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जजों की नियुक्तियां समय की जरूरत

देशभर में लम्बित मुकदमों की संख्या करीब साढ़े चार करोड़ तक पहुंची हुई है और उच्चतम न्यायालय में भी लगभग 70 हजार मामले लम्बित पड़े हुए हैं।

देशभर में लम्बित मुकदमों की संख्या करीब साढ़े चार करोड़ तक पहुंची हुई है और उच्चतम न्यायालय में भी लगभग 70 हजार मामले लम्बित पड़े हुए हैं। लोगों को त्वरित न्याय दिलाने के लिए जरूरी था कि सुप्रीम कोर्ट से लेकर निचली अदालतों में जजों के खाली पद जल्द से जल्द भरे जाएं। आम आदमी की सबसे बड़ी परेशानी यही है कि इंसाफ हासिल करने के लिए उन्हें अदालतों के चक्कर काटने पड़ते हैं और वह फिल्मी संवाद दोहराता है-जज साहब अदालत में मिलती है तारीख पे तारीख लेकिन इंसाफ नहीं मिलता। भारत के चीफ जस्टिस एन.वी. रमन ने ​पिछले  मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट की तीन महिला न्यायाधीशों सहित 9 नए न्यायाधीशों को पद की शपथ दिलाई थी, जिसके साथ ही सर्वोच्च न्यायालय में न्यायाधीशों की संख्या 33 हो गई है। सुप्रीम कोर्ट के इतिहास में पहली बार एक साथ 9 न्यायाधीशों को शपथ दिलाई गई। अब केवल एक पद रिक्त है।
26 जनवरी, 1950 को स्थापना के बाद सुप्रीम कोर्ट में बहुत कम महिला न्यायाधीशों की नियुक्ति हुई और पिछले 71 वर्षों में केवल 8 महिला न्यायाधीशों की नियुक्ति हुई। एम. फातिमा बीबी उच्चतम न्यायालय की पहली महिला न्यायाधीश थीं। उन्हें 1989 में नियुक्त किया गया था। जस्टिस इंदिरा बनर्जी शीर्ष अदालत में एक मात्र सेवारत महिला न्यायाधीश हैं। अब न्यायमर्ति हिमा कोहली, न्यायमूर्ति बी.वी. नागरत्ना और न्यायमूर्ति बेला एम. त्रिवेदी की ​नियुक्ति लैंगिक समानता की दृष्टि से भी काफी महत्वपूर्ण और ऐतिहासिक है। न्यायपालिका में लैंगिक समानता की दिशा में संतुलित करने की जरूरत को लेकर कई बार चर्चा होती रही है। न्यायमूर्ति बी.वी. नागरत्ना वरिष्ठता के हिसाब से वर्ष 2027 में भारत की पहली चीफ ​जस्टिस बन सकती हैं। बीबी नागरत्ना के पिता जस्टिस ई.एस. वेंकटरमैया भी 1989 में चीफ जस्टिस बने थे। यह भी अपने आप में ऐतिहासिक होगा क्योंकि भारतीय न्यायपालिका में यह पहली बार होगा जब पिता के बाद दूसरी पीढ़ी में कोई बेटी चीफ जस्टिस बनेगी। निश्चित तौर पर यह अपने आप में बड़े गर्व की बात है।
अब जस्टिस एन.वी. रमन के नेतृत्व वाली सुप्रीम कोर्ट के कालेजियम ने एक अप्रत्याशित फैसले के तहत इलाहाबाद, राजस्थान और कोलकाता समेत 12 हाईकोर्टों में न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए 68 नामों की सिफारिश की है। कालेजियम ने एक बार फिर इतिहास रचा है, क्योंकि मारली वाकुंग मिजोरम से पहली ऐसी न्यायिक अधिकारी बनाई गई हैं, जिनका नाम गुुवाहाटी हाईकोर्ट में न्यायाधीश पद के लिए भेजा गया है। इसके अलावा 9 अन्य महिला उम्मीदवारों की सिफारिश की गई है। कालेजियम द्वारा भेजे गए 68 नामों को सिफारिश केन्द्र सरकार द्वारा स्वीकार किए जाने के बाद इनमें 12 हाईकोर्टों में इनकी नियुक्तियां की जाएंगी। इनमें से 16 न्यायाधीश इलाहाबाद हाईकोर्ट में नियुक्त किए जाएंगे, जहां कुल 160 न्यायाधीश होने चाहिए, वहां केवल 93 न्यायाधीश हैं। महिलाओं को वकालत करने का अधिकार 1921 में मिला था और कीर्नेलिया सोराबजी भारत की पहली महिला वकील बनी थीं। 
अब जमाना काफी बदल गया है और महिलाएं अच्छे फैसलों के साथ आगे बढ़ रही हैं। न्यायपालिका में महिलाओं की तस्वीर बदलते हम सब देखेंगे। कोरोना काल में अदालतों पर मुकदमों का बोझ काफी बढ़ गया। एक अनुमान के अनुसार अगर इसी रफ्तार से मुकदमों को निपटारा जारी रहा तो 324 साल लग जाएंगे। कोरोना काल के दौरान देश की अदालतों में सुनवाई भी फिजीकल से वर्चुअल होने लगी। यह सही है कि सुनवाई भी हुई और न्याय भी मिला लेकिन यह भी उतना ही सच है कि मुकदमों की संख्या दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। हाईकोर्टों में 400 जजों की कमी है। निचली अदालतों में मुकदमों के बोझ के अनुपात में ही जजों की कमी का आंकड़ा भी कदमताल कर रहा है। मुकदमों के बढ़ते बोझ के पीछे मौजूदा कारणों में सबसे बड़ा तो यह है कि अदालतों का पूरी तरह से आधुनिकीकरण नहीं हो पा रहा है। इसके अलावा वकील भी मुकदमा टलवाने के लिए प्रक्रिया की खामियों को औजार के रूप में इस्तेमाल करते हैं।
भारत के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस रमन ने जब पदभार सम्भाला था उस समय उनकी सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के रिक्त पदों को भरना था। दरअसल लगभग 21 महीने से चले आ रहे गतिरोध के कारण नए जजों की ​नियुक्ति नहीं हो पा रही थी। पूर्व जस्टिस एस.ए. बोबड़े के कार्यकाल के दौरान सुप्रीम कोर्ट के एक भी न्यायाधीश की नियुक्ति नहीं हुई थी। कालेजियम के गतिरोध को लेकर मीडिया लगातार रिपोर्टिंग कर रहा था। चीफ जस्टिस एन.वी. रमन ने मीडिया की कुछ अटकलों और खबरों को दुर्भाग्यपूर्ण करार ​दिया था। उन्होंने कहा था कि न्यायाधीशों की नियुक्तियों की प्रक्रिया पवित्र है और इसके साथ गरिमा जुड़ी हुई है। अब जबकि कालेजियम लगातार रिक्त पद भरने के लिए जजों के नामों की ​सिफारिश कर रहा है तो यह प्रक्रिया आगे भी जारी रहने की उम्मीद है। जजों की नियुक्तियों से ​मुकदमों का बोझ घटाने में मदद मिलेगी और लोगों को न्याय भी जल्द मिलेगा। न्यायपालिका की व्यवस्था में सुधार सतत् चलने वाली प्रक्रिया है, इसमें कोई बाधा नहीं आनी चाहिए।
आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com

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