लोकसभा चुनाव 2024

पहला चरण - 19 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

102 सीट

दूसरा चरण - 26 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

89 सीट

तीसरा चरण - 7 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

94 सीट

चौथा चरण - 13 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

96 सीट

पांचवां चरण - 20 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

49 सीट

छठा चरण - 25 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

57 सीट

सातवां चरण - 1 जून

Days
Hours
Minutes
Seconds

57 सीट

लोकसभा चुनाव पहला चरण - 19 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

102 सीट

It’s My Life (46)

मैंने पिछले लेखों में इस बात को उजागर किया था कि किस तरह लालाजी और रमेशजी कश्मीर में लागू अनुच्छेद 370 के विरोधी थे और भी कि जम्मू-कश्मीर की बातों से देशहित में लालाजी पं. नेहरू के विरोधी थे।

मैंने पिछले लेखों में इस बात को उजागर किया था कि किस तरह लालाजी और रमेशजी कश्मीर में लागू अनुच्छेद 370 के विरोधी थे और भी कि जम्मू-कश्मीर की बातों से देशहित में लालाजी पं. नेहरू के विरोधी थे। 1965 में जब लालाजी राज्यसभा में आजाद उम्मीदवार के रूप में पंजाब से पं. नेहरू और स. प्रताप सिंह कैरों को हराकर जीत प्राप्त कर पहुंचे तो वहां भी उन्होंने धारा 370 पर अपना विरोध एक सांसद के रूप में अपने लेखों द्वारा जारी रखा। राज्यसभा में दिए उनके एक ओजस्वी भाषण का अंश थोड़े शब्दों में आपके समक्ष पेश करने जा रहा हूं। 
जिस दिन लालाजी का सदन में भाषण होता था पूरी राज्यसभा कांग्रेसियों द्वारा और विपक्षी सांसदों द्वारा खचाखच भर जाती ​थी। इसी तरह दर्शक गैलरी में भी सभी प्रदेशों से लोग लालाजी का भाषण सुनने खासतौर पर भारी संख्या में आते थे। लालाजी ने अपना भाषण सामने सत्ता पक्ष में बैठे पं. नेहरू को लेकर शुरू किया। पंडित जी की कैबिनेट के सभी प्रमुख मंत्री और सांसद वहां बैठे थे। लालाजी का भाषण पंडित जी पर सीधा हमला था।
पंडित जी आपने ऐसा क्यों किया?
आज जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 लागू हुए 24 साल होने जा रहे हैं। जम्मू-कश्मीर को धारा 370 के तहत हमारे संविधान को बदलते समय पंडित जी ने अपनी मुसीबतों को कम करते समय न केवल देश बल्कि हमारे भारत के संविधान से न केवल खिलवाड़ किया बल्कि पूरे देश से एक तरह देशद्रोह का काम किया है। इस पर विपक्षी सांसदों ने मेजें थपथपाईं और कांग्रेसियों ने शोर मचाना शुरू कर दिया। थोड़े समय बाद लालाजी अपना भाषण देने उठे और बोले, आखिर शेख अब्दुल्ला से इस कदर प्रेम और पंडित उस व्यक्ति की दहशत पसंद और कश्मीर को आजाद मुल्क बनाने की साजिशों को अभी तक नहीं समझे? 
क्या इस सदन में बैठे सभी सांसद जानते हैं कि शेख अब्दुल्ला कश्मीर के वाशिंदे या नागरिक नहीं हैं। शेख साहिब एक विशुद्ध पंजाबी हैं। लाहौर के एक स्कूल में मास्टर की नौकरी करते थे। 1943-45 के वर्षों में लाहौर से टीचर की नौकरी छोड़ कश्मीर आए और यहां उन्होंने अपना राजनीतिक कैरियर शुरू किया। जब उनकी मुलाकातें इस रियासत के राजा हरिसिंह से हुईं और वाकपटुता में सिद्धहस्त शेख साहिब थोड़े से समय में राजा हरिसिंह के नजदीक आते चले गए। छह माह के अन्दर राजा हरिसिंह के दरबार में शेख साहिब चमकने लगे। उधर दिल्ली में शेख साहिब ने पं. नेहरू और प्रमुख कांग्रेसी नेताओं से जो अंग्रेजों के विरुद्ध देश की आजादी की लड़ाई लड़ रहे थे, उनसे भी जान-पहचान बढ़ा ली। पं. नेहरू तो शेख साहिब की बातों से बेहद प्रभावित थे। 
