लोकसभा चुनाव 2024

पहला चरण - 19 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

102 सीट

दूसरा चरण - 26 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

89 सीट

तीसरा चरण - 7 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

94 सीट

चौथा चरण - 13 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

96 सीट

पांचवां चरण - 20 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

49 सीट

छठा चरण - 25 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

57 सीट

सातवां चरण - 1 जून

Days
Hours
Minutes
Seconds

57 सीट

लोकसभा चुनाव पहला चरण - 19 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

102 सीट

जयशंकर की जय-जय

दूसरे विश्व युद्ध के बाद दुनिया को ज्यादा मानवीय बनाने के लिए जिन मानवीय मूल्यों पर सर्वसम्म​ति बन चुकी थी, उन्हें लेकर दुनिया के ताकतवर देशों की प्रतिबद्धता कम होती जा रही है।

दूसरे विश्व युद्ध के बाद दुनिया को ज्यादा मानवीय बनाने के लिए जिन मानवीय मूल्यों पर सर्वसम्म​ति बन चुकी थी, उन्हें लेकर दुनिया के ताकतवर देशों की प्रतिबद्धता कम होती जा रही है। शक्तिशाली देश अपने राष्ट्रीय हितों को पवित्र और सर्वोच्च बताते हैं और दूसरों पर सवाल खड़े करते हैं। ऐसा ही शक्तिशाली देश अमेरिका है, जो मानवाधिकारों का ठेकेदार बना हुआ है। जब दूसरे देशों में हो रहे मानवाधिकार उल्लंघनों पर चर्चा होती है तो अमेरिका पूरे जोश से इसमें शामिल होता है लेकिन जब उसके या उसके करीबी देश का मामला आता है तो उसे मानवाधिकार संगठनों का पूर्वाग्रह नजर आता है। 
अमेरिका के नजरिये में भी खामी नजर आती है। अमेरिका अपना इतिहास देखे और भीतर झांक कर देखे तो 2006 में संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद बनी थी, तब से ही अमेरिका ने खुद को अलग रखा था। बराक ओबामा के कार्यकाल में अमेरिका इसमें शामिल हुआ लेकिन 2018 में इस्राइल के खिलाफ पूर्वाग्रहों का आरोप लगाते हुए इससे बाहर हो गया था। यह समस्या सिर्फ अमेरिका ही नहीं अन्य देशों के साथ भी है।
भारत के बारे में राय रखने के​ लिए अमेरिका और अन्य देश स्वतंत्र हैं। अमेरिका भारत में धार्मिक स्वतंत्रता और  मानवाधिकारों को लेकर कई बार टिप्पणियां कर चुका है लेकिन उसे यह भी समझना चाहिए कि भारत को भी अपनी बात रखने का अधिकार है। 
हाल ही में टू प्लस टू वार्ता के दौरान अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन ने कहा है कि भारत में मानवाधिकारों के मुद्दे पर अमेरिका की नजर है और उन्होंने भारत को ज्ञान देने की कोशिश भी की थी। विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने अमेरिका पर जोरदार पलटवार किया। भारत ने अमेरिका की आंख में आंख डालकर उसे जवाब दे दिया  है। यह पहला मौका है जब विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने भारत को नसीहत देने वाले अमेरिका को इस तरह जवाब दिया कि उसे फजीहत झेलनी पड़ी। इससे पहले भी ​एस. जयशंकर ने रूस से तेल की खरीद के मामले पर दो टूक कहा था कि भारत अपनी जरूरत के मुताबिक तेल खरीदता है। हम अगर एक महीने में जितना तेल खरीदते