कांग्रेस के पारम्परिक गढ़ पंजाब के दलित बहुल दोआबा क्षेत्र में आरक्षित जालंधर संसदीय सीट के लिए हुए उपचुनाव में चौतरफा मुकाबले में आम आदमी पार्टी के उम्मीदवार सुशील रिंकू ने 57872 वोटों से ऐतिहासिक जीत हासिल की है। संगरूर लोकसभा उपचुनाव मामूली अंतर से हारने के बाद जालंधर लोकसभा उपचुनाव आप सरकार के लिए एक बड़ी परीक्षा थी। कांग्रेस का गढ़ रही इस सीट पर इस उपचुनाव में आप ने कांग्रेस के गढ़ में सेंध लगा दी। इसी वर्ष जनवरी में कांग्रेस नेता राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा के दौरान कांग्रेस नेता संतोख सिंह के निधन के कारण यह सीट खाली हुई थी और कांग्रेस ने संतोख सिंह की पत्नी करमजीत कौर चौधरी को उम्मीदवार बनाया था। कांग्रेस को उम्मीद थी कि करमजीत कौर को सहानुभूति वोट मिलेंगे और कांग्रेस आसानी से चुनाव जीत जाएगी। आप पार्टी ने पूर्व कांग्रेस नेता सुशील कुमार रिंकू को आप पार्टी में शामिल कर उन्हें इस सीट पर अपना उम्मीदवार घोषित किया था। कहा जाता है कि राजनीति संभावनाओं का खेल होती है और इसमें कुछ भी हो सकता है। हालांकि सुशील कुमार रिंकू को विधानसभा चुनावों में आप उम्मीदवार ने ही हराया था लेकिन इस उपचुनाव में आप पार्टी ने उन पर दांव लगा दिया।
भाजपा ने अकाली दल बदलू और पूर्व विधायक इन्द्र इकबाल सिंह अटवाल को अपना उम्मीदवार बनाया था। इन्द्र इकबाल सिंह अटवाल के पिता चरणजीत सिंह अटवाल अकाली दल के दिग्गज नेता रहे हैं और वे पंजाब विधानसभा के अध्यक्ष भी रह चुके हैं। शिरोमणि अकाली दल-बहुजन समाज पार्टी गठबंधन में सुखविन्दर सिंह सुक्खू को अपना उम्मीदवार बनाया। जहां तक कांग्रेस का सवाल है कांग्रेस के पास इस उपचुनाव में कार्यकर्ता दिखाई ही नहीं दिए। उसे बूथ एजैंट तक नहीं मिले। पूरा का पूरा कांग्रेस नेतृत्व कर्नाटक चुनावों में व्यस्त रहा। पंजाब के जिन नेताओं ने कांग्रेस के लिए चुनाव प्रचार किया वह भी रस्म अदायगी से ज्यादा कुछ नहीं था। आप के मुख्यमंत्री भगवंत मान ने इस उपचुनाव की कमान खुद सम्भाली और पूरा चुनाव स्थानीय मुद्दों पर ही लड़ा।
विपक्षी दल चुनाव लड़ने के अपने परम्परागत ढर्रे पर ही चलते रहे और मान सरकार का नकारात्मक पक्ष उजागर करने में पूरी ताकत झोंक दी। विपक्ष को पूरी उम्मीद थी कि राज्य की कानून-व्यवस्था, बेरोजगारी, सरकारी मुलाजिमों में असंतोष, बेअदबी और खालिस्तान के मुद्दे फिर से जीवित होने, सिद्धू मूसेवाला की हत्या और गैंगस्टरों का बोलबाला, जालंधर उपचुनाव में आप सरकार पर भारी पड़ेगा। इस चुनाव में मूसेवाला, अमृतपाल, अमृतसर में बम धमाके, मान के कैबिनेट मंत्री का वीडियो, जिसे विपक्ष ने चुनाव प्रचार के दौरान जमकर इस्तेमाल किया, उसे भी लोगों ने नकार िदया। सोशल मीडिया पर भी आप सरकार के खिलाफ जमकर अभियान चलाया गया लेकिन जनता को विपक्ष के ये हथकंडे पसंद नहीं आए और जनता ने भगवंत मान समेत आप नेताओं द्वारा पेश िकए गए मुफ्त बिजली, शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार जैसे सकारात्मक मुद्दों को समर्थन दिया।
सबसे बड़ी बात यह रही कि लोगों को आम आदमी पार्टी की सरकार से बहुत उम्मीदें हैं। युवाओं को मान सरकार से नौकरियों की उम्मीद है, जबकि आम मतदाताओं को अाप सरकार से बेहतर सुविधाओं की काफी आशाएं हैं। जहां तक अकाली दल का सवाल है सुखबीर सिंह बादल ने खुद मोर्चा सम्भाल रखा था, साथ ही विक्रम सिंह मजीठिया भी सक्रिय रहे। अकाली-बसपा गठबंधन की जनसभाओं में भीड़ भी जुटी लेकिन वह वोट में तब्दील नहीं हो सकी। बहुजन समाज पार्टी के वोट प्रत्याशी को नहीं मिल सके क्योंकि बसपा कैडर यह महसूस करने लगा था कि अकाली दल का रुख भाजपा के प्रति नरम रहा है। पूर्व मुख्यमंत्री और पंजाब की राजनीति के वटवृक्ष माने गए प्रकाश सिंह बादल के निधन के बाद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, गृहमंत्री अमित शाह और भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा उन्हें श्रद्धांजलि देने पहुंचे। उससे इन अटकलों को बल मिला कि अकाली दल और भाजपा एक बार फिर गठबंधन कर सकते हैं। हालांकि भाजपा ने भी इस चुनाव में काफी मेहनत की और कई केन्द्रीय मंत्रियों को भी जालंधर की गली-गली घुमा दी लेकिन इसके बावजूद भाजपा उम्मीदवार को चौथे नम्बर पर संतोष करना पड़ा।
कृषि कानूनों को लेकर 2021 में चले किसान आंदोलन के बाद भाजपा और शिरोमणि अकाली दल का 25 साल पुराना गठबंधन टूट गया था। इसके बाद ही दोनों दलों को कई चुनावों में हार का मुंह देखना पड़ा। जालंधर उपचुनाव कांग्रेस के लिए तो आत्मचिंतन का विषय है ही वहीं भाजपा और शिरोमणि अकाली दल के लिए आत्ममंथन का विषय है। जीत हासिल करने के लिए दोनों दलों का साथ आना बहुत जरूरी है। 2024 के आम चुनावों से पहले हो सकता है कि दोनाें दल फिर साथ आ जाएं। ऐसा करना दोनों की मजबूरी भी है। भविष्य में क्या समीकरण बनते हैं इस संबंध में तो समय ही बताएगा। फिलहाल आप पार्टी जालंधर की धुरंधर साबित हुई है।
आदित्य नारायण चोपड़ा