अंग्रेजी हकूमत से लेकर देश की सरकारों और एजेन्सियों के द्वारा भी समय-समय पर सिखों को एकजुट होने से रोकने के लिए माहौल बनाया जाता रहा है यहां तक कि अन्दर खाते से सिखों की नुमाईंदगी करने वाली राजनीतिक पार्टियां भी नहीं चाहती कि सिख समाज एकजुट हो, क्योंकि उन्हें इस बात का अच्छे से ज्ञान है कि सिख समाज अगर एकजुट हो गया, तो उन्हें कौन पूछेगा? देश की आजादी से लेकर हर बड़े मोर्चे की शुरूआत पंजाब से ही होती आई है। गुरु साहिबान ने सिखों में ऊंच-नीच, जाति-पाति के भेदभाव को मिटाया। गुरु गोबिन्द सिंह जी ने सिख सजाते समय सिखों को ''मानस की जात सबै एक पहचानबो'' का सन्देश दिया और कहा था कि आज के बाद पुरुष के साथ सिंह और महिला के साथ कौर लगेगा, मगर अफसोस कि आज सिंह और कौर के बजाए नाम के पीछे जाति ही लगाई जाती है। सिख समाज नामधारी, निरंकारी, राधा स्वामी और न जानें कितने डेरों से जुड़कर सिख की मूल परिभाषा से दूर होता चला जा रहा है, जो सिख बचे भी हैं, वह जाट, भापा, रामगढ़िया, लुबाणा और न जाने कितनी बिरादरियों में बंट चुके हैं।
श्री अकाल तख्त साहिब के पूर्व जत्थेदार ज्ञानी हरप्रीत सिंह एवं मौजूदा जत्थेदार ज्ञानी रघुबीर सिंह के द्वारा सिखों को एकजुट होने की अपील किए जाना प्रशंसनीय कदम है, मगर इससे पहले के जत्थेदारों प्रोफैसर दर्शन सिंह, भाई रणजीत सिंह, प्रो. मनजीत सिंह या फिर अन्य किसी के द्वारा जब कभी इस तरह की अपील की गई तो सिखों की धार्मिक जत्थेबंिदयों पर काबिज नेताओं को यह नाखुशगुवार गुजरा और उन्हें तुरन्त प्रभाव से हटा दिया गया। क्या अब यह समझ लिया जाए कि जत्थेदार साहिबान के द्वारा की गई कार्रवाई उन नेताओं की रजामंदी से हो रही है, क्योंकि अब उनका अपना जनाधार सिख समाज में पूरी तरह से समाप्त होता दिख रहा है। या फिर जत्थेदारों को समझ आ चुकी है कि अगर पंथ में अपनी पकड़ बनानी है तो बिना किसी की परवाह किए दिलेरी से फैसले लेने होंगे। शायद इसी के चलते ज्ञानी हरप्रीत सिंह के द्वारा खुलकर सिख विरोधी नीतियों के खिलाफ आवाज बुलंद की जा रही है।
राहुल गांधी के विदेश में दिए बयान से सिख समाज में खलबली : कांग्रेसी नेता राहुल गांधी ने अमरीका की धरती पर एक ऐसा बयान दिया, जिसमें उन्होंने आने वाले समय में भारत के अन्दर सिखों की दस्तार, धार्मिक चिन्ह कड़ा आदि सहित सिखों की पहचान को खतरे में बताया जिसके बाद से भारत के अन्दर सिख नेताओं की अलग-अलग प्रतिक्रियाएं आने लगीं। भाजपा से जुड़े सिख नेता हरदीप सिंह पुरी, इकबाल सिंह लालपुरा, आर.पी. सिंह, मनजिन्दर सिंह सिरसा के साथ-साथ दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबन्धक कमेटी अध्यक्ष हरमीत सिंह कालका, महासचिव जगदीप सिंह काहलो ने भी राहुल के इस बयान की सख्त शब्दों में निन्दा की। उन्होंने साफ कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी सिखों की कुर्बानियों से भलिभान्ति परिचित हैं, सिख गुरु साहिबान में भी पूरी आस्था रखते हैं इसी के चलते सिख गुरुओं के पर्व सरकारी स्तर पर मनाए जा रहे हैं, साहिबजादों की शहादत के गौरवमई इतिहास जिसे सिख जत्थेबंिदयां स्वयं देशवासियों को बताने में असमर्थ रही, मगर मौजूदा प्रधानमंत्री और सरकार के प्रयासों से आज देश का बच्चा-बच्चा साहिबजादों के इतिहास को जान चुका है, ऐसें में यह कहना कि आने वाले