मैं तो ‘It’s my Life’ के ऐतिहासिक सफर पर चल रहा हूं। इस बीच दो बड़े हादसे पिछले थोड़े से अर्से में हुए। पहले तो मेरी Best Friend दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित जी स्वर्ग सिधार गईं और कल मेरी बहन श्रीमती सुषमा स्वराज जी एक लम्बी बीमारी के पश्चात नहीं रहीं। दोनों राजनीति की संभ्रांत महिलाएं और देश की राजनीति की दिग्गजों ने राजधानी दिल्ली के मुख्यमंत्री के तौर पर और केन्द्र में अपनी गहरी छाप छोड़ी है।
शीला दीक्षित और मेरी दोस्ती बहुत पुरानी है जब शीला जी शीला कपूर से शादी के बाद शीला दीक्षित बनीं। हम दोनों में हमेशा राजनीति और उससे हटकर चर्चे होते थे। शीला जी जब दिल्ली की मुख्यमंत्री बनीं तो सबसे पहले ‘डिनर’ पर मुझे और किरण को बुलाया और बोलीं अब मैं दिल्ली की मुख्यमंत्री हूं, तुम मेरा साथ दोगे? मैंने और किरण ने एक स्वर में बोला ‘हां-हां, हम तो आप के साथ हैं’। खैर, शीला जी मुख्यमंत्री रहीं और बाद में कांग्रेस की राजनीति में उलझी रहीं। मौत से दो दिन पहले मुझे फोन आया था और बोलीं ‘अश्विनी, तुम्हारे अखबार में ‘दिल्ली कांग्रेस की कमान किसे दी जाएगी’ से संबंधित खबर प्रकाशित हुई है। शुरू में मेरा नाम भी है लेकिन मैं अब राजधानी दिल्ली में कांग्रेस की कमान सम्भालने की इच्छुक नहीं हूं। मैंने कहा आपका यह बयान प्रकाशित कर दें।
शीला जी बोलीं नहीं, यह तो तुम्हारे साथ एक दोस्त के नाते बात कर रही हूं, अखबार में प्रकाशन के लिए नहीं। ऐसी थी मेरी और शीला जी की दोस्ती। दुःख में सुख में केवल सच्चे दोस्त ही साथ दे सकते हैं। मेरी बहन सुषमा स्वराज इस दुनिया को विदा कर गईं। बहुत दुःख हुआ। पूज्य दादाजी और पिताजी से लेकर मेरे तक सुषमा जी के साथ गहरा रिश्ता था। खासतौर पर किरणजी और सुषमा जी में भी बहुत प्यार था। कई बार सुषमा जी मेरे से नाराज होती थीं तो मेरे साथ बात न करके किरण जी से लम्बी-लम्बी बातें करती और मेरी शिकायतों का दौर शुरू हो जाता था। इस लेख में मैं सुषमा जी की 1977 की एक फोटो प्रस्तुत कर रहा हूं। जब वे मात्र 25 वर्ष की थीं और वे हरियाणा विधानसभा में विधायक चुनी गई थीं।
सुषमा जी के यह फोटो पूज्य दादाजी लाला जगत नारायण और हरियाणा के प्रथम मुख्यमंत्री चौ. देवीलाल जी के साथ हैं। अब तो यह तीनों ही इस दुनिया में नहीं रहे। छोटी सी सुन्दर गुड़िया सुषमा जी को चौ. देवीलाल जी जालन्धर स्थित हमारे घर लाए थे। लालाजी और चौ. देवीलाल ‘पग वंडी भरा’ यानि दोनों अपनी-अपनी पगड़ियां एक-दूसरे के सिर पर बांधने के भाई थे। लालाजी और चौ. देवीलाल दोनों ही एक-दूसरे के बेहद नजदीक थे।
जब 1977 में चौ. देवीलाल जी हरियाणा के मुख्यमंत्री बने तो लालाजी से मिलने जालन्धर आए, साथ में अपनी सबसे छोटी उम्र की विधायिका सुषमा को भी लाए। उस समय के पश्चात पंजाब केसरी परिवार से सुषमा जी जुड़ गईं जो आज तक कायम रहा। बात यहीं खत्म नहीं हो जाती। जब मैं दिल्ली आया और पंजाब केसरी का प्रकाशन दिल्ली से शुरू किया तो सुषमा जी का आशीर्वाद मेरे पर, किरण पर और मेरे बेटों आदित्य, अर्जुन और आकाश पर आिखरी समय तक बना रहा। फिर 1995 में सुषमा जी ने मुझे अपना भाई बना लिया।
1995 से अब तक मुझे राखी बांधती थीं। कई बार हमारे लोधी एस्टेट के घर में आईं, पहले I & B Minister के तौर पर, फिर मुख्यमंत्री के और बाद में विदेश मंत्री के रूप में। कई बार मैं उनके निवास पर राखी बंधवाने गया। परंपरागत रूप से राखी बांधने की कला में सुषमाजी माहिर थीं। प्यार से राखी बांधतीं और माथे पर टीका लगातीं- ‘मेरे भाई तूं सदा उच्चतम शिखरों को छुए, भगवान तुझे स्वस्थ रखे और लम्बी उम्र बख्शे’।
