कोरोना काल में जब सब कुछ ठप्प हो गया था तो केवल दिन-रात प्रिंट और इलैक्ट्रोनिक्स मीडिया काम करता रहा। कोरोना काल में मीडिया की जिम्मेदारी काफी बढ़ गई। पत्रकारों, प्रेस फोटोग्राफरों और टीवी चैनलों के कैमरामैनों समेत पहली चुनौती कोरोना वायरस के फैलते संक्रमण से खुद को बचाना और दूसरी चुनौती लोगों तक निष्पक्ष ढंग से सच्ची खबरें पहुंचाना है। एक पत्रकार के जीवन में कभी शांतिकाल होता ही नहीं। कभी उसे युद्धग्रस्त देशों में जाकर रिपोटिंग करनी पड़ती है तो कभी प्राकृतिक आपदा के बाद पहाड़ी राज्यों के दुर्गम स्थलों पर जाना पड़ता है। कभी उसे हिंसा तो कभी साम्प्रदायिक दंगों के दौरान रिपोर्टिंग करनी पड़ती है। कोरोना के दौर में भी पत्रकारों ने ग्राउंड जीरो से लगातार रिपोर्टिंग की है। इस दौरान हमने अपने कई साथियों को खोया है। लोकप्रिय टीवी एंकर रोहित सरदाना को क्रूर कोरोना ने लील लिया तो गीतकार और कवि कुंअर बैचेन ने भी कोरोना के चलते दम तोड़ दिया। दूरदर्शन की जानी-मानी एंकर अनुप्रिया ने आक्सीजन लेवल कम होने से दम तोड़ दिया। कोरोना वायरस ने हमसे ना जाने कितनी हस्तियों को छीन लिया। दुनिया भर में कोरोना वायरस से मरने वाले पत्रकारों और उनके सहयोगियों की संख्या लगभग डेढ़ सौ तक पहुंच चुकी है। यह मांग बार-बार उठी कि पत्रकारों को फ्रंटलाइन वर्कर घोषित किया जाए क्योंकि वे भी अपनी जान जोखिम में डालकर रिपोर्टिंग कर रहे हैं। पत्रकारों ने जिस ढंग से पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों में पल-पल की खबर लोगों तक पहुंचाई, वह भी बहुत जोखिम भरा काम था। आम जनता के साथ-साथ आए दिन न जाने कितने पत्रकार कोरोना की चपेट में आ रहे हैं, इसके बावजूद वह हर मोर्चे पर डटे हुए हैं। मध्य प्रदेश, बिहार, ओडिशा और उत्तराखंड के सभी मान्यता प्राप्त पत्रकारों को फ्रंटलाइन वर्कर घोषित कर दिया है। राज्य सरकारों ने पत्रकारों का टीकाकरण करने के साथ स्वास्थ्य बीमा और किसी भी पत्रकार की मृत्यु होने पर मुआवजा राशि देने का ऐलान भी किया है। महामारी के बारे में रिपोर्ट करने के संबंध में केन्द्र सरकार ने इस बात का पुरजोर प्रयास किया कि समाचार संस्थाएं सरकारी आंकड़ों को ही प्रकाशित करें। क्योंकि कसी भी तरह के आंकड़े भ्रम फैला सकते हैं। हिमाचल में तो पत्रकारों के खिलाफ केस भी दर्ज किए गए। जब स्थानीय नेताओं और पत्रकारों के बीच रिपोर्टिंग को लेकर विवाद हो गया। एडीटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया के अनुसार जनवरी 2021 में पत्रकारों पर 15 से अधिक हमले हुए और यह सभी हमले तब हुए जब पत्रकार कोरोना संक्रमण के दौर में ही चल रहे किसान आंदोलन को कवर करने गए थे। ऐसे हमले प्रैस की स्वतंत्रता को न केवल कमजोर करते हैं बल्कि अन्य कई तरह के दबाव भी डालते हैं। इसमें कोई संदेह नहीं कि पत्रकारों ने ईमानदारी और निष्पक्ष पत्रकारिता की ही मिसाल दी है। प्रवासी मजदूरों की विवशता, फैल रही भुखमरी, बढ़ती बेरोजगारी, स्थानीय प्रशासन और अस्पतालों की खामियों के बारे में समाचार प्रकाशित भी पत्रकारिता है। अगर जमीनी सच्चाइयों, आक्सीजन की कमी और जीवन रक्षक दवाइयों की ब्लैक मार्केटिंग की खबरें पत्रकार उजागर नहीं करेंगे तो फिर प्रशासन कैसे जागेगा।
कोरोना वायरस हम पत्रकारों के जीवन की सबसे बड़ी कहानी है और सवा अरब से ज्यादा लोग हमसे उम्मीद कर रहे हैं कि हम इस दौर में उनके लिए हालात पर नजर रखें, खबरें देते रहें, सम्पादन का दायित्व निभाते रहें तथा नाइंसाफियों तथा व्यवस्था की खामियों को उजागर करते रहें। दंगों, चुनावों और आपदाओं में हम पत्रकारों ने पाया कि लोग हमारे साथ आमतौर पर अच्छा और सम्मानजनक व्यवहार तो करते हैं लेकिन कुछ लोग अपवाद स्वरूप हमसे बुरा व्यवहार भी करते हैं। ऐसी घटनाएं अपवाद स्वरूप होती हैं। इस विशाल और विविधता से भरे देश के एक अरब से ज्यादा लोगों को पता है कि पत्रकार उनके लिए काफी महत्वपूर्ण हैं या वे राजनीतिक विचार रखते हैं उन पर भरोसा किया जा सकता है। जो लोग जिनका पहले कभी पत्रकारों से कोई परिचय ही नहीं होता, वे भी पहली बार पत्रकारों से मिलते ही उनका स्वागत करते हैं और उदारता का भाव रखते हैं।
अब हम देख रहे हैं कि गरीब से गरीब गांवों की महिलाएं भी पत्रकारों से खुलकर बात करने लगी हैं। भारत के लोगों और उनके पत्रकारों के बीच यह सामाजिक संबंध बड़ा ही अनूठा है। इसके पीछे है लोगों का विश्वास कि पत्रकार बहुत कर्मठता और साहस से काम करते हैं। यह लोगों का विश्वास ही है कि पीड़ित पुलिस के पास जाने से पहले मीडिया से सम्पर्क करते हैं। कोरोना काल में भारतीय पत्रकारिता को आने वाली पीढ़ियां हर कसौटी पर परखेंगी। देशभर में पत्रकारों को फ्रंट लाइन वर्कर माना जाना चाहिए और उनका टीकाकरण किया जाना चाहिए तथा उनका स्वास्थ्य बीमा किया जाना चाहिए।
आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com