किरण के पिताजी पाकपट्टन (अब पाकिस्तान) से भारत-पाक बंटवारे के पश्चात जालन्धर शहर आए थे। बाद में पी.डब्ल्यू.डी. डिपार्टमेंट में एस.सी. के पद से रिटायर हुए। कट्टर ब्राह्मण परिवार से ताल्लुक रखते थे। सात बहनों और भाई में से किरण उनकी चौथी बेटी है। हमारी बचपन की दोस्ती उस समय प्रेम प्रसंग में बदल गई जब मैं और किरण कालेज में पढ़ाई के लिए पहुंचे। किरण ने जालन्धर के के.एम.बी. और खालसा कालेज से पहले बी.ए. की डिग्री हासिल की और बाद में डी.ए.वी. कालेज से राजनीतिक शास्त्र (Political Science) की पोस्ट ग्रेजुएशन (MA) की डिग्री फर्स्ट डिवीजन में प्राप्त की।
मैंने भी डी.ए.वी. कालेज से बी.काम. की डिग्री फर्स्ट क्लास में हासिल की और बाद में पंजाब यूनिवर्सिटी चंडीगढ़ से पत्रकारिता (Journalism) की Post Graduation की डिग्री 1978 तक हासिल कर ली थी। बाद में 1980 में मास्को ओलिम्पिक्स (Moscow Olympics), इंग्लैंड और अमरीका की यात्रा पर गया और विभिन्न अखबारों के संस्थानों और खासतौर पर अमरीकी-यूनिवर्सिटियों के Journalism Departments का दौरा किया। यह मेरे जीवन की पहली विदेश यात्राएं थीं।
उधर 1979 की शुरूआत में मैंने अपनी दादी स्व. शांति देवी को कहा कि मैंने अपने लिए लड़की पसंद कर ली है। आप दादाजी और पिताजी को कहकर मेरी शादी उससे करवा दें तो अच्छा रहेगा। हालांकि मेरे दादा और दादी पुरानी सोच के थे लेकिन उनका मेरे प्रति प्यार बेहद ज्यादा था। मेरी दादी तो मानो इस काम के पीछे ही लग गई। उन्हें लगता था कि मैं अपने जीवनकाल में अपने पोते की शादी और पोतनूंह का चेहरा देख सकूं। एक दिन मेरे दादा और दादीजी ने मुझे अपने कमरे में बुलाया, जहां मेरे पिताजी और माताजी बैठे हुए थे। मेरे दादाजी बोले ‘बेटा तू जिस लड़की से शादी करना चाहता है, उसके मां-बाप को कह कि हमसे कल आकर मिलें।’
मैंने किरण से फोन पर बात की और अगले दिन शाम के वक्त किरण के पिताजी और माताजी अपनी बेटी का रिश्ता लेकर हमारे घर आए। हालांकि मेरे ससुर श्री विष्णु दत्त त्रिखा जी ने शादी के बाद मुझे बताया कि उनका परिवार तो ब्राह्मण परिवार है और शर्मा परिवार के बेटियों और बेटों की शादी ब्राह्मण परिवारों में ही होती थी लेकिन लालाजी और रमेश जी का व्यक्तित्व ही कुछ ऐसा था कि मेरे ससुर अपनी बेटी किरण शर्मा का रिश्ता लेकर हमारे घर पधारे।
जब लालाजी और रमेशजी के समक्ष ये दोनों बैठे तो सास बताती हैं कि थोड़ी देर के लिए घबराए फिर सास ने लालाजी और रमेशजी से कहा कि ‘बच्चे एक-दूसरे को जानते हैं और पसंद भी करते हैं। हम चाहते हैं कि इन दोनों की शादी कर दी जाए।’ लालाजी बोले कब सगाई करें और कब शादी? फिर बोले कल शाम को सगाई होगी और अब जुलाई का महीना चल रहा है। 25 अगस्त को जन्माष्टमी का शुभ दिन है। उसी दिन मैं किसी भी आर्य समाज मंदिर में सादगी से अपने पोते अश्विनी की शादी निश्चित करता हूं। बात बन गई और अगले दिन हमारे दफ्तर की इमारत में मेरी और किरण की सादगी से सगाई संपन्न हुई।
किरण सिर्फ तीन कपड़ों और मेरी दादी के गहने डाल कर हमारे घर पहुंची। 25 अगस्त 1979 को शादी एक घंटे में सम्पन्न हुई और 26 अगस्त के दिन हम फ्लाईट पकड़ कर हनीमून के लिए श्रीनगर पहुंच गए। 1978 से 1981 तक लालाजी राजनीति से दूर एक समाज सुधारक के तौर पर पूरे पंजाब, जम्मू-कश्मीर, हिमाचल, हरियाणा और उत्तर प्रदेश के दौरे किया करते थे। अपने भाषणों में लालाजी जनता का आह्वान करते थे कि अपने लड़कों की शादी सादगी से करो, दहेज मत लो, बारात में सिर्फ 11 व्यक्ति ही शामिल हों और एक रुपए के शगुन से लड़की को तीन कपड़ों में घर लाओ।
मैं भी तो दादाजी का पोता था। जब मेरा विवाह पक्का हुआ तो मैं अपने दादाजी से बोला आप शहर-शहर, कस्बों और गांवों में उपदेश देते हो। अब जनता यह जानना चाहेगी कि लालाजी ने अपने पोते की शादी कैसे की। इसलिए मैंने भी यह प्रण लिया है कि मेरी शादी किरण के साथ सादगी से आर्य समाज मंदिर में होगी। कोई बारात नहीं होगी। हम एक घंटे में आर्य समाजी ढंग से लगन के फेरे लेंगे। हमारी तरफ से आए अतिथियों को चाय, मिठाई और ठंडा पिलाया जाएगा। हम एक रुपए के शगुन के साथ किरण को तीन कपड़ों में ही घर लाएंगे। लालाजी और पिता रमेशजी इस कदर खुश हुए कि उन्होंने मुझे गले से लगा लिया।
