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कश्मीर और कश्मीरी हमारे हैं!

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भारत की एकता और अखंडता का राज इसके लोगों की ऐसी आपसी समझ, सम्मान व आदर के परस्पर भाव में छिपा हुआ है जिससे सभी लोगों की समग्र पहचान भारतीय के रूप में उभरती है। अतः जब भारत के किसी भी हिस्से में रहने वाले, किसी भी धर्म के मानने वाले, किसी भी नागरिक पर इस देश के किसी भी हिस्से में उसकी क्षेत्रीय पहचान के आधार पर हमला होता है तो वह जाहिर तौर पर हर लिहाज से भारत पर ही हमला होता है और ऐसी हरकत को राष्ट्र विरोधी कार्रवाई में शामिल किये जाने का मजबूत आधार बनता है। अतः सबसे पहले यह समझ लिया जाना चाहिए कि भारत के किसी भी राज्य में यदि किसी कश्मीरी नागरिक को उसकी इस पहचान के आधार पर प्रताड़ित किये जाने की किसी भी व्यक्ति अथवा किसी संस्था के कारकुनों द्वारा कार्रवाई की जाती है तो वह भारत की एकता को तोड़ने की दफाओं के तहत ही आती है।

राष्ट्रवाद का अर्थ केवल नारे लगाना नहीं होता बल्कि इन नारों में छिपी राष्ट्रीय एकता की भावना को जमीन पर उतारना और उसे व्यावहारिक बाना पहनाना भी होता है। जब पूरा जम्मू-कश्मीर भारतीय संघ का अभिन्न और अटूट हिस्सा है तो इसमें रहने वाला हर नागरिक भी इसी भारत का अभिन्न हिस्सा है और भारतीय संविधान के अनुसार उसे वे सभी अधिकार प्राप्त हैं जो उसकी विशिष्टता के अनुरूप उसे दिये गये हैं। यह नियम प्रत्येक अनुसूचित जाति-जनजाति से लेकर भाषाई या धार्मिक अल्पसंख्यक नागरिक पर भी लागू होता है। मगर महाराष्ट्र के यवतमाल समेत कुछ अन्य स्थानों पर जिस तरह कश्मीरी नागरिकों को पुलवामा हत्याकांड के नाम पर अलग-थलग करके मारा-पीटा व सताया जा रहा है वह भी आतंक पैदा करने का ही एक ऐसा स्वरूप है जिसे कुछ लोग सामाजिक वैधता देना चाहते हैं। यह पूरी तरह राष्ट्रविरोधी कार्रवाई है जो पुलवामा में हुई भयानक राष्ट्र विरोधी कार्रवाई के जवाब में की जा रही है।

सर्दियों में अपनी रोजी-रोटी कमाने के लिए जो कश्मीरी नागरिक नीचे मैदानों में भारत के विभिन्न राज्यों में उतर आते हैं और शाल व अन्य मुकामी कश्मीरी सामान बेच कर खुद को भारत की विविधता के आह्लाद में समेट देते हैं उनके साथ ऐसा क्रूर व्यवहार हमें आदमी से अचानक दरिन्दा बना देता है। हम अपनी ही नजरों में इस कदर गिर जाते हैं कि भारत माता भी हमें अपनी सन्तान कहने से परहेज करने लगे। मगर दूसरी तरफ जब हम कश्मीर घाटी की खूबसूरती का नजारा करने वहां जाते हैं तो आम कश्मीरी नागरिक हमें अपनी दयानतदारी और मेहमान नवाजी के एहसान से इस कदर लाद देता है कि हमें अपने भारतीय होने पर गर्व होने लगता है।

घाटी में धार्मिक यात्राओं का सारा इंतजाम कश्मीरी जनता के भरोसे ही होता है और हमारी सहूलियत का सारा ख्याल भी कश्मीर के ही साधारण लोग रखते हैं। मगर जिस तरह पिछले दिनों दिल्ली से हरियाणा की एक रेलगाड़ी में शाल बेचने वाले दो कश्मीरी नागरिकों को कुछ लोगों ने ट्रैन में ही उनके कश्मीरी होने की वजह से मारा-पीटा उससे डर कर वे अपना सारा सामान छोड़कर चलती गाड़ी से ही कूद गये। इसी प्रकार उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर में एक चीनी मिल में काम करने वाले कश्मीरी कर्मचारी डर की वजह से अपने राज्य को पलायन करने को मजबूर हो रहे हैं। ऐसी हरकतों से हम स्वयं कश्मीरियों को ही नहीं बल्कि कश्मीर को भी पराया करने की गुस्ताखी कर रहे हैं।

अतः इस तरह का काम करने वाले लोगों के खिलाफ राष्ट्रविरोधी धाराओं के तहत कार्रवाई किये जाने की सख्त जरूरत है। इन नादान लोगों को न तो कश्मीरियत के बारे में कुछ पता है और न वहां की महान संस्कृति के बारे में। पाकिस्तान जिस तरह से इस राज्य में अपनी दहशतगर्द कार्रवाइयां करके इस राज्य में अलगाववादी ताकतों को हवा दे रहा है, भारत के अन्य राज्यों में कश्मीरियों के खिलाफ दहशत पैदा करके हम परोक्ष रूप से पाकिस्तान की मदद ही कर रहे हैं क्योंकि वह भी तो यही चाहता है कि भारत में कश्मीरियों को अलग-थलग कर दिया जाये।

हम गंभीरता से सोचें कि जिस कश्मीर में मुस्लिम सूफियों को भी ‘ऋषि’ कहा जाता है उसकी महान विरासत और परम्पराएं क्या हैं? कश्मीर समस्या ऐसी नहीं है जो हल हो ही न सके। इसके लिए दृढ़ राजनैतिक इच्छा शक्ति की जरूरत है। इस समस्या को भी स्व. इंदिरा गांधी ने 1971 में बांग्लादेश बनवाते समय लगे हाथ निपटा दिया होता अगर अमेरिका ने पाकिस्तान की पीठ पर हाथ रखकर उस समय परमाणु युद्ध का खतरा न पैदा किया होता। हकीकत यह है कि उस समय चीन भी चुपचाप होकर तमाशा देख रहा था क्योंकि भारत के मित्र देश सोवियत संघ ने साफ कर दिया था कि भारतीय उपमहाद्वीप को जंग का अखाड़ा बनाने की किसी भी अमेरिकी कोशिश को वह कामयाब नहीं होने देगा। मगर जाने कहां चले गये हैं अब ‘पानी’ पर चलने वाले लोग। इसलिए बहुत जरूरी है कि हम ऊंची आवाज में कहें कि कश्मीर हमारा है-कश्मीरी हमारे हैं।

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