1947 के भारत-पाक बंटवारे के पश्चात पंजाब प्रांत की राजधानी शिमला बना दी गई। 1952 के चुनाव में लालाजी जब अभूतपूर्व सफलता से कांग्रेस को जिताकर लाए तो उन्हें ट्रांसपोर्ट, स्वास्थ्य और शिक्षा विभाग के महत्वपूर्ण मंत्रालय दिए गए। उसी कैबिनेट में प्रताप सिंह कैरों भी सहकारिता मंत्री थे। लालाजी व प्रताप सिंह कैरों की आपस में बेहद गहरी दोस्ती थी। फिर 1954 में पंडित जी ने देश और पंजाब को एक शानदार, सुन्दर और फ्रैंच आर्कीटैक्ट ‘कार्बूजे’ द्वारा डिजाइन्ड शहर चंडीगढ़ दिया। आज भी चंडीगढ़ शहर जैसी जगह पूरे भारत में कहीं नहीं। चंडीगढ़ के सचिवालय, हाई कोर्ट और विधानसभा की बिल्डिंग देखने लायक हैं।
पंजाब के सभी मंत्रियों काे सैक्टर-दो सुखना लेक की सड़क पर कोठियां आवंटित कर दी गईं। लालाजी और प्रताप सिंह कैरों को भी बराबर में ही कोठियां प्राप्त हुईं। इन दोनों में इतनी छनती थी कि लालाजी के अनुसार हमारी पड़दादी और लालाजी की मां रसोई में नाश्ता बनाती थीं तो नीचे बैठकर लालाजी और कैरों मिलकर खाना खाते थे। मेरे पिताजी व कैरों के दोनों सुपुत्रों सुरेन्द्र और गुरिंदर में बहुत प्रेम था। तीनों ही युवा थे तो कभी हमारे लालाजी की कोठी और कभी कैरों की कोठी पर पूज्य पिता रमेश जी और गुरिंदर, सुरेन्द्र चाय की चुस्कियों पर ‘कैरम बोर्ड’ और शतरंज का मजा लिया करते थे। खान-पान भी साथ ही चलता था। इस दौरान 1948 में लालाजी और पिता रमेश जी ने उर्दू अखबार हिंद समाचार की नींव रख दी थी।
पिताजी उस अखबार के सम्पादक थे। हालांकि शुरू में हिंद समाचार ज्यादा नहीं चला, लेकिन उस समय के समकालीन अन्य दो अखबार, जो लाहौर में भी बेहद लोकप्रिय थे, जालन्धर से भी निकालने पर बेहद लोकप्रिय थे। दैनिक प्रताप और दैनिक मिलाप की लोकप्रियता उस समय उफान पर थी। खासतौर पर प्रताप के सम्पादक महाशय कृष्ण जी के लेख तो पढ़ने के लिए पाठक तरसा करते थे। जहां लालाजी दिल से, बिना डर और भावुकता से सम्पादकीय लिखा करते थे वहीं पिताजी रमेश जी के लिखने के स्टाईल में फर्क था। वे रिसर्च करके, लॉजिक से अपने लेख के शीर्षक को पूरा करते थे।
जब लालाजी मंत्री बने और पिताजी पर अखबार के सम्पादकीय लिखने का भार आ गया तो उन्होंने अपने पहले सम्पादकीय में मंत्री पद पर विराजमान अपने पिता श्री लाला जगत नारायण जी के ध्यानार्थ लेख िलखा था। इस लेख का शीर्षक था ‘पिताजी अब आपके और मेरे रास्ते बदल गए’। अपने लेख में श्री रमेश जी ने लिखा कि वैसे तो लोकतंत्र के चार स्तंभों में न्यायपालिका के पश्चात कार्यपालिका तथा प्रैस का महत्पवपूर्ण रोल है लेकिन हमारे संविधान में प्रैस का रोल सबसे महत्वपूर्ण है। प्रैस को संविधान में ‘Watch Dog’ कहा गया है कि अगर संविधान की तीन टांगें टेढ़ी हों या गलत काम करने लगें तो प्रैस का दायित्व है कि वह उन पर न केवल नजर रखे बल्कि जनता के समक्ष इनके भ्रष्टाचार या अन्याय के मुद्दों को उजागर करे। क्या आज के जमाने में संविधान द्वारा आधिकारिक देश का मीडिया ‘Watch Dog’ की भूमिका निभा रहा है? एमरजैंसी से लेकर आज तक इसके उलट मीडिया ‘Dog Watch Show’ बनकर रह गया है। कितने अच्छे थे वो दिन! अन्त में पिताजी रमेश जी लिखते हैं कि पूज्य पिताजी आप मंत्री पद पर बैठे और अपनी राज भक्ति का पालन करते हुए पंजाब प्रदेश का उद्धार करें।
मेरे को जो दायित्व आप ने दिया उसमें राष्ट्रभक्ति का पालन करना है। अब एक सम्पादक के रूप में आप के सभी अच्छे और बुरे प्रशासनिक आदेशों और कामों पर मुझे नजर रखनी है। आप अपना कार्य करें और मैं एक एडिटर/पत्रकार के नाते अपना दायित्व निभाऊंगा। इसलिए आज से हम दोनों बाप-बेटे के रास्ते अलग-अलग हो चुके हैं। इस बात पर पूज्य दादाजी ने पिता जी को फोन करके शाबासी दी और कहा कि तुम मेरे योग्य एवं नेक पुत्र हो। पत्रकारिता का अपना दायित्व निभाओ। मैं ईमानदारी से राजनीति करूंगा, मैं तुम्हारे पहले सम्पादकीय पर खुश हूं। न जाने कैसे लोग थे? पिताजी के इस प्रथम लेख पर उस समय के सुप्रसिद्ध एवं प्रतिष्ठित और पंजाब की सबसे बड़ी अखबार प्रताप के सम्पादक महाशय कृष्ण जी ने अपने अग्र लेख में पिताजी के लेख के सम्बन्ध में टिप्पणी कीः- “रमेश पैन से नहीं बल्कि तोशे (चाकू) से लिखता है। आगे चलकर एक दिन रमेश पंजाब का सबसे तीक्ष्ण, बेबाक लेखक बनेगा। मेरा आशीर्वाद उसे प्राप्त है।” (क्रमशः)