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विपक्षी दलों की संयुक्त बैठक

लोकतन्त्र की सफलता की गारंटी सचेत और मजबूत विपक्ष भी होता है मगर विपक्ष का मतलब केवल विरोध भी नहीं होता है

लोकतन्त्र की सफलता की गारंटी सचेत और मजबूत विपक्ष भी होता है मगर विपक्ष का मतलब केवल विरोध भी नहीं होता है बल्कि ऐसा सज्जन समालोचक होता है जो सत्ता पक्ष द्वारा रखे गये किसी भी प्रकल्प के ‘सार’ को ग्रहण करके ‘थोथा’ अर्थात निरर्थक तत्व को हवा में उड़ा देता है और आम जनता का ध्यान इस तरफ आकृष्ट करता है। दूसरी तरफ सत्ता पक्ष की सफलता भी उसके द्वारा अपने कार्यों के गुण-दोष की परख में छिपी होती है जिसे वह केवल आलोचक को अपने निकट  रख कर ही कर सकता है।
निन्दक नियरे राखिये आंगन कुटि छवाय 
बिन पानी माटी बिना, निर्मल होत सुहाय 
यह भारतीय संस्कृति में रचा-बसा व्यवहार तत्व ज्ञान है जिसे सन्त कवि कबीर ने बहुत सरल शब्दों में व्यक्त किया था लेकिन इससे पता चलता है कि भारत में लोकतन्त्र की जड़ें कितनी गहरी हैं क्योंकि सन्त कबीरदास ऐसे जोगी हुए जिन्होंने राजशाही के दौर में धर्मान्धता के पाखंड के विरुद्ध वाणी से विद्रोह किया और मानवता के सिद्धान्त में ​विश्वास प्रकट करते हुए आदमी को सबसे पहले ‘इंसान’ बनने की प्रेरणा दी। आजादी के बाद हमने जिस संसदीय लोकतन्त्र को अपनाया उसकी नींव भारत की यही प्राचीन परंपरा है जिसमें अपने विरोधी को भी सम्मान दिया जाता है। महात्मा गांधी इस सिद्धान्त के इतने कट्टर समर्थक थे कि जब उनसे यह पूछा गया कि वह उनके सिद्धान्तों के विरुद्ध विचार रखने वाले व्यक्ति के साथ कैसा बर्ताव करेंगे तो उन्होंने कहा कि ‘मैं उसे अपने से ऊंचे आसन पर बैठा कर उसके विचार सुनना पसन्द करूंगा।’ जाहिर है यह गांधी का ही देश है क्योंकि कल्याणकारी राज की स्थापना के उनके सिद्धान्त को ही स्वतन्त्र भारत में स्वीकार किया गया और इसे संविधान में भी समाहित किया गया।
इसी कल्याणकारी राज की सफलता की गारंटी संसदीय प्रजातन्त्र में सत्ता एवं विपक्ष दोनों संवैधानिक रूप से इस प्रकार करते हैं कि विकास में देश के गरीब तबके की हिस्सेदारी ईमानदारी के साथ सुनिश्चित हो सके। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि हुकूमत की बागडोर किस पार्टी के हाथ में रहती है बल्कि इस बात से फर्क पड़ता है कि हुकूमत गरीबों की है या संभ्रान्त कहे जाने वाले धनाढय वर्ग की। स्वतन्त्र भारत में समाजवादी नेता डा. राम मनोहर लोहिया अक्सर प. नेहरू जैसे दूरदृष्टा कांग्रेसी प्रधानमन्त्री पर आरोप लगाया करते थे कि उनकी सरकार की नीतियां देश के बड़े उद्योगपतियों, टाटा, बिड़ला व डालमिया की मदद करने वाली होती हैं। प. नेहरू उनकी आलोचना को यथार्थ की जमीन पर परख कर उनका जवाब दिया करते थे और सिद्ध किया करते थे कि उनकी नीतियों से अन्ततः लाभ देश की 80 प्रतिशत गरीब व निम्न मध्यम वर्ग की जनता का ही होगा।
 डा. लोहिया की मृत्यु के बाद भारत के लोकतन्त्र में यह कार्य जार्ज फर्नांडीज, अटल बिहारी वाजपेयी, पीलू मोदी, भूपेश गुप्त व हीरेन मुखर्जी जैसे नेता करते रहे। कहने का मतलब सिर्फ इतना सा है कि वाचाल विपक्ष के साये में ही भारत ने विकास की सीढि़यां चढ़ी हैं और हर आलोचना को खुले दिल से स्वीकार किया है। आज देश के 22 विपक्षी राजनैतिक दलों ने संयुक्त बैठक करके सरकार से अपील की है कि वह कोरोना वायरस के प्रकोप से लाॅकडाउन में जकड़े भारत के लोगों की आर्थिक मदद की तजवीज इस तरह पेश करें कि इससे ढहती हुई अर्थव्यवस्था भी सुधरे और गरीब आदमी खास कर प्रवासी मजदूरों को पक्की राहत मिले।
विपक्षी नेताओं ने सरकार द्वारा 20 लाख करोड़ रु. के वित्तीय मदद के पैकेज को क्रूर मजाक बताते हुए साफ किया कि इसमें उन लोगों के लिए नाममात्र का ही प्रावधान है जिन्हें लाॅकडाउन ने आर्थिक रूप से तोड़ कर रख दिया है। लाॅकडाउन से वेतनभोगी छोटे उद्योगों में लगे हुए कर्मचारी बेकार हो चुके हैं और शहरों व औद्योगिक केन्द्रों में कार्यरत मजदूर अपने गांवों की ओर लौटने को मजबूर हो रहे हैं जबकि छोटे दुकानदार अपनी लागत-पूंजी लाॅकडाउन में घर में बैठ कर निपटा चुके हैं। विपक्षी दलों का मन्तव्य यही लगता है कि सरकार जल्दी ही ऐसा दूसरा वित्तीय पैकेज घोषित करे जो पूर्व वित्त मंत्री श्री पी. चिदम्बरम द्वारा दिये गये सुझावों के निकट हो।
चिदम्बरम ने सुझाव दिया था कि देश के 13 करोड़ गरीब परिवारों के जन-धन खातों में सरकार सीधे धन भेज कर उन्हें संकट से उभारे क्योंकि 13 करोड़ गरीब परिवारों में सभी पेशों में लगे लोग स्वतः आ जाएंगे मगर दूसरी तरफ हमें यह भी ध्यान रखना होगा कि वित्त मंत्री निर्मला सीतारमन कह चुकी हैं कि वह अर्थव्यवस्था में गति लाने के लिए सभी प्रकार के उपायों पर विचार कर सकती हैं। विपक्ष की इस मांग की तरफ भी ध्यान देने की जरूरत है कि लाॅकडाउन में वे आर्थिक सुधार नहीं करने चाहिए जो संस्थागत हैं जैसे सार्वजनिक उपक्रमों की बिक्री क्योंकि ये संस्थान संसद से मंजूरी लेकर ही देश में स्थापित किये गये थे। अतः इनके ढांचे को बदलने के लिए संसद की मंजूरी ली जानी चाहिए। कोरोना संकट से उभरने के लिए विपक्ष व सत्ता पक्ष दोनों को ही धैर्य के साथ आपसी सांमजस्य स्थापित करके एकजुटता दिखाने की जरूरत है।

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