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It’s My Life

आज मैं पंजाब केसरी के सम्पादक और मालिक के रूप में जिंदगी के उस मोड़ पर खड़ा हूं जहां मैं समझता हूं कि अब मैं अब तक की जीवन यात्रा पाठकों के साथ साझा करूं।

आज मैं पंजाब केसरी के सम्पादक और मालिक के रूप में जिंदगी के उस मोड़ पर खड़ा हूं जहां मैं समझता हूं कि अब मैं अब तक की जीवन यात्रा पाठकों के साथ साझा करूं। It’s my life-प्रत्येक की जिंदगी अपने आप में एक कहानी होती है। जिंदगी में उतार-चढ़ाव आते रहते हैं। दुनिया में एक भी व्यक्ति ऐसा नहीं जिसे भगवान ने सुख और दुःख न दिया हो। वैसे भी हमारे हिन्दू धर्म में पृथ्वी पर जन्म लेने वाले प्रत्येक मानव को पूरा जीवन अपने पिछले और इस जन्म के कर्मों की एवज में सुख-दुःख, खुशी-गमी, कभी अर्श-कभी फर्श देखने पड़ते हैं। मानव ​जीवन ऐसा है कि हम किसी को भी यह नहीं पता कि अगले पल क्या होने जा रहा है। राजा से रंक और रंक से राजा बनने में सिर्फ एक पल ही लगता है। इसलिये मैं पहली बार अपने जीवन की कहानी पाठकों के समक्ष प्रस्तुत कर रहा हूं। इसका अर्थ यह नहीं है कि मेरे जीवन का पर्दा नीचे जा रहा है। दोस्तो, याद रखो मेरी फिल्म अभी बाकी है।
 
तो कहानी यहां से शुरू होती है जब गुजराल साहिब देश के प्रधानमंत्री बने तो उस समय केंद्र सरकार के एमएचए ने यह फैसला ​लिया कि जिन लोगों को आतंक से खतरा है उन्हें लुटियन दिल्ली में सरकारी कोठी और जेड प्लस सुरक्षा प्रदान की जाए। मेरे से पहले पंजाब के श्री के.पी.एस. गिल  और मनिन्दर बिट्टा को लुटियन दिल्ली में कोठियां दी गईं और जेड प्लस सुरक्षा भी प्रदान कर दी गई। शुरू में मैं कोठी और सुरक्षा लेने से हिचकिचा रहा था लेकिन फिर सुरक्षा एजेंसियों के आला अफसरों के समझाने पर मैं मान गया। सुरक्षा अफसरों के मुताबिक मुझे और मेरी पत्नी एवं बच्चों को पूज्य दादाजी और पिताजी की हत्या के उपरांत सचमुच में आतंकवादियों के हमले का डर था। मैं इससे पहले कभी भी सरकारी कोठी में नहीं रहा था। बहरहाल मुझे लुटियन दिल्ली के मध्य में 34 लोधी एस्टेट कोठी अलाट कर दी गई। किराया मात्र 8000 रु. प्रतिमाह और सुरक्षा के सख्त प्रबंधों में मैं और मेरा परिवार इस नए सरकारी आवास में शिफ्ट हो गए। शुरू में बड़ा अटपटा लगता था। चार कमरों, एक ड्राइंग रूम का पुरानी अंग्रेजों द्वारा बनाई बैरकों को कोठी में तब्दील किया गया ​था। घर के चारों ओर बाग ​व पेड़ ​थे, स्वच्छ हवा थी। धीरे-धीरे अच्छा लगने लगा।
अब अगला चरण ​था कि मेरे पड़ोस में कौन रहता है। हमारा घर 34 लोधी एस्टेट में हमारे पड़ोसी या​िन 35 लोधी एस्टेट में श्रीमती प्रियंका गांधी वाड्रा और उनके पति राबर्ट वाड्रा और उनके दो छोटे से प्यारे बच्चे बेटी मिराया और छोटा बेटा रेहान की खेलने और किलकारियों की आवाजें हमें अपने बाहर बाग में सुनने को मिलतीं। मेरे भी दो बेटे जुड़वां अर्जुन और आकाश भी चार या पांच साल के ही थे। मैं और मेरी पत्नी इस समय तक एक भी बार प्रियंका और राबर्ट से कभी नहीं मिले थे। हालांकि प्रियंका के स्वर्गीय पिता राजीव गांधी प्रधानमंत्री एवं बाद में विपक्ष के नेता के रूप में मेरे बेहद करीबी थे। राजीव के साथ मेरा संबंध एक राजनेता और एडिटर/ पत्रकार के रूप में शुरू हुआ था और 1984 से 1989 तक प्रगाढ़ दोस्ती में बदल गया था। मेरी और राजीव की दोस्ती ने भारत की राजनीति में क्या रंग दिखाए इसका जिक्र मैं आगे करूंगा। आज के सभी वरिष्ठ कांग्रेसी जानते हैं कि मेरी और राजीव जी की दोस्ती सच्ची, पक्की और एक विश्वास पर टिकी थी। राजीव जी के अलावा श्री नटवर सिंह के वसंत विहार निवास पर भी कई मौकों पर मैडम सोनिया से मैं और मेरी पत्नी मिला करते और घंटों बातें होती। कई बार श्री जार्ज का फोन आता कि अश्विनी जी आप को व किरण जी को मैडम ने आज शाम 10 जनपथ अपने निवास पर चाय पर बुलाया है। हम कई बार 10 जनपथ सोनिया जी के निवास पर उनके साथ चाय पीते और देश के वर्तमान राजनीतिक हालात पर चर्चा करते जैसा कि मैं स्वर्गीय राजीव गांधी से किया करता था। 
एक बात जो मैंने अपने अनुभव से सीखी है कि बड़े से बड़ा और छोटे से छोटा व्यक्ति यदि संकट में से गुजर रहा हो या अपना कोई राजनेता अपनी राजनीति और सत्ता के दौर में नीचे जा रहा हो, ऐसे समय जो दोस्त उसके साथ खड़े होते हैं उसे भरोसा, साहस और भविष्य की सुंदर तस्वीर दिखाते हैं। वही सच्चे और पक्के दोस्त ऐसे लोगों के सत्ता में वापसी और अच्छे दिनों में उनके विश्वसनीय और प्रिय मित्र बने रहते हैं। 
वैसे ज्यादातर रिश्तेदार, दोस्त और साथ देने वाले लोग तो संकट में साथ छोड़ जाते हैं। कई रिश्तेदार और साथी तो संकट की इस घड़ी में बदले की भावना और संकटग्रस्त दोस्तों को और भी नीचे गिराने का काम करते हैं। शायद वो इस बात से अंजान होते हैं कि वक्त का चक्कर घूमता है, आज नीचे है तो कल ऊपर भी आएगा। मेरा स्वभाव शुरू से ही ऐसा नहीं है। अगर मैं आप का मित्र हूं तो अंत समय तक खुशी में, दुःख में आप के साथ ही खड़ा हूं।
मेरी राजीव गांधी से पहली मुलाकात 1980 में अमेठी के गौरीगंज में हुई थी। राजीव गांधी तब अपने छोटे भाई स्वर्गीय संजय गांधी की मृत्यु के पश्चात उन्हीं के संसदीय क्षेत्र अमेठी से चुनाव लड़ रहे थे।

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