शेख साहिब ने पं. नेहरू के दिमाग में यह भर दिया था कि आजादी के बाद हिंदू राजा जम्मू-कश्मीर का विलय भारत में नहीं करेंगे। वे तो एक अलग आजाद कश्मीर रियासत और देश बनाने का सपना देख रहे हैं। राजा हरिसिंह के सम्बन्ध अंग्रेजों से बेहद अच्छे हैं और राजा हरिसिंह अंग्रेज शासकों से खुलकर यह बाते करते हैं कि कितनी भी रियासतें भारत और पाकिस्तान से मिल जाएं लेकिन जम्मू-कश्मीर ऐसा नहीं करेगा। मैं ही इसका राजा हूं और मैं ही इसको आजाद रखूंगा और दुनिया में एक नया जन्नते आजाद कश्मीर एक नए रूप में देश बनकर उभरेगा। पंडित जी और स. पटेल को भी यही शंका थी लेकिन सरदार ने कहा कि कश्मीर का हिन्दू राजा हरिसिंह हिन्दुस्तान के साथ नहीं आएगा तो मुस्लिम पाकिस्तान उस पर हमला करके उसे अपने साथ जोड़ लेगा और फिर कश्मीर बर्बाद हो जाएगा। 
मक्कार शेख ने पंडित जी और स. पटेल को समझाया, इसीलिए तो मैं कहता हूं कि अभी से आप कोई अपना समर्थक मुसलमान नेता राजा ​हरिसिंह के दरबार में फिट कर दो जो इन खतरनाक परिस्थितियों में आपका मददगार रहे और राजा को ऐसे वक्त में भारत के साथ शामिल होने के लिए समझा सके। स. पटेल को तो शेख पर विश्वास नहीं था लेकिन पंडित जी शेख से बेहद प्रभावित थे। उस दौरान पंडित जी ने अपने प्रभाव का इस्तेमाल किया और राजा हरिसिंह पर दबाव डलवा कर शेख अब्दुल्ला को जम्मू-कश्मीर रियासत का प्रधानमंत्री बनवा दिया लेकिन हमारे भोले पंडित जी को शायद अंदाजा नहीं था कि शेख तो भारत-पाक बंटवारे के समय का इंतजार कर रहे थे। 
एक शक्तिशाली प्रधानमंत्री के तौर पर उन खतरनाक परिस्थितियों में शेख खुद रियासते कश्मीर की बागडोर संभालने की साजिशें रच रहे थे क्योंकि उधर पाकिस्तान के मुहम्मद जिन्ना काे भी अपनी बातों और साजिशों के जाल में फंसा रखा था और पंडित जी जैसे आश्वासन जिन्ना को भी दे रहे थे। डबल गेम की इस व्यूह रचना में शेख साहिब खुद न भारत और न पाकिस्तान से मिलना चाहते थे और कश्मीर रियासत को हासिल करके खुद मुख्तियारी हासिल करके कश्मीर के प्रधानमंत्री के रूप में एक आजाद कश्मीर या यूं कहिए एक नया स्वतंत्र देश बनाना चाहते थे। 
स. पटेल का शक सच निकला। 1947 में 15 अगस्त से एक दो महीने बाद तक राजा हरिसिंह ने पाकिस्तान और भारत किसी से भी विलय से इन्कार कर दिया। यह सारा खेल शेख अब्दुल्ला ही रच रहे थे लेकिन जब आजादी के बाद पाकिस्तान की तरफ से पाक की फौज के जवान और कबाइली लुटेरों ने कश्मीर पर हमला कर दिया तो राजा हरिसिंह घबरा गए। उधर शेख साहिब ने राजा हरिसिंह को रोके रखा। जब पाकिस्तानी लुटेरे कश्मीर एयरपोर्ट के पास पहुंच गए और लगने लगा कि श्रीनगर अब राजा हरिसिंह के हाथों से निकल जाएगा तो हालात की नजाकत को समझते हुए हिन्दू राजा हरिसिंह ने इस्लामी मुल्क पाकिस्तान में जाने से अच्छा भारत से विलय का फैसला किया और पंडित नेहरू और पटेल को चिट्ठी लिखकर भारत से विलय की इच्छा जाहिर की और कश्मीर के इलाके को पाकिस्तानी कब्जे से बचाने की अपील की। यह पत्र भी उस समय जम्मू-कश्मीर के प्रधानमंत्री मेहर चंद महाजन दिल्ली लेकर आए। 
