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करतारपुर गलियारा : सिखों को बड़ा तोहफा

विभाजन के बाद से ही भारत और पाकिस्तान के बीच संबंध कभी सामान्य नहीं रहे। दोनों देशों के संबंधों की गाड़ी कभी पटरी पर आई ही नहीं।

विभाजन के बाद से ही भारत और पाकिस्तान के बीच संबंध कभी सामान्य नहीं रहे। दोनों देशों के संबंधों की गाड़ी कभी पटरी पर आई ही नहीं। समय-समय पर उस पर बर्फ की परतें जरूर पैबंद होती रहीं। पाकिस्तान ने न कभी अपनी जमीन पर आतंकवाद की खेती बंद की और न ही भारत से संवाद कायम करने के गम्भीर प्रयास किए। भारत सरकार का कहना है कि आतंकवाद और बातचीत साथ-साथ नहीं चल सकते, क्योंकि सीमा पार आतंकवाद से जूझते हुए भारत बहुत नुक्सान झेल चुका है। पाकिस्तान द्वारा छेड़े गए परोक्ष युद्ध के चलते आज भी हमारे जवान शहीद हो रहे हैं। सीमाओं पर फायरिंग आज भी जारी है। उड़ी में आतंकवादी हमले के बाद भारत की बालाकोट स्थित आतंकी शिविर पर एयर स्ट्राइक के बाद तनाव काफी बढ़ चुका है। दोनों देशों के कूटनीतिक संबंध काफी ढीले हो चुके हैं। पाकिस्तान लगातार परमाणु युद्ध की धमकियां दे रहा है। 
इन सारे तल्ख तेवरों के बावजूद करतारपुर साहिब गलियारा चालू कराने के लिए भारत ने कुछ आपत्तियों के बावजूद पाकिस्तान के साथ समझौते पर हस्ताक्षर कर लिए। करतारपुर साहिब गलियारा सिखों के लिए धार्मिक दृष्टि से खास है। करतारपुर साहिब रावी नदी के पार डेरा बाबा नानक से करीब चार किलोमीटर दूर है, जिसे 1522 में बनाया गया था। सिखों के पहले गुरु नानक देवी जी ने अपने अंतिम दिन यहां बिताए थे। विभाजन की रेखाएं खिंचने के बाद यह इलाका पाकिस्तान में चला गया। आपाधापी में तब किसी ने नहीं सोचा कि सिख समुदाय के लिए प​वित्र माने जाने वाले स्थान को पाकिस्तान में न जाने दिया जाए।
पाकिस्तान की कहानियां तो हमने बड़े बुजुर्गों से सुनी हैं। वे अक्सर कहते थे-
-असी ननकाना साहिब जांदे सी
-असी हिंगलाज माता दे दर्शन करन जांदे सी
-असी लाहौर भी खूब वेखया, अते पेशावर वी
-असी कराची वी वेखी ए
पाकिस्तान में अपना सब कुछ छोड़कर आए परिवारों की यादें आज भी जिंदा हैं। 
करतारपुर गलियारे के निर्माण की बात स्वर्गीय प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने लाहौर बस यात्रा के दौरान सबसे पहले  की थी। लाहौर यात्रा के बाद भारत ने आतंकवादी हमले ही नहीं  सैन्य हमले को भी झेला। हमें अपनी ही धरती पर कारगिल युद्ध लड़ना पड़ा।
राजनीतिक संबंधों में मधुरता के लिए राजनीतिक स्थितियों का सामान्य होना अधिक जरूरी है। किसी भी राष्ट्र की आकांक्षा देश की धार्मिक और ​निजी भावनाओं से ऊपर नहीं हो सकती। हम यह कह सकते हैं कि देश-विदेश में रह रहे सिखों और भारतीयों की धार्मिक भावनाओं से जुड़ा करतारपुर गलियारा जो एक बंद दरवाजा था, अब 9 नवम्बर को खुल जाएगा। केन्द्र की मोदी सरकार ने सिखों की धार्मिक भावनाओं का सम्मान करते हुए समझौते पर हस्ताक्षर भी कर दिए। 
यह अलग बात है कि पाकिस्तान इस धार्मिक स्थल के जरिये पैसा कमाना चाहता है, क्योंकि उसकी अर्थव्यवस्था कंगाल हो चुकी है। वह धर्म के नाम पर तिजारत करना चाहता है। करतारपुर गलियारा खुलने से क्या दोनों देशों के संबंधों पर जमी बर्फ पिघलेगी इस बात की कोई सम्भावना नजर नहीं आती। राजनीतिक गलियारे खुलने के लिए राजनीतिक विश्वास कायम होना चाहिए। भारत सरकार को पाकिस्तान की इमरान सरकार पर जरा भी विश्वास नहीं क्योंकि वह तो महज सेना की कठपुतली है। 
दोनों देशों के संबंध कितने ही कड़वे क्यों न हों दोनों देशों की अवाम के साथ अन्याय नहीं होना चाहिए। इसी भावना के चलते भारत सरकार समझौते को तैयार हुई है। अब सिख श्रद्धालु दूरबीन से गुरुद्वारा साहिब के दर्शन नहीं करेंगे बल्कि गुरुद्वारा साहिब की पवित्र धरती पर जाएंगे। यह समझौता श्री गुरु नानक देव जी के पांच सौ पचासवें जन्म दिन के मौके पर सिख समुदाय के लोगों के लिए किसी बड़े तोहफे से कम नहीं है। इस बात का भी ध्यान रखना होगा कि पाकिस्तान इस धार्मिक स्थल का इस्तेमाल अलगाववादी भावनाएं भड़काने के लिए नहीं कर सके। मुसलमान भी गुरु नानक के द्वार पर आते हैं। 
जहां सिखों के लिए गुरु नानक देव उनके गुरु हैं, वहीं मुसलमानों के लिए नानक उनके पीर हैं। जब पूरी दुनिया में मजहब के नाम पर खून-खराबा हो रहा, उसे देखकर यह स्थान बड़ी मिसाल है। आसपास के गांव के मुसलमान गुरुद्वारे में लंगर के वास्ते चंदा देते हैं और लंगर बनाने के ​लिए लकड़ियां पाकिस्तान सेना देती है। काश! पाकिस्तान गुरु नानक देव जी के संदेशों पर चलता तो उसकी यह हालत न होती। काश! करतारपुर के रास्ते दोनों देशों के संबंधों पर जमी बर्फ पिघल जाती।

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