम से क्या हासिल हुआ? कश्मीर में शांति और स्थिरता आतंकवाद का समूल नाश किए बिना नहीं आ सकती। यदि पाकिस्तान को एक बार सबक सिखा दिया जाए तो एशिया से आतंकवाद का काफी हद तक सफाया हो जाएगा।