जब जीवन की परिस्थितियां खुशगवार होती हैं तब जीवन का प्रवाह तेजी से भागता है। जीवन ठहर जाए तो मुश्किलें आती हैं। जीवन चलने का नाम है, चलते रहो सुबह-शाम, यह फिल्मी गीत जीवन की गति की ओर इशारा करता है। जीवन में उतार-चढ़ाव तो आते रहते हैं। कोरोना वायरस की महामारी के चलते लॉकडाउन में इस पहलु को नजरंदाज नहीं किया जा सकता कि लोगों में नकारात्मकता का भाव आ रहा है। काम-धंधे ठप्प हैं, अर्थव्यवस्था को नुक्सान हो रहा है, बेरोजगारी फैल चुकी है। हर रोज मजदूरों पर कहर बरपने की खबरें आ रही हैं। आम आदमी से लेकर दिग्गज सभी खुद को हो रहे नुक्सान का आकलन कर रहे हैं।
आपदा कोई भी हो, चाहे वो मानव निर्मित हो या प्राकृतिक, उसका मुकाबला करने के लिए सकारात्मक वातावरण का होना बहुत जरूरी है। अगर लोग पॉजिटिव ढंग से नहीं सोचेंगे तो फिर मुश्किलें और भी बढ़ जाएंगी।
कोरोना वायरस को लेकर स्वास्थ्य मंत्रालय कम्युनिटी ट्रांसफर से इंकार कर रहा है लेकिन एम्स के निदेशक रणदीप गुलेरिया ने जो अलर्ट दिया है वह बेहद अहम है। उन्होंने आगाह किया है कि जून-जुलाई में कोरोना चरम पर होगा यानी कोरोना का विकराल रूप अभी आने वाला है। उसके बाद यह धीरे-धीरे कम होता जाएगा। इस वक्तव्य के पीछे कोई गणना नहीं है, बल्कि एक प्राकृतिक थ्योरी है। महामारी में लोगों को आगाह करना अच्छी बात है लेकिन यह भी देखा जाना चाहिए कि कहीं इससे हताशा न फैल जाए। जीवन के प्रति नकारात्मक वातावरण सृजित नहीं होना चाहिए।
दूसरी ओर केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्री डा. हर्षवर्धन ने कहा कि कुछ ही हफ्तों में कोरोना न केवल फ्लैट हो जाएगा बल्कि रिवर्स भी हो जाएगा। उम्मीदों से भरे इस बयान से डा. हर्षवर्धन की सकारात्मक सोच ही उजागर हुई है। उन्होंने यह भी कहा है कि देश की 135 करोड़ आबादी है जो दुनिया के 20 देशों के बराबर है। छोटे देशों में भी हमसे बहुत ज्यादा केस आए हैं और मौतें भी हुई हैं। भारत बाकी दुनिया से काफी अच्छा काम कर रहा है। राहत भरी खबर यह भी है कि भारतीय वैज्ञानिकों ने मई में ही एंटीबॉडी टैस्ट किट और आरटी-पीसीआर टैस्ट किट बनाना शुरू कर रहे हैं। हमारी देसी किट चीन की टैस्ट किट से कहीं बेहतर होगी।
डा. हर्षवर्धन ने लम्बे लॉकडाउन के चलते लोगों की दुखती रग पर हाथ रखा है। 17 मई को लॉकडाउन को 50 दिन पूरे हो जाएंगे। उन्हें इस बात का अहसास है कि लम्बे समय तक देश को बंद करके नहीं रखा जा सकता इसलिए लॉकडाउन को धीरे-धीरे खोलना भी जरूरी है।
इस समय अर्थव्यवस्था को नई रोशनी चाहिए। अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए सभी को सकारात्मक विचारों के साथ आगे बढ़ना होगा। हमारा संकल्प यही होना चाहिए कि हमने कोरोना को पराजित भी करना है और साथ ही अर्थव्यवस्था को गति भी प्रदान करनी है। हो सकता है हमें नए मॉडल अपनाने पड़ें। यह सही है कि ग्लोबलाइजेशन का दौर काफी आगे बढ़ चुका है लेकिन लोकलाइजेशन में भी रोजगार की अपार सम्भावनाएं हैं। शहरों से गांव की ओर बढ़ रहे बेरोजगार मजदूरों की भीड़ को काम देना भी बड़ी चुनौती है। बौद्धिक जगत में स्थापित हो चुकी मान्यताओं और समाधानों से अलग हट कर कुछ नया सोचने की जरूरत है, क्योंकि कोरोना संकट बहुत बड़ा है। अर्थव्यवस्था के वैश्विक चक्र के साथ ही अब हमें स्थानीय स्तर के अर्थ चक्र को वैकल्पिक समाधान के रूप में अपनाना होगा। उत्पादन, बाजार बिक्री और रोजगार के नेटवर्क को कायम रखना होगा।
गांवों में पहुंच चुके श्रमिकों को कुछ दिनों के एकांतवास के बाद घरों में भेजा जा रहा है। उन्हें फिर शहरों में स्थापित उद्योगों की ओर लाना भी चुनौतीपूर्ण होगा। बेहतर होगा गांवों को अर्थव्यवस्था का केन्द्र बनाया जाए। शहरों और गांवों की खाई पाट कर ऐसा किया जा सकता है। अर्थव्यवस्था के विकास के लिए महात्मा गांधी की सहकारीकरण की प्रक्रिया अपनाई जा सकती है। अंग्रेजों के शासन में महात्मा गांधी का चरखा ही गांव को आर्थिक केन्द्र बनाने का हथियार बना था। हमें एक बार फिर लघु एवं कुटीर उद्योगों को बढ़ावा देना चाहिए। जब हमें कोरोना के साथ ही जीना है तो फिर सोशल डिस्टेंसिंग , मास्क पहनने और स्वच्छता को अपनी आदतों में शुमार करना होगा। जिस दिन हमने इसे पूरी तरह अपना लिया उसी दिन कोरोना भाग जाएगा। नई राहें तो अपनानी होंगी। इसलिए सकारात्मक सोच से आगे बढ़ें, जरूरी नहीं कि देश का नेतृत्व बार-बार आपको टास्क दे। जीवन में आगे बढ़ने के लिए हमें जिम्मेदारी के साथ खुद अपने टास्क सम्भालने होंगे। देशी हुनर को महत्व देना होगा। जिन्दगी कैसी ये पहेली, कभी ये हंसाए कभी ये रुलाए। उपनिषद कहते हैं- चरैवति-चरैवति अर्थात चलते रहो-चलते रहो, चलना ही ज़िंदगी है।
आदित्य नारायण चोपड़ा
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