1995 से 2018 तक शायद पिछले 23 वर्षों में कोई ऐसा करवा चौथ का त्यौहार हो जब सुषमा जी और मेरी पत्नी किरण जी ने पति की लम्बी उम्र के इस त्यौहार को साथ न मनाया हो। केन्द्रीय मंत्री और मुख्यमंत्री के दौर में भी सुषमा जी किरण और उनकी सहेलियों के साथ यह त्यौहार मनाती थीं। मेरी पत्नी किरण के मुताबिक उसने अपने जीवन में सुषमा जी के कथा वाचन से सुन्दर बोल शायद पहले नहीं सुने थे। सुषमा जी किरण और सभी महिलाओं के साथ करवा चौथ का ‘करवड़ा घुमाती’ और सात भाईयों की एक बहन की कथा सुनातीं। मुझे आज भी याद है जिस घटना को मैं और किरण भुला नहीं सकते। 2014 में देश में लोकसभा चुनाव होने थे।
श्री नरेन्द्र मोदी प्रधानमंत्री के पद के लिए मैदान में उतरे थे। पूरी भाजपा और श्री नरेन्द्र मोदी की तूती देश में बज रही थी। ऐसे में अखबारों में पढ़ा कि श्री मोदी के नेतृत्व में भाजपा के सभी नेता टिकटों की बांट के कार्य में लगे हैं। मेरे लिए यह एक सामान्य खबर थी लेकिन मुझे पता नहीं था कि उसी दिन शाम को कैसे मेरी किस्मत बदलने जा रही थी। उन दिनों हमारी चाची अपोलो अस्पताल में ‘कौमा’ में पड़ी थीं। मैं और किरण हर दस दिन में उनके स्वास्थ्य संबंधी हालचाल जानने के लिए अपोलो अस्पताल जाया करते थे। हम दोनों चाची जी की इस हालत पर बेहद गंभीर थे। उस यादगार दिन की शाम को मैं और किरण चाची को देखने के उपरान्त वापिस अपनी कार में घर आ रहे थे। अचानक किरण जी के मोबाइल की घंटी बजी और फोन पर सुषमा जी थीं।
सुषमा जी बोलीं ‘किरण अश्विनी क्या तुम्हारे साथ है?’ किरण बोली ‘हां’ तो इस पर सुषमाजी बोली ‘जरा फोन अश्विनी को देना’। मैं जब फोन पर आया तो बाेला ‘नमस्कार सुषमाजी’, इस पर सुषमा जी बोलीं ‘अश्विनी बेटा तेरी टिकट हम सबने यानि मोदी जी, अमित जी, राजनाथ जी, अरुण जी और मैंने भी करनाल से संसदीय चुनाव लड़ने के लिए ‘फाइनल’ कर दी है’। मेरे पर मानो हजारों टन का बम गिरा। तब तक मैंने फोन का ‘स्पीकर’ भी चला दिया। किरण भी मेरी सुषमा जी से बातचीत सुन रही थी।
किरण ने हाथ से इशारा किया ‘नहीं! नहीं!’ मुझे सपनों में भी इस बात का आभास नहीं था कि मुझे करनाल (हरियाणा) से श्री नरेन्द्र मोदी जी टिकट देंगे। साथ ही हम तो विशुद्ध अखबार वाले थे। बेशक हमारे दादाजी और पिताजी भी राजनीति में कूदे और सफल रहे थे लेकिन मेरे और किरण के संबंध तो सोनिया जी, राहुल और प्रियंका से बड़े गहरे थे। वहीं संघ और भाजपा से भी बहुत ही गहरे संबंध थे। ऐसे में चलते-चलते भाजपा की टिकट मेरे लिए यह एक अचानक बम गिरना नहीं तो और क्या था?किरण बार-बार मुझे ‘ना! ना!’ का इशारा कर रही थी। मैंने सुषमा जी को कहा ‘बहन जी, आप तो करनाल से तीन बार चुनाव लड़ी और हार गईं।
मुझे हराने के लिए करनाल क्यों भेज रही हो’। सुषमा जी बोलीं ‘बेटा तब की बात और थी, अब तो तुम जीत ही जाओगे।’ मैंने कहा अच्छा ‘मैं सोच कर बताता हूं’ लेकिन सुषमा जी न मानीं और मेरे मुंह से ‘हां’ करवा कर ही चैन लिया। बाद में सुषमा जी की बात सच साबित हुई और मैं साढ़े तीन लाख वोटों से करनाल से सांसद चुना गया। बाद में सुषमा जी और मैं संसद के ‘सैंट्रल हाल’ में बैठे चाय पी रहे थे तो सुषमा जी बोलीं ‘बेटा अश्विनी मैंने कहा था न कि तुम जीतोगे, मेरी बात सच हुई’। मैंने सुषमा जी के पांव हाथ लगाए और कहा कि ‘बहन जी’ आपकी वजह से ही मैं लोकसभा में बैठा हूं। आज मैं सुषमा जी को याद कर रहा हूं और रो रहा हूं। (क्रमशः)