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कन्हैया, मेवानी और सिद्धू

निश्चित रूप से यह खबर छोटी नहीं है कि केवल 70 दिनों बाद ही पंजाब कांग्रेस के अध्यक्ष बने नवजोत सिंह सिद्धू ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया है

निश्चित रूप से यह खबर छोटी नहीं है कि केवल 70 दिनों बाद ही पंजाब कांग्रेस के अध्यक्ष बने नवजोत सिंह सिद्धू ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया है मगर खबर छोटी यह भी नहीं है कि कल तक भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी में रहे जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय  छात्र संघ के पूर्व अध्यक्ष श्री कन्हैया कुमार और गुजरात के बड़गांव से निर्दलीय विधायक जिग्नेश मेवानी ने कांग्रेस पार्टी की सदस्यता ग्रहण कर ली है। कन्हैया वर्तमान दौर का वह नाम है जो युवा पीढ़ी में राजनीतिक वैचारिकता को जीवन्त बनाये रखने के लिए प्रारम्भ से ही उत्प्रेरक की भूमिका निभाता रहा है। युवा पीढ़ी में राजनीतिक उदासीनता को तोड़ने के लिए जिस प्रकार कन्हैया कुमार ने भारत और भारतीयता के मूल्यों काे व्याख्यायित किया उनके प्रति देश के बहुंख्य लोगों का ध्यान जाना स्वाभाविक था क्योंकि वह भारत के लोकतन्त्र की जमीनी ताकत का वह स्वरूप था जिसमें मिट्टी बोलती हुई दिखाई पड़ती है। कम्युनिस्ट पार्टी छोड़ कर कांग्रेस में आने का कारण कन्हैया कुमार ने जो बताया वह इस मायने में वैज्ञानिकता लिये हुए है कि लोकतन्त्र में विचारों की लड़ाई से ही परिवर्तन की संभावनाएं बनती हैं।
 कांग्रेस के लिए भी यह प्रसन्नता की बात है कि देश में राजनीतिक आधार पर गोलबन्दी तेज हो रही है क्योंकि कांग्रेस आज भी देश की सबसे प्रमुख विपक्षी पार्टी है। जहां तक राष्ट्रीय स्तर पर राजनीति में पीढ़ीगत परिवर्तन का सवाल है तो कांग्रेस में कन्हैया कुमार व मेवानी का प्रवेश इसमें धरातल के स्तर पर शुरूआत करेगा लेकिन दूसरी तरफ कांग्रेस से पुराने नेताओं का जाना यह बता रहा है कि पार्टी के भीतर बहुत कुछ एेसा घट रहा है जिससे पुराने वफादार सिपाही परेशान हो रहे हैं। गोवा के पूर्व मुख्यमन्त्री व प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष श्री फ्लेरो ने कल ही कांग्रेस से इस्तीफा दिया और वह आज कोलकाता ममता दी से मिलने चले गये। उन्होंने अपने इस्तीफे में कांग्रेस नेतृत्व पर अकर्मण्यता का आरोप भी लगाया मगर इससे यह सिद्ध नहीं होता कि वास्तव में कांग्रेस का नेतृत्व कि कर्त्तव्य विमूर्ढ़ता की स्थिति में है। यदि एेसा होता तो कुछ दिनों पहले ही पार्टी में पंजाब में पहला दलित मुख्यमन्त्री श्री चरणजीत सिंह चन्नी को न बनाया होता। श्री चन्नी ने आज ही अपनी प्रेस कांफ्रैंस में जब यह कहा कि उन्हें सिद्धू के इस्तीफे की जानकारी नहीं है और  वह उन्हें फोन करने की जहमत भी नहीं उठायेंगे तो साफ हो गया था कि मुख्यमन्त्री राजनीति के कुशल खिड़की हैं और जानते हैं कि उन्हें पंजाब प्रदेश में अपनी पार्टी को अब किस राह पर डालना है।
हकीकत यह है कि सिद्धू अंततः राजनीति में एक ‘जोकर’ ही साबित हुए हैं और अपनी हास्य भूमिका का विस्तार सत्ता के खेल तक में करने में कामयाब रहे हैं लेकिन दूसरी तरफ कांग्रेस पार्टी के भीतर कन्हैया कुमार व जिग्नेश मेवानी जैसे गम्भीर खिलाड़ियो का आना बताता है कि पार्टी ने जो दिशा श्री राहुल गांधी के नेतृत्व में पकड़ रखी है वह सही दिशा में जा रही है क्योंकि कन्हैया कुमार में स्वयं में वह क्षमता है कि वह देश की 35 वर्ष तक की 65 प्रतिशत युवा पीढ़ी की वैचारिक सोच को प्रभावित कर सकते हैं। वह राहुल गांधी के एक कर्मठ सहयोगी की तरह कांग्रेस की मूल विचारधारा को जीवित करते हुए इसमे नई ऊर्जा भर सकते हैं और पूरे भारत में एक गरीब आदमी की राजनीति में स्थिति को जता सकते हैं क्योंकि कन्हैया कुमार बिहार के एक गांव में पांच हजार रुपए मासिक आमदनी वाले परिवार में जन्मे हैं और उन्होंने अपनी मेधा व प्रतिभा के बूते पर जेएनयू जैसे सरकारी विश्वविद्यालय से उच्च शिक्षा प्राप्त की है परन्तु कन्हैया कुमार व मेवानी को अब कांग्रेस जैसी पार्टी के अनुशासन में भी बंधना होगा और इसके नियमों के तहत ही अपनी गतिविधियां जारी रखनी होंगी। मगर इन दोनों युवा नेताओं के लिए कांग्रेस के भीतर भी असीम संभावनाएं छिपी हुई हैं। 
बिहार में कांग्रेस मृत प्रायः है जहां कन्हैया कुमार के लिए बहुत बड़ा स्थान खाली पड़ा हुआ है। उनकी सबसे बड़ी ताकत भाषण कला व तर्कपूर्ण वाक् शक्ति है। इसी के सहारे वह युवा पीढ़ी में लोकप्रिय भी हुए हैं अब इसका इस्तेमाल उन्हें कांग्रेस को मजबूत बनाने के लिए करना होगा। मगर चतुर कन्हैया कुमार ने आज राहुल गांधी को शहीद-ए-आजम भगत सिंह, बाबा साहेब अम्बेडकर व महात्मा गांधी का चित्र भेंट करके साफ कर दिया कि वह कांग्रेस में इन तीनों महान नेताओं की विरासत को जागृत करने के लिए पार्टी की विचारधारा को समयानुरूप समायोजित करेंगे। वहीं मेवानी ने राहुल गांधी को भारतीय संविधान की छवि भेंट की जो इस बात का प्रतीक है कि भारत की व्याख्या संविधान के अनुसार इस प्रकार हो कि जाति, धर्म व सम्प्रदाय की राजनीति को तिलांजिली देकर आम लोगों की राजनीति की जाये किन्तु यह राजनीति का एक पक्ष है। दूसरा पक्ष यह है कि कन्हैया कुमार पर जेएनयू भारत विरोधी प्रदर्शन को लेकर और उसमें उनकी कथित शिरकत को लेकर राष्ट्रविरोधी होने का आरोप लगता रहा है। यह मामला अभी भी न्यायालय में लम्बित है। इससे निपटना भी पूरी कांग्रेस की जिम्मेदारी होगी परन्तु कांग्रेस की यह जिम्मेदारी भी बनती है कि वह अपने पुराने नेताओं को टिकाये रखे तभी तो वह पूर्णता में विपक्षी पार्टी होने की भूमिका निभा सकती है। 

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