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जेट एयरवेज : प्राईस वार का प्रहार

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कर्ज के जाल में फंसी जेट एयरवेज के चेयरमैन नरेश गोयल और उनकी पत्नी अनिता गोयल के बोर्ड की सदस्यता से इस्तीफे के बाद इस बात की उममीद है कि संकट का समाधान हो जाएगा। नरेश गोयल ने कंपनी के चेयरपैन पद से इस्तीफा देने की पेशकश की थी। नरेश गाेयल जेट एयरवेज के प्रमुख प्रमोटरों में से एक थे। उन्होंने लगभग 25 वर्षों से सेवाएं दी हैं। अब एसबीआई के नेतृत्व में जेट के कर्जदाता डेट इंस्ट्रूमैंट्स के जरिये कंपनी में 1500 करोड़ की पूंजी डालेगा। जेट एयरवेज के कर्जदाताओं ने कंपनी के बोर्ड और प्रबंधन को नियंत्रण में ले लिया है। कर्जदाता कंपनी के लिए नया रणनीतिक पार्टनर ढूंढने को लेकर जल्द ही एक आक्शन प्रक्रिया शुरू करेंगे। जेट एयरवेज ने विमान सेवाओं में ऊंची उड़ान भरी लेकिन जेट एयरवेज का संकट क्यों पैदा हुआ?

यह सवाल नीति निर्माताओं के लिए आंखें खोलने वाला है। स्पाईस जेट कंपनी की विफलता की कहानी सरकारी बैंकों से ऋण लेकर घी पीने की कहानी थी लेकिन जैट एवरवेज का कर्ज के जाल में फंसना बाजार की कड़ी प्रतिस्पर्धा का परिणाम रहा। अभी भी वक्त है कि नीति निर्माताओं को ऐसी चुनौतियों का समाधान निकाले जाने के बारे में सोचना होगा ​जो कि घरेलू एयरलाइनों को असुविधाजनक बना रही है। सरकार ने 80 के दशक में एविएशन सैक्टर में एफडीआई का रास्ता खोला तो उसके तुरंत बाद कभी बंगाली मार्किट की बरसाती रहने वाले नरेश गोयल के दिन ही बदल गए। वह आसमान में ही रहने लगे। वह दिल्ली से मुम्बई शिफ्ट हो गए।

नरेश गोयल ने भारत की पहली वर्ल्ड क्लास एयरलाइन्स का श्रीगणेश किया। जेट एयरवेज में 51 फीसदी हिस्सेदारी नरेश गोयल के पास थी जबकि एतिहाद एयरवेज के पास 24 फीसदी हिस्सेदारी रही। जेट एयरवेज में पूंजी निवेश को लेकर कई सवाल भी उठे थे। 1975 में पंजाब के संगरूर से दिल्ली आए नरेश गोयल की सफल उड़ान पर लोग काफी हैरान भी होते थे। 2005 में गोयल भारत के सबसे धनी व्यक्ति रहे। 26 वर्ष पुरानी जेट एयरवेज को दूसरी बार आर्थिक संकट का सामना करना पड़ रहा है। इससे पहले 2013 में आर्थिक संकट के समय आबूधाबी की एतिहाद एयरवेज को 24 फीसदी शेयर बेचने पड़े थे। भगौड़े विजय माल्या की कंपनी ​किंगफिशर 2005 में शुरू हुई थी और उसने जरूरत से ज्यादा खर्चा किया जिसकी वजह से उसका पतन जल्दी हो गया लेकिन जेट एयरवेज का संकट घरेलू प्रतिस्पर्धा रहा। पिछले कुछ सालों में जेट एयरवेज ने सस्ते किराए की योजनाएं शुरू कीं लेकिन उसकी आमदनी नहीं बढ़ी।

2012 में किंगफिशर बंद हुई तो जेट एयरवेज ने घरेलू उड़ानों की संख्या बढ़ा कर फायदा नहीं उठाया। जबकि दो अन्य कंपनियों ने फायदा उठाया। जेट एयरवेज ऐसी एयरलाइन है जिसने भारतीय यात्रियों को कम कीमत पर हवाई यात्रा का लुत्फ दिया। बाजार विशेषज्ञों का कहना है कि जेट एयरवेज अपनी प्रतिद्वंद्वी कंपनियों से एक रुपए की लड़ाई में बर्बाद हुई। आज से चार वर्ष पहले 2015 जेट एयरवेज को सिर्फ एक रुपए की जरूरत थी अगर वह एक रुपए का जुगाड़ कर लेती तो आज उसे जमीन पर नहीं उतरना पड़ता। 2015 के खत्म होते-होते जेट एयरवेज को इंडिगो के मुकाबले हर सीट पर सिर्फ 50 पैसे ज्यादा कमाई हो रही थी। जेट को पछाड़ने के लिए प्रतिद्वंद्वी कंपनी ने अपने आप्रेशन्स 2.5 गुणा तेज कर दिए और टिकटों पर यात्रियों को बड़ी छूट देनी शुरू की।

जेट एयरवेज को एक रुपए की लड़ाई लड़नी थी, अगर जेट एयरवेज ने एक रुपए प्रति किलोमीटर की दर से टिकट सस्ता किया होता तो कोई उसे मात नहीं दे सकता था। कंपनी के हालात बिगड़ते चले गए। कंपनी अपने कर्ज की किस्तें नहीं चुका पाई। पायलटों आैर कर्मचारियों को वेतन देने में देरी होने लगी। कई उड़ानें रद्द करनी पड़ीं। टिकटों का पैसा यात्रियों को वापिस करना पड़ा। 2017 तो कंपनी के लिए बहुत बुरा साबित हुआ। तेल की कीमतों में बढ़ौतरी पूरी एविएशन इंडस्ट्री को नुक्सान झेलना पड़ा। किफाय​ती विमानन सेवा प्रदाता कंपनियों ने प्राइस वार को पूरी तरह से नए मुकाम पर पहुंचा दिया। अब जेट एयरवेज की सेहत सुधारने के लिए कंपनी में पूंजी डालने के सिवा कोई और रास्ता ही नहीं है। जेट एयरवेज एक निजी विमानन कंपनी है और उसे चलाने का काम सरकार का नहीं बल्कि प्रबंधन का है। सरकार की अपनी विमानन कंपनी की हालत भी किसी से छिपी हुई नहीं है।

लोकसभा चुनावों को देखते हुए सरकार द्वारा भारी भरकम खर्च के साथ जेट को उड़ान भरने देने की संभावना ही नहीं थी। सवाल यह भी उठता है कि क्या सरकार जेट एयरवेज के साथ ​किंगफिशर से अलग व्यवहार कैसे कर सकती है। अगर अब सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों ने कंपनी में 1500 करोड़ रुपए की पूंजी डालने का निर्णय लिया है जो यह बैंकों द्वारा न्यायोचित हित तथा जनहित को ध्यान में रख कर ही लिया गया है लेकिन जेट एयरवेज की राह अभी भी आसान नहीं, कंपनी को पुनर्जीवित करने के लिए अभी भी बहुत कुछ कर्जदाताओं पर निर्भर करता है कि कंपनी में ज्यादा से ज्यादा पूंजी डाली जाए या नया मालिक ढंूढा जाए।

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