लोकसभा चुनाव 2024

पहला चरण - 19 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

102 सीट

दूसरा चरण - 26 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

89 सीट

तीसरा चरण - 7 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

94 सीट

चौथा चरण - 13 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

96 सीट

पांचवां चरण - 20 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

49 सीट

छठा चरण - 25 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

57 सीट

सातवां चरण - 1 जून

Days
Hours
Minutes
Seconds

57 सीट

लोकसभा चुनाव पहला चरण - 19 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

102 सीट

​फिर निशाने पर कश्मीरी पंडित

जम्मू-कश्मीर के अनंतनाग में कश्मीरी पंडित सरपंच अजय पंडिता की गोली मार कर हत्या किए जाने के बाद स्थानीय लोगों में खौफ बढ़ गया है। सरपंचों में भी खौफ है

जम्मू-कश्मीर के अनंतनाग में कश्मीरी पंडित सरपंच अजय पंडिता की गोली मार कर हत्या किए जाने के बाद स्थानीय लोगों में खौफ बढ़ गया है। सरपंचों में भी खौफ है। इसके चलते घाटी से कई कश्मीरी पंडित पंच और  सरपंच अपना घर छोड़ कर जम्मू पलायन कर गए हैं ताकि सुरक्षित रह सकें। हत्या की जिम्मेदारी लश्कर-ए-तैयबा से जुड़े संगठन द रेजिस्टेंस फ्रंट ने ली है। पिछले दिनों आतंकवादियों द्वारा राज्य में कई हमले करने की कोशिश की गई लेकिन हर बार वे असफल हुए। सुरक्षा बल लगातार मुठभेड़ों में टाप कमांडरों समेत आतंकी ढेर कर रहे हैं। अपनी विफलता से परेशान होकर आतंकियों ने सरपंच की कायराना हत्या कर दी। वह कांग्रेस पार्टी के नेता थे। मारे गए सरपंच अजय पंडिता की बेटी शीन पंडिता की ललकार पूरे राष्ट्र ने सुनी। बहादुर बेटी ने कहा है कि उनके पिता ने सिर्फ अपने गांव की सेवा ही नहीं की बल्कि पूरे भारत से प्यार किया है, वे कभी अपने काम से पीछे नहीं हटे। उन्होंने कभी अनुच्छेद 370 हटने का इंतजार नहीं किया  वह निडर होकर घाटी गए और वहां सर्वे किया। उन्होंने सुरक्षा मांगी थी और सुरक्षा देना सरकार का काम है। उसने यह भी कहा कि पिता के लिए मुझे नहीं देश ने बदला लेना है क्योंकि वह देश की सेवा करते हुए तिरंगे में लिपटकर गए हैं। कश्मीर की इस बेटी के साहस को सलाम। राज्य में 2012 में भी ग्राम प्रधानों और सरपंचों की हत्याएं की गई थीं। तब भी सरपंचों की सुरक्षा का सवाल खड़ा हुआ था।  घाटी में पिछले कुछ दिनों में 18 पंचायत सदस्यों की हत्याएं की जा चुकी हैं। राज्य में आतंकवादी समय-समय पर ऐसी हरकतें करते रहते हैं, जिससे यह लगे कि कश्मीर में लड़ाई जारी है मगर सरपंचों की हत्या करने का सीधा मतलब है कि वे भारत की लोकतांत्रिक ताकत को सीधे चुनौती ही नहीं दे रहे बल्कि इस व्यवस्था में विश्वास रखने वाले कश्मीरी लोगों को जबरन इससे अलग होने के लिए धमका रहे हैं। लोकतंत्र को जमीनी स्तर पर मजबूती प्रदान करने का काम ग्राम पंचायतें ही करती हैं। जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनावों में कुछ आतंकवाद प्रभावित जिलों को छोड़ कर कश्मीरी अवाम बढ़-चढ़कर हिस्सा लेता रहा है। कश्मीरी अवाम ने कई बार आतंकी संगठनों के मुंह पर तमाचा मार कर लोकतांत्रिक व्यवस्था में अपना विश्वास जताया है लेकिन पाकिस्तान के इशारे पर काम करने वाले राष्ट्र विरोधी संगठन राष्ट्रवादी शक्तियों के मंसूबों पर पानी फेरना चाहते हैं।
