खालिस्तान की आवाज अब भारत में नहीं उठती लेकिन कनाडा में खालिस्तान एक मुद्दा बना हुआ है। भारत से 11000 किलोमीटर दूर कनाडा में खालिस्तानी तत्व सक्रिय हैं। कौन नहीं जानता कि जिस खालिस्तान का भारतीय इतिहास खून-खराबे से भरा पड़ा है, जिसमें प्रधानमंत्री से लेकर मुख्यमंत्री तक की हत्याएं हो चुकी हैं। आखिर उसकी जड़ें कनाडा में कैसे फैल गईं। आज पूरी दुनिया में कनाडा ही ऐसा देश बन गया है जिसमें खालिस्तानियों ने अपना अड्डा बना लिया है। कौन नहीं जानता कि जगजीत सिंह चौहान जो पंजाब में अकाली दल की सरकार में डिप्टी स्पीकर और तोड़फोड़ करके बनाई गई लक्ष्मण गिल की सरकार के दौरान पंजाब का वित्त मंत्री रहा था, उसने किस तरह से पाकिस्तान के तानाशाह याहिया खान के हाथों खेलकर ब्रिटेन में रहकर खालिस्तान का आंदोलन चलाया।
भारत के पंजाब में 1973 में अकाली दल ने आनंदपुर साहिब रिजॉल्यूशन पास करवा लिया था, जिसका इंदिरा गांधी ने विरोध कर दिया। इसी दौरान 1974 में भारत ने इंदिरा गांधी के नेतृत्व में पोखरण में परमाणु परीक्षण भी कर लिया। इसकी वजह से कनाडा के तत्कालीन प्रधानमंत्री पियरे ट्रूडो भारत और खासतौर से इंदिरा गांधी से नाराज हो गए। दूसरी तरफ आनंदपुर साहिब रिजॉल्यूशन के खिलाफ इंदिरा गांधी ने सख्ती की तो अकाली दल और उससे जुड़े लोगों ने कनाडा का रुख किया। कनाडा के प्रधानमंत्री पियरे ट्रूडो ने ऐसे लोगों को हाथों-हाथ लिया और उन्हें अपने देश में शरण दे दी।
अब जो खालिस्तानी भारत में अपनी मांगों को मनवाने में नाकाम रहे थे, वो कनाडा पहुंच गए और कनाडा की सरकार ने इंदिरा गांधी से बदला लेने की नीयत से खालिस्तानियों का समर्थन करना शुरू कर दिया। इसी दौरान 19 नवंबर, 1981 को पंजाब के एक खालिस्तानी आतंकी तलविंदर सिंह परमार ने पंजाब पुलिस के दो जवानों की लुधियाना में हत्या कर दी और कनाडा भाग गया। पियरे ट्रूडो ने उसको राजनीतिक शरण भी दे दी। इंदिरा गांधी ने पियरे ट्रूडो से मिलकर इसकी शिकायत भी की। बताया कि खालिस्तान का समर्थन पियरे ट्रूडो को भारी पड़ सकता है। इंदिरा ने पियरे से ये भी कहा कि वो तलविंदर परमार को भारत को सौंप दे लेकिन पियरे नहीं माने और इसकी वजह थी कनाडा में सिख समुदाय की वो बड़ी आबादी जो अब वोटर भी थी और जिसके एक धड़े का झुकाव खालिस्तान समर्थकों की ओर हो गया था। इसी बीच 26 जनवरी 1982 को एक और खालिस्तानी समर्थक सुरजन सिंह गिल ने कनाडा के बैंकूवर में खालिस्तान गवर्नमेंट इन एक्साइल का ऑफिस खोल दिया। उसने खालिस्तानी पासपोर्ट और करेंसी तक जारी कर दी।
पियरे ट्रूडो से लेकर जस्टिन ट्रूडो तक वोट बैंक की राजनीति के चलते भारत में खत्म हो चुके खालिस्तान के मुद्दे को कनाडा में जिंदा रखा गया। जस्टिन ट्रूडो ने वोट बैंक की खातिर ही भारत से रिश्ते खराब कर लिए। अमेरिकियों के बारे में मशहूर है कि वे खुद को दुनिया का सर्वश्रेष्ठ नागरिक मानते हैं और अपने हितों को पूरा करने के लिए दबाव की नीति अपनाते हैं। खालिस्तानी आतंकी गुरपतवंत सिंह पन्नू की हत्या की साजिश मामले में अमेरिकी आरोपों पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने पहली बार बयान दिया है और कहा है कि इस मामले में अमेरिकी यदि कोई सबूत देते हैं तो हम इसे देखेंगे। प्रधानमंत्री ने यह भी कहा कि इस तरह की कुछ घटनाएं भारत और अमेरिका के रिश्तों पर असर नहीं डालेंगी। अमेरिका ने आरोप लगाया है कि पन्नू की हत्या की साजिश में भारत का एक सुरक्षा अधिकारी शामिल है और इस मामले में चैकोस्लोवाकिया में भारतीय व्यापारी निखिल गुप्ता को गिरफ्तार किया गया है। भारत ने इस मामले की जांच के लिए एक समिति गठित की है और सरकार ने कहा है कि अगर समिति की रिपोर्ट में कार्रवाई लायक कुछ मिला तो जरूरी कदम उठाए जाएंगे। अमेरिका और कनाडा भी जानते हैं कि पन्नू भारत विरोधी गतिविधियां करता है और पंजाब में अलगाववाद बढ़ाने और फिर से खालिस्तान आंदोलन को जीवित करने के लिए सोशल मीडिया के जरिये पंजाब के युवाओं को उकसाता है। पन्नू भारत की एकता, अखंडता और संप्रभुता को लगातार चुनौती देता है। अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर खालिस्तानी तत्व विदेश में बैठकर डराने, धमकाने और हिंसा में शामिल है। पन्नू लगातार भारत के विरोध में जहर उगल रहा है। कभी वह कनिष्क विमान की तरह भारतीय विमान को उड़ाने की धमकी देता है और कभी संसद पर हमले की धमकी देता है। कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो अमेरिका की शह पर बेवजह उछल रहे हैं और खालिस्तानी आतंकवादी हरदीप सिंह निज्जर की हत्या के लिए भारत पर आरोप लगा रहे हैं। समझ में नहीं आ रहा कि कनाडा और अमेरिका के लिए खालिस्तानी आतंकवादियों के प्रति प्यार क्यों उमड़ रहा है। कनाडा में केवल दो प्रतिशत सिख हैं। उनमें से भी चंद लोग ही हैं जो खालिस्तान का ढोल पीट रहे हैं। जस्टिन ट्रूडो तो अपना वोट बैंक पक्का करना चाहते हैं लेकिन खालिस्तानी आतंकी के प्रति अमेरिका का प्यार समझ नहीं आ रहा। अमेरिका और पश्चिम के देश भारत से रिश्ते बिगाड़ना भी नहीं चाहते क्योंकि भारत अब अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति की बिसात पर प्रमुख खिलाड़ी है। फिलहाल शह और मात का खेल जारी है।