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कश्मीर : मोदी है तो मुमकिन है

कूटनीतिक व अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर भी उनके ये तेवर बताते हैं कि भारत 21वीं सदी में प्रवेश करके किसी की भी आंख में आंख में डालकर बातचीत करने के लिए तैयार है।

प्रधानमन्त्री श्री नरेन्द्र मोदी ने फ्रांस में अमेरिका के राष्ट्रपति श्री डोनाल्ड ट्रम्प के साथ बैठकर यह घोषणा करके पूरी दुनिया के सामने साफ कर दिया है कि जम्मू-कश्मीर भारत और पाकिस्तान के बीच का आपसी मसला है जिसमें किसी तीसरे देश की दखलन्दाजी का प्रश्न ही पैदा नहीं होता। श्री मोदी की इस दो टूक घोषणा के पीछे वह साफगोई छिपी हुई है जो उनकी राजनीति का प्रमुख अंग है। कूटनीतिक व अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर भी उनके ये तेवर बताते हैं कि भारत 21वीं सदी में प्रवेश करके  किसी की भी आंख में आंख में डालकर बातचीत करने के लिए तैयार है। 
इतना ही नहीं श्री मोदी ने दो कदम और आगे बढ़ते हुए पाकिस्तान को चेतावनी दी कि वह भारतीय उपमहाद्वीप की हकीकत को समझे और अपने देश के लोगों के साथ छल करने से बचे। श्री मोदी के यह कहने का यही आशय था कि 1947 तक दोनों देश एक ही थे अतः इनके बीच जो भी समस्याएं हैं उन्हें वे आपस में बैठकर ही हल कर सकते हैं। उनके इस कथन से उनके पास ही बैठे अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रम्प को भी यह आभास हो गया होगा कि दोस्ती का मतलब बराबर के स्तर पर खड़ा होकर विचारों का आदान-प्रदान ही होता है। अतः श्री ट्रम्प पिछले एक महीने में तीन बार जो यह कह चुके थे कि वह कश्मीर मुद्दे पर मध्यस्थता के लिए तैयार हैं, पूरी तरह उनकी अपनी निजी सोच है। 
श्री मोदी के बयान से देश की विपक्षी पार्टियों खासकर कांग्रेस पार्टी को भी स्पष्ट हो जाना चाहिए कि कश्मीर के मामले में वर्तमान भाजपा सरकार किसी प्रकार की भी रियायत किसी भी बड़े-बड़े से और शक्तिशाली देश को देने को तैयार नहीं है और उसने इस राज्य से धारा 370 हटाने का जो फैसला किया है वह पूरी तरह राष्ट्रीय हितों को सर्वोच्च रखने की नीति के तहत है और इसकी वजह से कश्मीर का अंतर्राष्ट्रीयकरण दुनिया की कोई ताकत नहीं कर सकती। अतः कांग्रेसी नेताओं को अपने पुराने ‘असमंजस’ भाव से छुटकारा पाते हुए आगे बढ़ना चाहिए और राष्ट्रीय एकात्मता के इस यज्ञ को सफल बनाने में पार्टी से ऊपर देश को रखना चाहिए। 
श्री मोदी ने फ्रांस में ही संयुक्त राष्ट्रसंघ के महासचिव श्री एंटोनियो गुटारेस से भी कश्मीर मुद्दे पर बातचीत की और साफ कर दिया कि धारा 370 भारतीय संविधान का हिस्सा है जिसे हटाने से स्थिति पर कोई फर्क नहीं पड़ता है क्योंकि यह पूरी तरह भारत का आं​तरिक मामला है। इसके बाद राज्य में हालात सामान्य होने की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं परन्तु सबसे बड़ा सवाल यह था कि पिछले तीस साल से जम्मू-कश्मीर के आम लोग आतंकवाद के शिकार हो रहे थे, जिससे निपटने के लिए कुछ प्रतिबन्ध जारी रह सकते हैं। भारत द्वारा उठाये गये इस कदम से क्षेत्रीय शान्तिपूर्ण माहौल पर किसी प्रकार का कोई असर पड़ने का सवाल ही नहीं पैदा होता क्योंकि अंतर्राष्ट्रीय स्थिति पूर्ववत ही है। 