25 अगस्त 1979 यानि जन्माष्टमी के शुभ दिन जालन्धर के होशियारपुर अड्डा के आर्य समाज मंदिर में हमारी शादी सम्पन्न हुई। करीब दस हजार लोग इसमें शामिल हुए। पंजाब के उस समय के मुख्यमंत्री स. प्रकाश सिंह बादल, उनकी कैबिनेट के सभी सदस्य, हरियाणा के मुख्यमंत्री चौ. देवीलाल और सभी मंत्री, हिमाचल के मुख्यमंत्री श्री शांता कुमार और पांच राज्यों के राज्यपाल मेरी शादी में हमें आशीर्वाद देने के लिए शरीक हुए। ज्यादातर लोग तो यह देखने आए थे कि लालाजी अपने पोते की शादी किस ढंग से करते हैं। बाद में घर पर सभी रिश्तेदारों और अतिथियों को प्रीतिभोज करवाया गया और इस तरह मेरी और किरण की शादी सम्पन्न हुई।
बिना दहेज के तीन कपड़ों में किरण को अपने घर लाने के बाद मेरे दादाजी और पिताजी ने अपने व्यक्तिगत बैंक अकाउंटों में से मुझे 50-50 हजार के चैक दिए और मैंने यह पैसा किरण को दिया, ताकि वो अपने लिए जरूरत के कपड़े खरीद सके। 1979 में एक लाख रुपये की रकम आज के एक करोड़ के बराबर बनती है। शादी के अगले ही दिन लालाजी और रमेशजी ने एक अलग कमरे में बुलाकर यह चैक सौंपे और कहा कि, बेटा दहेज तो हमने लिया नहीं कम से कम बहू किरण को जरूरत के कपड़े तो खरीद कर दो। 1982 में आदित्य बड़ा बेटा पैदा हुआ और 1993 में दो जुड़वां अर्जुन और आकाश पैदा हुए। आज ये तीनों लड़के पंजाब केसरी का काम देख रहे हैं।
आदित्य चोपड़ा पूरे संस्थान का काम, अर्जुन अदालत तथा वेबसाइट और आकाश सर्कुलेशन, एडवर्टाइजमेंट, पूरे संस्थान का हिसाब-किताब और मेरी कैंसर की बीमारी की दवाएं और दो बार अमरीका दौरे तथा यहां दिल्ली में चल रहे ईलाज का सारा काम देख रहे हैं। मेरी पत्नी किरण और तीनों लड़कों श्रवण पुत्रों का एक ही लक्ष्य है कि किसी भी तरह मुझे जिन्दा रखना है। कहते हैं आप अखबार का सारा काम हम पर छोड़ दो, बस अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखो। परमात्मा ऐसे पुत्र सबको दे।
बाद में लालाजी और मेरी पत्नी किरण के बीच प्यार और सेवाभाव बढ़ता गया। लालाजी के लिए किरण सुबह 5 बजे उठकर उनके नहाने के लिए तेल के ‘स्टाेव’ पर पानी गर्म करके उन्हें देती। उनके लिए परांठे और सब्जी बनाती। शाम को लालाजी चाय के साथ पकौड़े खाने के शौकीन थे। किरण उनके लिए पकौड़े बना कर दफ्तर में हर शाम 5 बजे भेजती। मैं और लालाजी रोज शाम को पकौड़ों और चाय का आनंद उठाते। कई बार लालाजी मुझे शाम 5 बजे दफ्तर में इंटरकाम करते और कहते ‘बेटा, किरण काे कह दो जल्दी से पकौड़े और चाय घर से भिजवाए’। हमारा घर और दफ्तर दोनों साथ-साथ थे। हम दादा, पोता हर शाम किरण के हाथ के बने पकौड़े और चाय का मजा इकट्ठा लेते थे।
साथ में दादाजी मुझसे दफ्तर की सारी खबरें पूछते थे। हम दोनों प्रदेश और देश के राजनीतिक हालात पर बातें करते। दादाजी मुझे इतिहास की बातें बताते। उन दिनों एमरजैंसी खत्म होने के उपरान्त संजय गांधी तेजी से उभर रहे थे। लालाजी कहा करते थे कि ‘बेटा एक दिन यह लड़का अपनी मां इंदिरा को भी ले डूबेगा।’ दूसरी बात उनकी मैं कभी भूल नहीं सकता वो दादाजी कहा करते थे ‘बेटा, देखना मैं बिस्तर पर नहीं मरूंगा, मुझे गोली से मारेंगे’। मैं पूछता था ‘बाऊजी आखिर आपको क्यों कोई गोली मारेगा?’ लालाजी कहते ‘बेटा तुम देखते जाओ एक दिन ऐसा ही होगा’ और 9 सितम्बर 1981 के दिन ऐसा ही हुआ।
भिंडरावाला के भतीजे और दो लोगों ने लुधियाना-जालन्धर हाईवे पर लालाजी को गोलियां मारकर सदा के लिए सुला दिया। लालाजी की शहादत के पश्चात स्वतंत्रता संग्राम के एक अनथक सिपाही, स्वतंत्र लेखनी के धनी, न्याय के लिए लड़ने वाले, सत्य की ज्वाला उठाने वाले और एक महान शख्सियत के दौर का अंत हुआ।