हैं, उतना यूरोप एक दोपहर भर में खरीदता है। इस जवाब को सुनकर अमेरिका ने रूस से तेल खरीद के मुद्दे पर अपना रुख नरम कर लिया और बयान जारी कर कहा कि भारत ने रूस तेल खरीद का प्रतिबंधों का कोई उल्लंघन नहीं किया। इससे एस. जयशंकर की जय-जय हो रही है। यूक्रेन और रूस के मसले पर भारत की कूटनीति की दुनियाभर में तारीफ हो रही है। एस. जयशंकर ने मानवाधिकार मसले पर भी कह डाला कि जब भारतीय समुदाय के अमेरिका में मानवाधिकारों की बात की जाएगी तो भारत चुप नहीं बैठेगा। उन्होंने न्यूयार्क में सिख समुदाय के दो लोगों पर हमले का जिक्र कर अमेरिका को करारा जवाब दिया। अमेरिका को आइना ​दिखाने पर जयशंकर की कूटनीतिक क्षेत्रों में भी जमकर सराहना हो रही है। कूटनीतिक क्षेत्रों का कहना है कि अमेरिका को हमारे लोकतंत्र का अपमान करने का कोई हक नहीं है। पूर्व में भी अमेरिका सीएए कानून और अल्पसंख्यक समुदाय से व्यवहार को लेकर भारत की आलोचना कर चुका है। भारत में मुस्लिमों को लेकर एक फर्जी नैरेटिव चलाया जा रहा है, उस पर कई देशों द्वारा ट्वीट किए जा रहे हैं, इनमें 14 प्रतिशत अकेले अमेरिका में बैठे लोगों द्वारा किए गए हैं। यह भी सच है कि भारत में मुस्लिम अरब देशों से भी कहीं अधिक यहां सु​रक्षित हैं। अपवाद स्वरूप कुछ घटनाएं जरूर होती रहती हैं। अमेरिका में पिछले एक दशक में नस्लीय भेदभाव भी काफी बढ़ चुका है। अमेरिका की कुल जनसंख्या में अश्वेत लोगों की आबादी सिर्फ 13 प्रतिशत है, लेकिन अमेरिका की जेलों में बंद अश्वेत लोगों की संख्या 33 प्रतिशत से ज्यादा है, जबकि वहां कुल आबादी में श्वेत अमेरिकी 76 प्रतिशत हैं, लेकिन इसके बावजूद जेलों में बंद ऐसे लोगों की संख्या 30 प्रतिशत है। ऐसा इसलिए है क्योंकि अमेरिका में अश्वेत नागरिकों के साथ नस्लीय भेदभाव होता है। वहां गोरे लोगों की तुलना में अश्वेत लोगों को 5 गुना ज्यादा जेल की सजा होती है। वहां अश्वेत नागरिकों की हत्या को लेकर आंदोलन भी लम्बे समय से चलाया जा रहा है।
अमेरिका में तो ​ए​शिया मूल के लोग भी सुरक्षित नहीं हैं। वर्ष 2020 में अमेरिका में अश्वेत नागरिकों के खिलाफ हिंसा की 2 हजार 871 घटनाएं हुई थीं। बंदूक संस्कृति के चलते रोज आम लोगों का खून बहाया जा रहा है। अमेरिका को लगता है कि दुनिया में मानवाधिकारों और लोकतंत्र की चिंता  सिर्फ उसी को ही जबकि दुनिया जानती है कि उसने केवल युद्ध उन्माद में इराक, अफगानिस्तान और लीबिया में विध्वंस का कितना बड़ा खेल खेला। एक ग्लोबल सर्वे के मुताबिक अमेरिका के 59 फीसदी लोग वहां के लोकतंत्र से असंतुष्ट हैं, जबकि भारत में अधिकांश लोग देश के लोकतंत्र से संतुष्ट हैं। भारत के मुकाबले अमेरिका का लोकतंत्र काफी खोखला है इसलिए बेवजह सरपंच बनकर दूसरों को नसीहत देना बंद करना चाहिए। विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने उसे करारा जवाब देकर भारत के आत्मसम्मान का ही परिचय दिया है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

4 − three =

पंजाब केसरी एक हिंदी भाषा का समाचार पत्र है जो भारत में पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश और दिल्ली के कई केंद्रों से प्रकाशित होता है।