अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय ने पाकिस्तान द्वारा बन्दी बनाये गये भारतीय नौसेना के पूर्व अधिकारी कुलभूषण जाधव की फांसी की सजा को नामंजूर करते हुए उसके हक में जो हुक्म जारी किया है उससे भारत की जीत इस तरह हुई है कि भविष्य में जाधव के भारत वापस आने का रास्ता खुलने की उम्मीद बन गई है। 2016 में पाकिस्तान ने जिस तरह ईरान के ग्वादर बन्दरगाह से जाधव को पकड़ कर उसे बलूचिस्तान से गिरफ्तार दिखाकर जासूसी के आरोप लगाये थे और उसे फौजी अदालत के हवाले करके फांसी की सजा का ऐलान किया था उससे पूरे भारत में गुस्से की लहर फूट पड़ी थी।
भला कोई कैसे यकीन कर सकता था कि पाकिस्तान की नामुराद फौज भारत के किसी पूर्व सैनिक अधिकारी के साथ इंसाफ कर सकती थी ? और वह भी तब जब उस पर जासूसी के इल्जाम यह कहकर लगाये गये हों कि वह भारत की गुप्तचर एजेंसी ‘रा’ के एजेंट के रूप में बलूचिस्तान में सक्रिय था। दरअसल पाकिस्तान का यह ऐसा नाटक था जिसके जरिये वह दुनियाभर का ध्यान बलूचिस्तान में अपने ही लोगों के खिलाफ की जा रही अपनी फौज की वहशियाना हरकतों से हटाना चाहता था।
कुलभूषण जाधव भारतीय पासपोर्ट पर नौसेना से रिटायर होने के बाद ही ग्वादर में व्यापारिक गतिविधियों में संलग्न थे मगर पाकिस्तान की सरकार ने 2016 में जाधव को गिरफ्तार करके भारी यातनाएं देकर उनसे इकबालिया बयान लिये और फिर उनका टीवी चैनलों पर प्रसारण करके भारत के खिलाफ माहौल बनाने की कोशिशें कीं परन्तु उसकी पोल तभी खुल गई क्योंकि जाधव की जो इकबालिया बयान वाली वीडियो या फिल्म दिखाई गई थी उसे हर दस सैकिंड बाद सम्पादित किया गया था।
एक सम्मानित भारतीय नागरिक पर जुल्म ढहाने का पाकिस्तान का यह कारनामा था जिससे भारत की सरकार भी दहल गई और उसने इसके खिलाफ तुरन्त कूटनीतिक माध्यमों से पाकिस्तान को घेरने की कोशिश की और आखिरी रास्ते के तौर पर अंतर्राष्ट्रीय अदालत का दरवाजा खटखटाया। इस अदालत में पाकिस्तान की जाधव के खिलाफ पेश की गई सारी दलीलें खोखली साबित हुईं। पिछले साल न्यायालय ने दोनों देशों की पैरवी होने के बाद फैसला दिया था कि पाकिस्तान को जाधव की फांसी की सजा तब तक मुल्तवी रखनी होगी जब तक कि वह अपना पक्का फैसला न सुना दे। यह फैसला अब आ चुका है जिसमें फांसी की सजा को खत्म कर दिया गया है और पाकिस्तान से कहा गया है कि वह दुनियाभर के सभ्य देशों द्वारा स्वीकार किये गये उन मानकों का पालन करे जो किसी दूसरे देश के पकड़े गये सैनिक संदिग्ध व्यक्तियों पर लागू होते हैं। इस बारे में विद्वान न्यायाधीशों ने पाकिस्तान को लताड़ लगाते हुए कहा है कि उसने उस वियना समझौते का पालन नहीं किया है जो ऐसे मामलों में लागू होता है जिसके तहत गिरफ्तार किये गये दूसरे देश के व्यक्ति को कानूनी सहायता उपलब्ध कराई जाती है और उस देश के दूतावास को लगातार सूचित रखा जाता है।
पाकिस्तान ने वियना समझौते का उल्लंघन किया है अतः जाधव को यह सुविधा उपलब्ध कराई जाये। जाहिर है कि अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय ने अपने फैसले में साफ कर दिया है कि उस पाकिस्तान की उस न्यायिक प्रक्रिया पर भरोसा नहीं है जिसने जाधव को खुद ही आरोप लगाकर खुद ही सजा दे दी और उसे अपनी सफाई में कुछ कहने का मौका ही नहीं दिया। पाकिस्तान जैसे देश से मानवीय अधिकारों के संरक्षण की अपेक्षा रखना फिजूल है क्योंकि यह देश सभ्यता के उन मानकों को मानने से गुरेज करता रहा है जो किसी भी देश को दुनिया में तहजीब का अहलकार बनाते हैं।
