क्या कयामत है कि अगस्त 2019 के इस महीने में पहले मेरी बैस्ट फ्रैंड दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री श्रीमती शीला दीक्षित का हार्ट फेलियर से देहांत हो गया। फिर मुझे पिछले 25 साल से राखी बांधने वाली बहन सुषमा जी का भी हार्ट फेलियर से देहांत हुआ और अब मेरे एक भाई, दोस्त और सलाहकार अरुण जेटली का देहांत हो गया। अरुण जेटली और मेरी पत्नी किरण शर्मा विवाह से पहले एक ही गोत्र के थे। दोनों के गोत्र जेटली थे। दूर के रिश्तेदार भी थे। अरुण हमेशा किरण को भाई का प्यार देते थे। मेरे बच्चे भी उन्हें मामा-मामा कह कर पुकारते थे। यहां तक कि जब हमने अपने बड़े लड़के आदित्य चोपड़ा की शादी सादे ढंग से आर्य समाज मंदिर ग्रेटर कैलाश में की थी तो आदित्य के दादाजी का रोल अडवानी जी ने निभाया था, वहां मामा की मिलनी अरुण जेटली ने की थी।
इस कदर नजदीक थे हम लोग कि दोनों परिवारों के सुख-दुख में हम एक-दूसरे के यहां जरूर शामिल होते थे। वैसे भी अरुण जी के साथ मेरा दोहरा रिश्ता था। अरुण की पत्नी संगीता जेटली जम्मू के प्रतिष्ठित स्वतंत्रता सेनानी, नेता, राजनेता और सुप्रसिद्ध डोगरा जी की बेटी थी। मेरे पूज्य दादाजी लाला जगत नारायणजी और डोगरा साहिब की बहुत अच्छी दोस्ती थी। हर दो या तीन महीनों में लालाजी या डोगरा जी जम्मू और जालन्धर में मिला करते थे। मैं छोटा था लेकिन कई बार जम्मू स्थित डोगरा जी के आलीशान बंगले पर लालाजी के साथ गया था। संगीता जेटली जिसे हम हमेशा घर के नाम (डाली) से पुकारा करते थे मुझसे दो साल बड़ी होगी।
अरुण की बेटी सोनाली भी मेरे बेटे आदित्य के साथ ही स्कूल में पढ़ी थी। आदित्य और सोनाली भी आज तक एक-दूसरे से भाई-बहन जैसा व्यवहार करते हैं। अरुण का बेटा रोहन बड़ा ही होनहार लड़का है। Cornell University, USA से Law की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात आजकल दिल्ली में लॉ प्रैक्टिस कर रहा है। जिन दिनों मैं न्यूयार्क में कैंसर का इलाज करवाने पहुंचा तो संगीताजी और रोहन भी वहीं थे। दो हफ्ते तक मैंने, किरण और अकाश तथा अर्जुन ने संगीता जी और रोहन के साथ ही दिन गुजारे। रात को डिनर भी हम सभी इकट्ठे ही किया करते थे। इधर मैं MSK अस्पताल में दाखिल हो रहा था, उधर अरुण की हालत खराब होती जा रही थी।
मुझे वाे दिन याद है जब 2014 के लोकसभा चुनाव से ठीक पहले सुषमा जी का फोन आया कि मुझे चुनाव लड़ने के लिए भाजपा की टिकट करनाल संसदीय क्षेत्र से दे दी गई है तो मैंने आना-कानी शुरू कर दी। फिर राजनाथ जी का फोन आया ‘अरे भाई अश्विनी, क्या कर रहे हो, हम सभी ने जोर लगा कर तुम्हें टिकट दी है और तुम टिकट लेने से इन्कार क्यों कर रहे हो। मैंने राजनाथ जी से थोड़ा समय मांगा। फिर अरुण जेटली का फोन बजा। अरुण जी बोले ‘यार अश्विनी क्या हो गया है तुम्हें, चुनाव क्यों नहीं लड़ते’। मैंने पूछा ‘अरुण क्या मैं जीत जाऊंगा?’ जवाब में अरुण बोले ‘यकीनन तुम जीतोगे।’ मैंने फिर पूछा, ‘सुषमा जी तो करनाल से तीन बार हारी हैं।’ अरुण का जवाब था ‘तुम सुषमा जी को छोड़ाे अपनी बात करो, जब हम सभी लोग तुम्हारे साथ हैं और मोदी जी ने खुद तुम्हें करनाल से चुनाव लड़ने के लिये चुना है तो तुम क्यों डरते हो?’ आखिरकार मोदी जी का फोन भी आया। मोदी जी बोले, ‘अरे-मिन्ना जी आप करनाल से चुनाव लड़ो ना’। अन्त में मैंने हार मान ली और मोदी जी को ‘हां’ भर दी।
न चाहते हुए भी मुझे और किरण तथा आदित्य को करनाल के संसदीय चुनाव के युद्ध में उतरना पड़ा। मुझे याद है भूतपूर्व प्रधानमंत्री श्री नरसिम्हा राव कहा करते थे कि चुनाव अपने पैसे से नहीं पार्टी और जनता द्वारा सहायता के रूप में दिए पैसों से ही लड़ा जाता है लेकिन मुझे न तो पार्टी और न ही जनता से पैसा मांगना आता था। हमने अपने व्यक्तिगत पैसों से चुनाव प्रचार की शुरूआत की। कुछ थोड़े पैसे मेरे दाेस्तों और शुभचिंतकों और संसदीय क्षेत्र के लोगों ने भी दिए लेकिन इतने कम धन से बात बन नहीं रही थी। इस दौरान अरुण जेटली अमृतसर पंजाब से चुनाव लड़ रहे थे जोकि उनकी जिन्दगी की सबसे बड़ी भूल थी। लेकिन एक दिन करनाल से किरण ने अपने भाई अरुण को याद किया और कहा कि भैया अरुण हमारे पास चुनाव लड़ने के लिए पैसे नहीं हैं। तब उन्होंने कहा Don’t Worrry ‘Sister I am sending’.