जाहिर है कि प्रधानमन्त्री ने पाकिस्तान के प्रधानमन्त्री इमरान खान की उस बौखलाहट और झुंझलाहट को व्यर्थ प्रलाप की श्रेणी में ही रखा जो खुद को इस फैसले से प्रभावित होने का शोर मचाये हुए हैं और भारत को परमाणु बम तक की गीदड़ भभकी दे रहे हैं। दरअसल भारत ने बहुत देर से कश्मीर में कारगर कदम उठाया है। यह भी संभव केवल श्री मोदी की दृढ़ राजनैतिक इच्छा शक्ति की वजह से ही हो पाया है जो यही सिद्ध करता है कि ‘मोदी है तो मुमकिन  है’  वरना पिछले सत्तर सालों से देश में जो राजनैतिक माहौल बना हुआ था उसमें धारा 370 को समाप्त करने का ख्याल सपने तक में आना मुमकिन नहीं था परन्तु श्री मोदी और गृहमन्त्री अमित शाह ने इसकी ‘अस्थायी’ हैसियत का जब जायजा लिया तो पाया कि केवल अपनी राजनैतिक तिजारत को मुनाफाखोरी में तब्दील करने के लिए आम कश्मीरियों का शोषण इसी विशेष प्रावधान के मार्फत किया जा रहा है, जबकि किसी भी राज्य को खास रियायतें देने के लिए संविधान में धारा 371 भी मौजूद है जिसके तहत अलगाववाद का पनपना संभव नहीं है। 
यही वजह है कि धारा 370 को पाकिस्तान ने कश्मीर में आतंकवाद फैलाने के लिए उपयोगी पाया जिसका जिक्र संसद में पिछले दिनों समाप्त हुए इसके सत्र में गृहमन्त्री श्री शाह ने किया था और बताया था कि किस तरह जब 1989 से पाक ने भारत के खिलाफ आतंकवाद के जरिये छद्म युद्ध शुरू किया तो जेहादी दहशतगर्दों से साफ किया कि यह काम करने में धारा 370 उनकी मदद करेगी। अतः श्री मोदी का राष्ट्रसंघ महासचिव श्री गुटारेस से यह कहना कि भारत की पहली जिम्मेदारी अपने एक राज्य के लोगों को आतंकवाद से निजात दिलाने की है, भारत के घरेलू मामले में ही आती है और पाकिस्तान के तड़पने की असली वजह भी यही है वरना पाकिस्तान को भारत से बातचीत करने के लिए किसने रोका है, उसे केवल आतंकवाद ही तो समाप्त करना है? मगर पाकिस्तान सोच रहा था कि वह फिर से अमेरिका की गोदी में बैठकर इस समस्या का अंतर्राष्ट्रीयकरण करने में सफल हो जायेगा परन्तु वह भूल गया कि हिन्दोस्तान के लोगों ने 2014 से उस आदमी को अपना वजीरे आजम बना रखा है जिसने बचपन में चाय बेचकर इसकी मिट्टी को अपने माथे पर मला है और सियासत को अपना मकसद नहीं बल्कि मुल्क को अपना मकसद समझा है। 
क्रिकेट के मैदान में धूल से मुरझाने वाले लोग इस मिट्टी में रमने वाले की ‘सीरत’ क्या जानें? सीरत इस मिट्टी से उपजे लाल की है कि वह ट्रम्प के साथ बैठकर ही बेधड़क होकर कह सकता है कि बहुत-बहुत धन्यवाद राष्ट्रपति जी, आपको कष्ट करने की कोई जरूरत नहीं है। पाकिस्तान से कैसे निपटना है और कैसे उससे बातचीत करके रास्ते पर लाना है, मुझे अच्छी तरह मालूम है। दिल में जब जज्बा हो तो पहाड़ भी हिल जाते हैं और जब खुद पर एतबार हो तो दुनिया भी मुट्ठी में आ जाती है। इसीलिए तो आज पूरा भारत एक स्वर से कह रहा है कि मोदी तुम आगे बढ़ो, हम तुम्हारे साथ हैं। खुदा रहम करे कांग्रेसियों पर जो अभी तक 370 पर अटके हुए हैं। 
 नहीं मालूम किस-किस का लहू पानी हुआ होगा
 कयामत है सरिस्का आलूदा होना तेरी मिजंगा का।

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