खालिस्तान यानी खालसाओं का अलग देश। इस आंदोलन के तार वैसे तो आजादी से 18 साल पहले 1929 में हुए लाहौर अधिवेशन से जुड़े थे, जिसमें शिरोमणि अकाली दल ने सिखों के लिए अलग राज्य की मांग की थी। आजादी के बाद भी जब देश का विभाजन हुआ तो इस मांग को हवा मिली। पंजाबी सूबा आंदोलन तो 1947 में ही शुरू हो गया था। 1966 में जब इंदिरा गांधी की सरकार थी, तब पंजाब तीन टुकड़ों में बंटा। सिखों की बहुलता वाला हिस्सा पंजाब, हिन्दी भाषियों की बहुलता वाला हरियाणा और तीसरा चंडीगढ़ बना। 1980 के दशक में खालिस्तान मूवमेंट हिंसक होती गई। बड़ी मुश्किल से पंजाब के आतंकवाद पर काबू पाया गया। लेकिन इस दौरान हमने बहुत कुछ खोया। किसी ने परिवार खोया, किसी का सुहाग उजड़ा तो किसी की गोद सूनी हुई। जघन्यतम नरसंहार हुए जिनमें बसों से निकालकर हिन्दुओं को एक पंक्ति में खड़ा कर उन्हें मौत के घाट उतारा गया। उग्र खालिस्तान आंदोलन के दौरान पहली हत्या मेरे परदादा अमर शहीद लाला जगत नारायण की हुई थी, उसके बाद मेरे दादा रमेश चन्द्र की हत्या हुई।
1984 में तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी की हत्या उन्हीं के सिख अंगरक्षकों ने की, जिसके बाद देशभर में सिख विरोधी दंगे हुए जिसमें हजारों सिख मारे गए। 1995 में तत्कालीन पंजाब के मुख्यमंत्री बेअंत सिंह की हत्या कर दी गई। इसके बाद से पंजाब काफी हद तक शांत रहा लेकिन हाल ही में दुबई से आकर एक संगठन का मुखिया बनकर सिख युवक अमृतपाल सिंह ने खालिस्तान की विचारधारा को फैलाना शुरू कर दिया। चंद महीनों में ही वह सिखों का हीरो कैसे बन गया इसके पीछे भी कई रहस्य हैं, जिसकी परत प्याज के छिलकों की तरह उधड़ रही है।
सवाल यह है कि आतंकवाद को दृढ़ इच्छा शक्ति से खत्म किया जा सकता है, लेकिन विचारधारा को खत्म करना सहज नहीं होता। किसी समुदाय की विचारधारा को खत्म करने के लिए पीढ़ियां बदल जाती हैं। पंजाब ही नहीं देशभर में सिख समुदाय सत्ता से संतुष्ट है और उन्हें नहीं लगता कि उनके साथ तीसरे दर्जे के नागरिक के तौर पर व्यवहार हो रहा है। पंजाब के सिख खालिस्तान की विचारधारा के समर्थक नहीं हैं। सिख समुदाय मेहनत और प्रगति में विश्वास करता है। लेकिन चन्द भ्रमित युवक पाकिस्तान की खुफिया एजैंसी आईएसआई और विदेशों में बैठे खालिस्तानी तत्वों की मदद से पंजाब का माहौल बिगाड़ने में लगे हुए हैं। इस बात की पुष्टि भगौड़े अमृतपाल सिंह के आईएसआई और विदेशों में सक्रिय आतंकी संगठनों के आकाओं से सम्पर्क के सबूत मिलने से हो जाती है। पंजाब में अमृतपाल सिंह और उसके साथियों पर क्रैकडाउन होते ही विदेशों में सक्रिय भारत विरोधी तत्व बौखला गए हैं। लंदन स्थित भारतीय उच्चायोग और उसके बाद अमेरिका में सैनफ्रांसिस्को में भारत के वाणिज्य दूतावास को खालिस्तान समर्थकों ने जिस तरह निशाना बनाया और भारतीय तिरंगे का अपमान किया उसे सहन नहीं किया जा सकता।
कनाडा और आस्ट्रेलिया में भी खालिस्तानी तत्व बेलगाम हैं। कनाडा और आस्ट्रेलिया में एक के बाद एक हिन्दू मंदिरों को निशाना बनाया जा रहा है। यद्यपि भारत सरकार ने समय-समय पर इन देशों से कड़ा प्रोटैस्ट जताया है, लेकिन इन देशों में भारतीय हितों को चोट पहुंचाने वाले खालिस्तानियों के खिलाफ कार्रवाई में ढिलाई बरती जा रही है। कनाडा में लगभग 14 लाख भारतीय हैं जिनमें से अधिकांश सिख हैं। वहां के राजनीतिक दलों को वोट चाहिए, इसलिए अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर खालिस्तानी खुलकर खेल रहे हैं। ब्रिटेन के प्रधानमंत्री ऋषि सुनक भारतीय मूल के हैं। वे भी खालिस्तानी तत्वों के खिलाफ ठोस कार्रवाई करते दिखाई नहीं दे रहे। अमेरिका और आस्ट्रेलिया में भी ढील ही बरती जा रही हैै। विदेशों में पाकिस्तान की आईएसआई खालिस्तानी तत्वों को फंडिंग कर रहे हैं। इस तरह खालिस्तानी दुष्प्रचार का फन फैल रहा है। इस फैलते फन का प्रभाव यह हो रहा है कि जैसे भारत में सिखों के साथ अन्याय हो रहा है, जबकि वास्तव में ऐसा नहीं है। लेकिन इस दुुष्प्रचार का शिकार कट्टरपंथी युवा हो सकते हैं। पाकिस्तान में बैठे खालिस्तानी तत्व जो कंटैंट प्रसारित कर रहे हैं वह काफी विषाक्त है।
भारत सरकार को विदेशों में खालिस्तानी तत्वों पर लगाम कसने के लिए दबाव बनाना होगा। भारत में सिख गुरुओं ने देश की एकता, अखंडता और भारतीय संस्कृति के साथ धर्म की रक्षा की लेकिन कुछ लोग विदेशी ताकतों के बहकावे में आकर गुरुओं के भारत की एकता और अखंडता पर आंच डाल रहे हैं। खालिस्तानी आंदोलन देश विरोधी है। आज तक खालिस्तान की मांग क्यों है, इसका औचित्य भी स्पष्ट नहीं है। हमारी लड़ाई धार्मिक कट्टरता से है, जो भ्रमित युवाओं को बंदूकें उठाने के लिए उकसाती है। भारत के सिख इन साजिशों को समझें और खालिस्तानी तत्वों को अलग-थलग करें, अन्यथा यह फन बहुत जहर फैलाएगा।