अरुण जेटली के संबंध मोदी से बेहद प्रगाढ़ थे। बात उन दिनों की है जब केन्द्र में कांग्रेस सरकार और खासतौर पर चिदम्बरम गुजरात दंगों पर मोदी और शाह के विरुद्ध कार्रवाई करने पर उतारू थे। उस समय अरुण जेटली मोदी औरशाह के वकील और सलाहकार के रूप में उनके साथ खड़े हो गए। राज्यसभा में विपक्ष के नेता के रूप में भी उन्होंने कांग्रेसी केन्द्र सरकार पर ताबड़तोड़ हमले शुरू कर दिए। हालांकि चिदम्बरम देश के पहले वित्त मंत्री, बाद में गृहमंत्री के रूप में नहीं माने और शाह को छह माह जेल में प्रताड़ित किया गया और बाद में तड़ी पार घोषित करके गुजरात से उन्हें वनवास लेना पड़ा। ऐसी परिस्थितियों में अरुण जेटली ने मोदी और शाह को बचाया। बाद में गुजरात से देश के परिदृश्य में 2014 में मोदी-शाह के राजनीतिक उत्थान के लिए अरुण जेटली मोदी के चाणक्य साबित हुए।
जिस तरह चाणक्य ने चन्द्रगुप्त मौर्य को भारत का सम्राट बनाया था ठीक उसी तरह मोदी को भारत का प्रधानमंत्री और शाह को गृहमंत्री बनाने में भी अरुण जेटली की राजनीतिक दिमागी कसरत ने ही काम किया। हालांकि अटल जी के प्रधानमंत्री काल में जेटली का राजनीतिक पारा चढ़ रहा था, लेकिन मोदी ने तो अरुण को रक्षा और वित्त मंत्रालय से नवाज कर अपनी कैबिनट में नम्बर दो का स्थान प्रदान किया। आगे चल कर अरुण जेटली पता नहीं कहां-कहां ऊंचाइयों पर पहुंचते लेकिन भगवान काे शायद यही मंजूर था। आज जब अरुण जी हमारे बीच नहीं रहे तो पूरा राष्ट्र उनकी याद में रो रहा है। अरुण ने पार्लियामेंट में मेरा छोटे भाई और दोस्त की तरह ख्याल रखा। जितना भी समय हमने इकट्ठे लंच करके बिताया मुझे रोज कहता चल इकट्ठे लंच करेंगे। उनको खाने का बहुत शोक था। घर से लंच तो आता था, दोस्तों के लिए अलग से भी होता था। मैं उनके घर से आये लंच को Enjoy करता था।
वह एक सूचना केन्द्र थे, उनके पास हर पल की खबर रहती थी। पत्रकारों के साथ बहुत मित्रता थी। वैसे तो सभी पत्रकार उनके नजदीक थे परन्तु मैं और रजत उनके खास थे। उनको बातें करने में भी बहुत दिलचस्पी रहती थी। वह घर की छोटी-छोटी बात से लेकर बड़ी-बड़ी राजनैतिक, आर्थिक, अंतर्राष्ट्रीय स्तर, राष्ट्रीय स्तर और सामाजिक स्तर की बातों की चर्चा करते थे। उनमें बड़ी क्षमता थी। मैं आज उन्हें बहुत याद कर रहा हूं, करूंगा, क्योंकि मैं भी उसी बीमारी से जूझ रहा हूं जिससे वह गये हैं। मैं इतना भावुक हूं कि बयान नहीं कर सकता।
हजारों साल नरगिस अपनी बेनूरी पे रोती है,
बड़ी मुिश्कल से होता है चमन में दीदावर पैदा!