नेताजी द्वारा जर्मनी पहुंचने का यह प्लान 1941 में बना था। इस प्लान के मुताबिक नेताजी के दूत द्वारा लालाजी को गुप्त संदेश मिलने के दो हफ्ते बाद लाला जी और रमेश जी दिल्ली से लाहौर आने वाली गाड़ी के इंतजार में लाहौर स्टेशन पर खड़े थे। गाड़ी आई और भीड़ में लम्बी दाढ़ी और पगड़ी बांधे एक व्यक्ति उतरा और लाला जी के पास आकर उसने उनकी पीठ पर हल्का-सा हाथ रखा और आगे चल पड़ा। लालाजी समझ गए और उस व्यक्ति के पीछे-पीछे हो लिए।
इस ‘प्लान’ के अनुसार लाला जी ने एक ट्रक किराए पर ले रखा था, उस ट्रक में बकरियां भरी पड़ी थीं, नीचे चारे से पूरा ट्रक भरा हुआ था। ट्रक तक पहुंच कर लालाजी ने अपना भेष बदला और सिर पर ‘साफा’ बांध कर ट्रक ड्राइवर बन गए। पिताजी को ट्रक के ‘क्लीनर’ का रोल मिला था। उन्होंने कपड़े बदले सिर पर साफा बांदा और क्लीनर बन गए। फिर उस अनजान व्यक्ति को पीछे ट्रक में बकरियों के बीच चारे में छिपा दिया गया। यह अजनबी और कोई नहीं नेता जी सुभाष चन्द्र बोस थे। फिर ट्रक लाहौर से पेशावर की ओर रवाना हो गया। नेता जी को लाहौर से पेशावर और दर्रा खैबर से अफगानिस्तान पहुंचाना कोई आसान काम नहीं था। क्योंकि अंग्रेजों को भी यह भनक लग चुकी थी कि नेताजी पंजाब के रास्ते अफगानिस्तान से अंग्रेजों के जानी-दुश्मन जर्मनी के तानाशाह हिटलर से मिलने जा रहे हैं।
मुझे बताया गया जो कि मुझे आज भी याद है कि लाहौर से निकल पहले गुरुद्वारा पंजा साहिब के बाहर अंग्रेजों की नाकेबन्दी थी। फिर अटक के किले के नीचे नार्थ-वैस्ट-फ्रंटियर की शुरूआत पर नाकेबन्दी थी और तीसरी नाकेबंदी पेशावर शहर और दर्रा खैबर से 23 किलोमीटर के बीच थी। लाला जी और रमेश जी ने सांसें रोक-रोक कर तीनों नाकेबंदियों से सुरक्षित नेताजी को दर्रा खैबर पार करवा कर अफगानिस्तान पर उतारा जहां जर्मनी के हैलीकॉप्टर खड़े थे। दादा जी और पिता जी बताते हैं कि जब जर्मनी के सैनिक उनके ट्रक के नजदीक आए तो नेताजी को पीछे से बकरियों के बीच से चारे में से निकाला गया। हैलीकॉप्टर चढ़ने से पहले नेताजी की आंखें भर आईं। पहले उन्होंने लाला जी फिर रमेश जी को गले लगाया और लाला जी को ‘सैल्यूट’ कर ‘जय हिन्द’ कहकर हैलीकॉप्टर चढ़ गए।
नेताजी तो सकुशल जर्मनी पहुंच गए लेकिन लाहौर वापिस आते ही लालाजी और रमेश जी को अंग्रेजों ने गिरफ्तार कर लिया। पूज्य चाचा जी तो तब बहुत छोटे थे। सिर्फ 11 वर्ष के थे। 1930 में जब चाचा जी पैदा हुए तो हमारी दादी श्रीमती शांति देवी जी को तीन माह की जेल हुई थी। वे दूध पीते बच्चे थे और उन्हें भी दादीजी के साथ ही जेल में रखा गया था। पिता जी की बड़ी दो बहनों को भी इस बात का पता न चला कि आखिर लालाजी और रमेश जी ने ऐसा क्या किया जो इन दोनों को इकट्ठे ही अंग्रेज पकड़ कर ले गए?
इस बात की भनक परिवार में ही शायद पूज्य चाचा जी समेत किसी को नहीं है कि लाला जी और रमेश जी को अंग्रेज नेता श्री सुभाष चन्द्र बोस को भारत से अफगानिस्तान और फिर जर्मनी गायब करने के शक में पकड़ा गया था। यह रहस्योद्घाटन पूज्य स्वर्गीय एवं शहीद दादा लालाजी व पिता रमेश जी ने सिर्फ मुझे ही बताए। अंग्रेज सरकार को भी लाला जी और रमेश जी पर शक था। उनके पास इसके कोई ठोस सबूत नहीं थे कि इन दोनों ने ही नेताजी को पार लगाया।
अपने शुरू के लेखों में मैंने जिक्र किया था कि लाला जी को लाहौर के किले में दो वर्ष कठोर सजा मिली थी। रोज सुबह-शाम बर्फ की सिल्लियों पर नंगे बदन लिटाया जाता था। उन्हें काल-कोठरी में अकेले बन्द रखा जाता था। लाला जी ने मुझे बताया था कि उस काली कोठरी में कभी-कभी एक बिल्ली उनसे मिलने आती थी। पुराने कैदी के बचे हुए साबुन से वे हाथ साफ किया करते थे।
बर्फ की सिल्लियों पर लिटा कर दो वर्ष तक अंग्रेजों ने लालाजी को शारीरिक तकलीफ दी और बार-बार यह कहते रहे कि वे सुभाष चन्द्र बोस को कहां छोड़ कर आए हैं? लेकिन लाला जी ने भी अपना मुंह न खोला और इस तरह कष्ट सह कर भी भारत माता के इस सपूत ने अंग्रेजों को यह नहीं बताया कि आखिर नेताजी कैसे और किस रास्ते से भारत से जर्मनी पहुंचे।
कहां गए वाे लोग! कहां मिलेंगे ऐसे लोग!
शक के आधार पर पकड़े पिता रमेश जी को तो छह माह बाद छोड़ दिया गया किन्तु लाला जी पर अंग्रेजों को पूरा शक था। पहले उन्हें अण्डेमान निकोबार की काले पानी की जेल में भेजने की योजना थी। बाद में लाहौर के किले में उन्हें कैद कर दिया गया। जहां दो वर्ष तक उन्हें अधमरा करने के उपरान्त छोड़ा गया कि अब लाला जी जिन्दा नहीं बचेंगे लेकिन छह माह पश्चात ही उनके दोस्त और स्वतंत्रता सेनानी डा. बाली ने उन्हें फिर से तंदुरुस्त खड़ा कर दिया। स्वतंत्रता का दीवाना सिपाही फिर से अंग्रेजों से टक्कर लेने को तैयार था।
उधर पूरे देश में नेताजी के जर्मनी पहुंचने की खबर फैल गई। महात्मा गांधी और पं. नेहरू को भी सारी बातें बताई गईं। लाला जी पर नेता जी को भारत से अफगानिस्तान पार करवाने की बातें भी कांग्रेसी नेताओं ने सुनीं। पंडित जवाहर लाल नेहरू ने एक बार फिर इस मामले पर चुप्पी साध ली।