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जनता कर्फ्यू : जन-जन का

अब जबकि कोरोना वायरस की कोई दवाई अभी तैयार ही नहीं हुई है तो बचाव ही इसका एकमात्र उपाय है। स्व विवेक से बीमारी से बचने के लिए घरों में रहना ही उचित है।

चाणक्य ने अपने ग्रंथ अर्थशास्त्र में लिखा है कि राजा का यह कर्त्तव्य होता है कि वह अपने राज्य में प्रजा के जीवन और सम्पत्ति की रक्षा करे। राजा से यह भी अपेक्षा रखी जाती है कि विभिन्न समस्याओं और तमाम सामाजिक संकटों में अपनी प्रजा की रक्षा करे। यही नहीं राजा को अराजक और असामाजिक तत्वों की रक्षा करने के साथ-साथ चिकित्सा सुविधा, लोगों की कई तरह से सहायता तथा अकाल, बाढ़, महामारी आदि में रक्षा व्यवस्था करनी चाहिए। इसमें कोई संदेह नहीं कि भारत में महामारी की स्थिति से निपटने के लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी चाणक्य द्वारा प्रतिपादित सिद्धांतों पर चल कर काम कर रहे हैं। कोरोना वायरस को हराने के लिए केन्द्र और राज्य सरकारें युद्ध स्तर पर काम कर रही हैं लेकिन किसी भी महामारी को पराजित करने के लिए जन सहयोग बहुत जरूरी है। अगर जनता जागरूक होकर सरकार के साथ भागीदारी अपनाए तो कोरोना वायरस का कम्युनिटी ट्रांसमीशन रोका जा सकता है। 
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने देशवासियों को सम्बोधित करते हुए कोरोना वायरस से फैलने वाली महामारी को रोकने में मदद की अपील के साथ 22 मार्च को जनता कर्फ्यू लगाए जाने की बात भी कही। उनका सम्बोधन शुरू होने से पहले ही सोशल मीडिया पर चर्चा शुरू हो गई थी जो अब तक जारी है। सोशल मीडिया पर नरेन्द्र मोदी की सराहना भी हुई और आलोचना भी, लेकिन प्रधानमंत्री लोकप्रिय और प्रभावशाली नेता हैं। वे किसी भी छोटी-बड़ी बात को राष्ट्रीय अभियान में बदलने की क्षमता रखते हैं। वे जिस शैली में जनता से संवाद करते हैं उससे हर कोई प्रभावित है। जब भी उन्होंने राष्ट्र को सम्बोिधत किया, चाहे वह नोटबंदी हो या कुछ और जनता ने उन्हें भरपूर सहयोग दिया है। कोरोना वायरस जैसे महासंकट से निपटने के लिए उन्होंने देशवासियों से सहयोग मांगा है तो इसमें गलत क्या है? देश में आलोचना करने के लिए हर नागरिक स्वतंत्र है लेकिन महामारी से बचने के लिए भारतीय नागरिकों काे भी कर्त्तव्य निभाना है अन्यथा परिणाम भयंकर हो सकते हैं। नागरिकों के कर्त्तव्य को लेकर एक कहानी याद आ रही हैः
‘‘एक बार एक राज्य में महामारी फैल गई। चारों ओर लोग मरने लगे। राजा ने इसे रोकने के लिए बहुत सारे उपाय करवाए मगर कुछ असर नहीं हो रहा था। दुखी राजा ने ईश्वर से प्रार्थना की, तभी आकाशवाणी हुई। आसमान से आवाज आई कि हे राजा तुम्हारी राजधानी के बीचोंबीच जो पुराना सूखा कुआं है, अगर अमावस्या की रात राज्य के प्रत्येक घर से एक-एक बाल्टी दूध उस कुएं में डाला जाए तो अगली ही सुबह ये महामारी समाप्त हो जाएगी। राजा ने तुरन्त यह घोषणा करवा डाली कि महामारी से बचने के लिए अमावस्या की रात हर घर से एक-एक बाल्टी दूध सूखे कुएं में डालना जरूरी है। जब अमावस्या की रात आई तो एक चालाक और कंजूस बुढ़िया ने सोचा कि सारे लोग कुएं में दूध डालेंगे, अगर मैं अकेली एक बाल्टी पानी डाल दूंगी तो किसी को क्या पता चलेगा। इसी विचार से वह चुपचाप कुएं में एक बाल्टी पानी डाल आई। अगले दिन देखा तो कुछ नहीं बदला था, लोग पहले की ही तरह मर रहे थे। राजा ने कुएं में देखा तो सारा कुआं पानी से भरा हुआ था। महामारी दूर नहीं हुई। ऐसा इसलिए हुआ कि जो विचार एक बुढ़िया के मन में आया था, वही विचार राज्य के लोगों के मन में भी आया और किसी ने कुएं में दूध डाला ही नहीं।’’ जब भी कोई ऐसा काम आता है जिसमें सभी लोगों  की एकजुटता जरूरी है तो अक्सर लोग जिम्मेदारियों से पीछे हट जाते हैं कि कोई न कोई तो कर ही देगा। महामारी की स्थिति में हमारी कोई भी लापरवाही जानलेवा साबित हो सकती है। 
प्रधानमंत्री ने जिस जनता कर्फ्यू की बात कही है वह भारत के लिए नया नहीं है। कर्फ्यू तो दंगों में लगाया जाता है लेकिन जनता कर्फ्यू जनता की ओर से जनता के लिए खुद लगाया जाता है। यह आपके विवेक पर छोड़ दिया गया है। यानी पुलिस कर्मियों की ओर से कोई पाबंदी नहीं लगाई गई। यह एक तरह से स्व अनुशासन है। यह आपके ऊपर है कि आप खुद ही घर से बाहर न निकलें। अब जबकि कोरोना वायरस की कोई दवाई अभी तैयार ही नहीं हुई है तो बचाव ही इसका एकमात्र उपाय है। स्व विवेक से बीमारी से बचने के लिए घरों में रहना ही उचित है। समस्या यह है कि भारतीय हर छुट्टी को पर्व मान लेते हैं लेकिन इस समय सोशल डिस्टेंसिंग की जरूरत है। मुश्किल यह भी है कि भारत की झुग्गी बस्तियों में, सड़कों के किनारे झुग्गियां डालकर रहने वाले लोगों को कोरोना वायरस से फैली महामारी की कोई खबर ही नहीं है। ऐसी स्तिथि में बेहतर यही होगा कि देशवासी जनता कर्फ्यू का पालन करें, यही उनका कर्त्तव्य भी है, साथ ही समाज के उस वर्ग को जागरूक करने का कर्त्तव्य सरकार और जनता का है, जिसे इस संबंध में कुछ ज्ञान ही नहीं है। हम सतर्क न हुए तो भारत में भी महामारी का विस्फोट हो सकता है। थोड़ी सी लापरवाही बड़ी आबादी का जीवन खतरे में डाल सकती है। राष्ट्र अपना कर्त्तव्य निभाए।
-आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.कॉम

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