दिल्ली के जन्तर-मन्तर पर धरने पर बैठे अन्तर्राष्ट्रीय पदक विजेता महिला व अन्य पहलवानों को 12 दिन से ज्यादा का समय हो गया है मगर अभी तक उनकी सभी मांगें नहीं मानी गई हैं हालांकि उनकी यह मूल मांग स्वीकार कर ली गई है कि जिन महिला पहलवानों द्वारा भारतीय कुश्ती संघ के अध्यक्ष श्री बृजभूषण शरण सिंह के खिलाफ यौन उत्पीड़न की शिकायत दर्ज कराई गई थी उसे पुलिस एफआईआर में बदल दिया गया है। पुलिस ने यह कार्रवाई महिला पहलवानों द्वारा सर्वोच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाने के बाद की। न्यायालय ने ही आदेश जारी किये थे कि महिला पहलवानों की शिकायत का दिल्ली पुलिस कानून के अनुसार संज्ञान ले परन्तु हम देख रहे हैं कि पहलवानों का यह धरना पिछले 12 दिन में किसी राजनैतिक अखाड़े में बदल चुका है और लगभग हर विपक्षी दल का नेता जन्तर-मन्तर पर अपनी हाजिरी भर रहा है।
उधर कुश्ती संघ के अध्यक्ष श्री बृजभूषण शरण सिंह देश के लगभग हर प्रमुख टीवी न्यूज चैनल को साक्षात्कार देकर यह घोषणा कर रहे हैं कि उन पर लगे आरोप सरासर गलत व झूठे हैं और वह किसी भी संस्था यहां तक कि सीबीआई द्वारा जांच कराये जाने के लिए भी तैयार हैं। श्री सिंह पूर्वी उत्तर प्रदेश की राजनीति में बेशक बाहुबली माने जाते हों मगर यह भी सच है कि वह छह बार से लोकसभा का चुनाव जीत रहे हैं। मगर उन पर आरोपों का चुनावी जीत से सीधा सम्बन्ध इसलिए नहीं हो सकता क्योंकि चुनावों में हार-जीत की बाजियां बिल्कुल अलग समीकरणों पर निर्भर करती हैं लेकिन इस प्रकरण में सर्वोच्च न्यायालय के आ जाने के बाद यह उम्मीद जगनी लाजिमी थी कि पहलवानों के आरोपों की जांच अब देश के कानून के दायरे में होगी क्योंकि न्यायालय ने यह भी निर्देश दिया था कि शिकायतकर्ता महिला पहलवानों को पूरी सुरक्षा दी जाये। इसका पालन भी किया गया परन्तु गत रात्रि को जन्तर-मन्तर पर प्रदर्शनकारी पहलवानों और पुलिस में हल्की झड़प भी हो गई। इस झड़प में पुलिस के अनुसार कुछ लोगों को हल्की चोट भी आई मगर पहलवानों का यह आरोप निराधार है कि किसी पुलिसकर्मी ने शराब के नशे में उनसे दुर्व्यवहार किया। इससे पहलवानों के धरने में राजनीति अपना रंग भरने की फिराक में है क्योंकि मामला पहलवानों से आगे बढ़ कर हरियाणा के एक विशिष्ट अखाड़े के पहलवानों से जाकर जुड़ता लग रहा है। इससे भारत की उस महान ‘मल्ल विद्या’ या कुश्ती अथवा पहलवानी की प्रतिष्ठा पर भारत को प्राचीन काल से गर्व रहा है और यह इस देश की संस्कृति का प्रमुख हिस्सा रहा है। इस विद्या पर कभी भी किसी एक जाति या मजहब के मानने वाले लोगों का अधिपत्य नहीं रहा बल्कि यह भारत की मिट्टी का ऐसा खेल रहा है जिसने यौवन व शारीरिक बल को शास्त्रीयता बख्शी है।
आज तक भारत के हर गांव-मोहल्ले में विश्व विजयी ‘गामा’ पहलवान के किस्से बुजुर्ग सुनाते रहते हैं। वह जन्म से मुसलमान था मगर पटियाला की सिख रियासत का शाही पहलवान था। उसकी कुश्ती के दांव-पेंचों के किस्से कुश्ती के शौकीन लोगों के बीच किंवदन्तियां बन चुके हैं। आजादी के बाद तक भारत के प्रमुख राज्यों के हर जिले में वहां का एक सरनाम पहलवान हुआ करता था। संयुक्त पंजाब से लेकर महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, कर्नाटक व तमिलनाडु, राजस्थान व बंगाल और बिहार तक के पहलवान देश में आयोजित होने वाले दंगलों में अपने जलवे बिखेरा करते थे। यह शौक इस हद तक था कि स्वयं शाही रजवाड़े तो अपने दरबार में बलिष्ठ पहलवान रखते ही थे बल्कि कुछ ऐसे भी थे जो स्वयं मल्ल विद्या में पारंगत होते थे। महाकवि निराला के कुश्ती के शौक से कौन साहित्य प्रेमी अनभिज्ञ रह सकता है।
निराला की जीवनी पर आधारित प्रसिद्ध समालोचक डा. राम विलास शर्मा ने अपनी पुस्तक ‘निराला की साहित्य साधना’ में एक ऐसी घटना का जिक्र किया है जिसमें बंगाल में हो रहे एक दंगल को देखने उस समय के प्रसिद्ध कांग्रेस नेता स्व. विधानचन्द्र राय किसी देशी रियासत के राजा के साथ स्वयं उपस्थित थे। वहां पहलवान दंगल में लोहे की एक मोटी छड़ को कुछ ही मिनट में मोड़ देता था। उसे चुनौती देने वाला कोई नहीं था। तब स्व. राय ने कहा कि अब राजा साहब छड़ मोड़ेंगे। राजा साहब उठे और उन्होंने कुछ ही सैंकेड में लोहे की छड़ को मोड़ कर अंग्रेजी के आठ अंक की शक्ल में परिवर्तित कर दिया। कहने का मतलब यह है कि कुश्ती किसी का भी एकाधिकार नहीं हो सकती। वर्तमान में स्व. मुलायम सिंह यादव जैसे राजनीतिज्ञ भी कुश्ती के मंजे हुए पहलवान रहे थे।
बेशक कुश्ती में महिलाओं का प्रवेश हाल ही में ही हुआ है मगर इस खेल के खलीफा और प्रधानों के चरित्र पर कभी लांछन लगाने के प्रयास नहीं हुए क्योंकि कुश्ती खेल ही ऐसा है जिसे मोटी भाषा में ‘लंगोट का सच्चा’ व्यक्ति ही निभा सकता है। 2012 में निर्भया कांड के बाद महिलाओं के बारे में जो कानून दंड संहिता में शामिल किये गये थे उनको लेकर उस समय भारत की संसद में बहुत तीखी बहस हुई थी और इन्हें एक पक्षीय तक कहा गया था। सबसे ज्यादा आलोचना गांव की पृष्ठभूमि वाले सांसदों व ऐसे राजनैतिक दलों के नेताओं द्वारा ही की गई थी लेकिन ये कानून आज भारत की सच्चाई हैं और इन्ही के दायरे में न्याय भी होना चाहिए लेकिन विचार किये जाने की जरूरत यह भी है कि सर्वोच्च न्यायालय ने ही आज यह दलील सुनने के बाद पहलवानों के मुकदमे को बन्द कर दिया कि आरोपी बृजभूषण शरण सिंह के खिलाफ एफआईआर दर्ज हो चुकी है। अब आगे कानून अपना काम करेगा।