अपने माथे पर लगे हुए आतंकवाद के तमगे को उतारने की गरज से ही इसने भोले-भाले भारतीय नागरिक कुलभूषण जाधव को जासूस बनाकर आतंकवादी गतिविधियों में शामिल होने की साजिश रची जिसका भंडाफोड़ नीदरलैंड के हेग शहर में स्थित अंतर्राष्ट्रीय अदालत में हो चुका है।
जाधव को अब पाकिस्तान की ऊंची अदालत में अपील करने का अधिकार है और अपने वकीलों के साथ अपनी दलीलें पेश करने का हक है मगर असल सवाल यह है कि पाकिस्तान जाधव को यातनाएं देकर उसके इकबालिया बयानों के आधार पर क्या साबित करना चाहता है ? ऐसा करने से क्या वह खुद को आतंकवाद का शिकार साबित कर सकता है? दरअसल आतंकवाद का जनक तो पाकिस्तान ही है जिसकी फौज ने दहशतगर्दों की पूरी बटालियन तैयार कर रखी है और इसकी मार्फत वह अपनी विदेश नीति को चलाता रहा है। उसकी यही विदेश नीति भारत में पिछले कई दशकों से आतंकवाद को बढ़ावा दे रही है।
जिस बलूचिस्तान में आतंकवादी गतिविधियों के आरोप में पाकिस्तान ने कुलभूषण जाधव को जासूस बताकर गिरफ्तार किया हुआ है, उसकी हकीकत यह है कि इस प्रान्त के लाचार नागरिकों के खिलाफ सबसे ज्यादा आतंकवादी कार्रवाईयां खुद पाकिस्तान की फौज ही करती है। हद तो यह है कि इस प्रान्त के हजारों नागरिकों को फौज गायब कर चुकी है और हजारों को मौत के घाट उतार चुकी है। यहां के नागरिक के साथ यह दोयम दर्जे का व्यवहार करती है जबकि वास्तविकता यह है कि बलूचिस्तान 1955 तक पाकिस्तान का हिस्सा बराये नाम ही था और यह प्रदेश ‘संयुक्त राज्य बलूचिस्तान’ कहलाता था जिसका अपना अलग झंडा था परन्तु जाधव अभी भी पाकिस्तान की हिरासत में ही है, इससे पाकिस्तान को ही अब शर्मसार होना चाहिए क्योंकि अंतर्राष्ट्रीय अदालत ने साफ कहा है कि उस पर पाकिस्तान में चलाया गया मुकदमा इंसाफ की नजर में खरा नहीं उतरता है।
बेशक खुद को पाक-साफ दिखाने के लिए पाकिस्तान ने जाधव की पत्नी और मां को उससे मिलने के लिए पाकिस्तान बुलाया था मगर घर बुलाकर दोनों महिलाओं के साथ जिस तरह का क्रूर व्यवहार पाकिस्तान के अफसरों ने किया था उसे पूरी दुनिया ने टेलीविजन पर देखा था। मां व पत्नी के साथ एक कमरे में शीशे की दीवार खड़ी करके इंटरकाम के जरिये बातचीत कराई गई थी और अपनी मादरी जुबान (मराठी) में बातचीत करने की मनाही कर दी गई थी। दोनों महिलाओं के मुलाकत से पहले कपड़े बदलवाये गये थे और श्रीमती जाधव का मंगलसूत्र, माथे की बिन्दी व चूडि़यां तक उतरवा दी गई थीं।
मेहमानों के साथ यह बदतमीजी केवल पाकिस्तान ही कर सकता था। हेग से मुंह की खाने के बाद भी अगर पाकिस्तान इस बदगुमानी में रहता है कि वह जाधव के साथ नाइंसाफी कर सकता है तो उसे ‘बालाकोट’ की याद करनी चाहिए और इससे पहले अपनी फौज के एक लाख सिपाहियों द्वारा ‘आत्मसमर्पण’ करने के मंजर का ख्याल करना चाहिए, शायद उसे कोई रास्ता सूझ जाये। भलाई इसी में है कि पाकिस्तान तौबा करके जाधव को भारत को वापस सौंप दे।