समय में इस सरकार में सिखों की दस्तार और धार्मिक चिन्हों पर किसी तरह की पाबंदी लग सकती है हास्यपद ही कहा जा सकता है। मगर वहीं गैर भाजपाई सिख खासकर शिरोमणि अकाली दल से जुड़े नेता इसकी पैरवी करते दिख रहे हैं। उनके द्वारा हवाला दिया जा रहा है कि आए दिन परीक्षा केन्द्रों में सिख बच्चों के ककार, कड़ा आदि उतरवाए जाते हैं पर शायद वह भूल रहे हैं कि इसमें सरकारों की नहीं बल्कि परीक्षा केन्द्रों पर तैनात अधिकारियों की गलती रहती है जिन्हें सिख धर्म के प्रति जानकारी का आभाव होता है और अगर यह कहा जाए कि उससे भी ज्यादा अगर कोई कसूरवार है तो वह सिख जत्थेबंिदयां स्वयं हैं, जिनके द्वारा आजादी के 77 वर्ष बाद भी देशवासियों को सिखों की कुर्बानियां और उनके गौरवमई इतिहास की जानकारी सही ढंग से नहीं दी गई।
असल में राहुल गांधी ने अमरीकी सिखों के समक्ष भाजपा की छवि धूमिल करने हेतु इस तरह की बयानबाजी की मगर शायद वह भूल गए कि भारत लोकतांत्रिक देश है और यहां पर हर किसी को अपने धर्म, जाति के हिसाब से रहने की पूर्ण आजादी है और खासकर सिखों की आजादी पर तो किसी भी तरह का कोई खतरा नहीं है और न ही कभी हो सकता है क्योंकि सिख ऐसी निधड़क कौम है, जो दूसरों की रक्षा करने के लिए भी हमेशा तैयार रहती है, ऐसे में उनकी सुरक्षा को खतरा कैसे हो सकता है। सिख समाज, राष्ट्रपति से लेकर और कई सर्वोच्च पदांे पर समय-समय पर देश की नुमाईंदगी करते आए हैं।
याद आए अवतार सिंह हित : धार्मिक जत्थेबंिदयों में सेवाएं निभाने वाले बहुत कम लोग होते हैं जिन्हें उनके इस संसार से चले जाने के बाद भी लोग याद रखते हैं, क्योंकि उन्होंने अपने कार्यकाल में अनेक लोगों को मदद की होती है जिसके चलते उन्हें चाहकर भी भुलाया नहीं जा सकता। उन्हीं में एक थे जत्थेदार अवतार सिंह हित। जिन्होंने लम्बे समय तक शिरोमणि अकाली दल में अहम जिम्मेवारी को पूर्णतः वफादारी के साथ निभाया। दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबन्धक कमेटी में सालों तक सदस्य रहे और प्रधानगी मिलने पर गुरुद्वारा बाला साहिब अस्पताल की जमीन कोड़ियों के भाव सरकार से लेने में सफलता हासिल की। दिल्ली कमेटी के कामकाज को कंप्यूटरीकृत करवाया इसके अतिरिक्त और भी अनेक ऐसे कार्य उन्होंने अपने समय में करवाए। दिल्ली कमेटी से लेकर पटना कमेटी का स्टाफ उनसे खासा प्रसन्न था क्योंकि उनकी दिली इच्छा रहती थी कि स्टाफ को हर हाल में खुश रखा जाए। गुरबाणि का उन्हें बहुत अधिक ज्ञान था, सुबह अमृतवेले उठकर वह कई बाणियों का पाठ कर लेते। मुझे आज भी याद है 26 अगस्त, 2022 का वह दिन जब जत्थेदार अवतार सिंह हित आखिरी बार तख्त साहिब से दिल्ली के लिए रवाना हो रहे थे तो उन्होंने रिसेप्शन पर वरिष्ठ उपाध्यक्ष जगजोत सिंह सोही जिन पर वह आंख बंद करके भरोसा किया करते, उनसे कहकर निकले कि आज से प्रधानगी की जिम्मेवारी उन्हें संभालनी है। मानो उन्हें अन्दर से ज्ञात हो गया था कि यह उनकी आखिरी फेरी है। जगजोत सिंह सोही ने भी पहले वरिष्ठ उपाध्यक्ष और अब अध्यक्ष रहते जत्थेदार अवतार सिंह हित के अधूरे कार्यों को पूरा करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। गुरचरण सिंह टोहड़ा के बाद जत्थेदार अवतार सिंह हित ऐसे नेता थे, जो निडरता और निधड़कपन के साथ अपनी बात रखने की क्षमता रखते थे।
– सुदीप सिंह