सरपंच अजय पंडिता की हत्या ने कश्मीरी पंडितों की घर वापसी रोकने के लिए आतंकी तंजीमों के षड्यंत्र को पुख्ता कर ​दिया है। दरअसल उत्तरी कश्मीर में सेना की ओर से जमीन खरीदने की पेशकश के बाद आतंकी संगठन बौखला उठे और उन्होंने धमकी भरे पोस्टर चस्पा कर दिए थे कि किसी भी बाहरी व्यक्ति को घाटी में नहीं बसने देने और जमीन न बेचने की चेतावनी दी गई। पोस्टर में यह भी लिखा गया है कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और भाजपा की ओर से डेमोग्राफी (जनसांख्यिकी) में बदलाव की को​शिशें की जा रही हैं। आरएसएस के कट्टर समर्थक आम नागरिकों की आड़ में यहां बसने की कोशिश कर रहे हैं। किसी भी भारतीय को जो कश्मीर में बसने आएगा, उसे आरएसएस का एजैंट समझा जाएगा। वह भयानक अंजाम के लिए खुद ही जिम्मेदार होगा।
आतंकी संगठन 1990 के दशक के षड्यंत्र को दोहराना चाहते हैं जब आतंकियों ने कश्मीरी पंडितों  को निशाना बनाया। उसके बाद पलायन शुरू हुआ और घाटी कश्मीरी पंडितों से खाली हो गई। कश्मीरी पंडित अपने ही देश में शरणार्थी हो गए। उन्हें दर-दर की ठोकरें खानी पड़ीं। कश्मीरी पंडितों को आज भी याद है 19 जनवरी, 1990 का ​दिन  जब जिहादी इस्लामी ताकतों ने कश्मीरी पंडितों पर जुल्म ढाया था। उन्हें सिर्फ तीन विकल्प दिए गए थे, या तो धर्म बदलो, मरो या पलायन करो। मस्जिदों से ऐलान हो रहा था कि काफिरों को मारो, हमें कश्मीर चाहिए कश्मीरी पंडितों के बिना। यहां सिर्फ निजाम-ए-मुस्तफा चलेगा। महिलाओं पर अत्याचार किए गए। ऐसे में कश्मीरी पंडितों ने घाटी से पलायन करने का ही विकल्प चुना। 
आज से करीब दो वर्ष पहले कुछ कश्मीरी पंडितों ने घाटी वापस लौटने का फैसला किया। इनमें से एक अजय पंडिता  भी थे। आतंकवादियों ने एक बार फिर कश्मीरी पंडितों का खून बहाने का दुस्साहस किया है। केन्द्र सरकार और जम्मू-कश्मीर प्रशासन का यह कर्त्तव्य बनता है कि वह पंचों-सरपंचों को प्रभावी सुरक्षा मुहैया कराए और कश्मीरी पंडितों की वापसी के खिलाफ किए जा रहे षड्यंत्र को नाकाम करे। असली लोकतंत्र तो पंचायत स्तर से ही शुरू होता है और एक सरपंच के रूप में अजय पंडिता जमीनी स्तर पर राजनीतिक ढांचे का हिस्सा थे। अगर सरपंचों या अन्य जनप्रतिनिधियों की हत्याएं हो​ती रहीं तो जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनावों का वातावरण तैयार ही नहीं होगा। कश्मीरी अवाम अजय पंडिता की बेटी की आवाज को सुने और स्वयं आतंकियों को मुंह तोड़ जवाब देने के लिए तैयार रहे। कितनी सरकारें बदलीं, कितने मौसम बदल गए। यही नहीं पीढ़ियां भी बदल चुकी हैं लेकिन कश्मीरी पंडितों पर जारी जुल्म की दास्तान अभी कम नहीं हुई। कश्मीरी पंडितो की घर वापसी सुनिश्चित करके ही उनके दर्द को कम किया जा सकता है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

5 − four =

पंजाब केसरी एक हिंदी भाषा का समाचार पत्र है जो भारत में पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश और दिल्ली के कई केंद्रों से प्रकाशित होता है।