फिर भारत की तरफ से कश्मीर को पाकिस्तान के कब्जे से आजाद करवाने का भारत का मिल्ट्री मिशन शुरू हुआ। भारतीय फौज ने पाकिस्तानी लुटेरों को वापिस धकेलना शुरू कर दिया। दुख तो इस बात का है कि मुजफ्फराबाद के पास पहुंच कर अचानक भारतीय फौज को रुकने को कहा गया। यहां भी शेख की चाल थी क्योंकि मुजफ्फराबाद के आगे के कश्मीर के लोग शेख अब्दुल्ला से नफरत करते थे और शेख साहिब की नई साजिश के तहत अब उन्होंने पाला बदल लिया था और भारत की मदद से भारत में विलय के उपरान्त बनने वाले लद्दाख, कश्मीर और जम्मू मिल कर जो जम्मू-कश्मीर राज्य बनेगा उसके वे मुख्यमंत्री बन कर राज करेंगे लेकिन मुजफ्फराबाद के आगे का पूरा इलाका शेख साहिब से नफरत करता था जो आगे चलकर उनके लिए वोटों की मुसीबत बन सकता था। 
अपनी इसी राजनीतिक सत्ता की लालसा के चलते शेख साहिब ने पंडित जी को कहकर फौजों को बीच रास्ते रुकवा दिया। अगर ऐसा न होता तो ‘आजाद कश्मीर’ या ‘गुलाम कश्मीर’ या पाक कब्जे वाला कश्मीर और POK का वजूद ही इस दुनिया में न होता। ‘न नौ मन तेल होता और न राधा नाचती’। काश! कश्मीर के विलय का मामला भी स. पटेल के पास होता तो प​ाकिस्तान द्वारा गुलाम बनाए कश्मीर की समस्या ही न होती और न ही पिछले 70 साल से वहां पाक आतंकवादियों को ट्रेनिंग होती और न ही भारत को रोज अभी तक कश्मीर के कई इलाकों में आतंकवाद की मार झेलनी पड़ती लेकिन शेख अब्दुल्ला की चालबाजियों के समक्ष हमारे प्रधानमंत्री नेहरू धोखा खा गए।
एक आखिर बात मैं प्रधानमंत्री से पूछना चाहता हूं कि एक तिहाई कश्मीर पाकिस्तान को चांदी की तश्तरी में सौंपने के पश्चात भारत के संविधान में अनुच्छेद 370 लाने की क्या जरूरत थी? क्या जरूरत थी कश्मीर में दो संविधान, दो प्रधान और दो झण्डों को लहराने की? देश के अन्य प्रदेशों से भी यह मांग कभी भी उठ सकती है और देश खण्ड-खण्ड हो सकता है। यही तो अंग्रेज भारत को आजादी देते वक्त चाहते थे और महात्मा गांधी और नेहरू उनके हाथों में खेल गए? अन्त मंे पंडित जी ने सबसे बड़ी यह गलती क्यों कर दी जो कश्मीर के लोगों को ‘प्लैब साईट’ द्वारा अपने दिल की आवाज से भारत या पाकिस्तान में कश्मीर के विलय को दुनिया के मंच संयुक्त राष्ट्र में इस मुद्दे का अंतर्राष्ट्रीयकरण कर दिया। आखिर ऐसा क्या सोच कर आपने यह फैसला लिया? 
क्या आप अपनी फराखदिली और महानता तथा विश्व के एक महान लोकतांत्रिक व्यक्ति के रूप में खुद को विश्व में स्थापित करना चाहते हैं? ज्यादा से ज्यादा कश्मीर का मुद्दा भारत और पाकिस्तान के बीच द्विपक्षीय बैठकों से हल किया जा सकता था और भविष्य में ऐसा ही होना चाहिए। फिर अमेरिका, रूस, चीन, फ्रांस और ब्रिटेन की सुरक्षा परिषद के समक्ष हम अपनी बेइज्जती नहीं करवा रहे? पंडित जी याद रखना आप द्वारा की गई कश्मीर के प्रति इस भारी भूल को भारतवासी कभी माफ नहीं करेंगे। एक देशभक्ति की भावनाओं को व्यक्त करने के पश्चात लालाजी बैठ गए और कांग्रेसियों के लाल चेहरों को छोड़कर, प्रधानमंत्री पं. नेहरू के लालाजी का भाषण खत्म होते ही सदन से उठ कर चले जाने के पश्चात पूरा सदन पांच मिनट तक तालियों की गड़गड़ाहट से गूूंजता रहा।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

13 − seven =

पंजाब केसरी एक हिंदी भाषा का समाचार पत्र है जो भारत में पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश और दिल्ली के कई केंद्रों से प्रकाशित होता है।