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खुर्शीद की खामा-ख्याली

पूर्व केन्द्रीय मन्त्री व कांग्रेस के नेता श्री सलमान खुर्शीद ने अपनी पुस्तक ‘सनराइज ओवर अयोध्या’ में इस्लामी जेहादी संगठनों ‘आई एस व बोको हरम’ की है वह पूर्णतः गैर तार्किक व अनुचित ही नहीं बल्कि अज्ञानता भी है।

पूर्व केन्द्रीय मन्त्री व कांग्रेस के नेता श्री सलमान खुर्शीद ने अपनी पुस्तक ‘सनराइज ओवर अयोध्या’ में इस्लामी जेहादी संगठनों  ‘आई एस व बोको हरम’ की है वह पूर्णतः गैर तार्किक व अनुचित ही नहीं बल्कि अज्ञानता भी है। दरअसल कुछ लोग हिन्दुत्व को किसी विशेष धर्म के चश्मे से देखने का प्रयास करते हैं जो कि इसलिए गलत है क्योंकि हिन्दू कोई धर्म नहीं है बल्कि भारतीय जीवन शैली है जिसमें सहिष्णुता और सहनशीलता एेसे दो आयाम हैं जो सभी धर्मों को सहोदर भाव से अंगीकार करते हुए भारतीय समाज की विविधता को जोड़ते हैं। इसी विविधता को हम एकता के रूप में जानते हैं। यही भारत की पहचान है। मैं इस विवाद में नहीं पड़ना चाहता कि हिन्दू शब्द की उत्पत्ति कब और कैसे तथा कहां से हुई  मगर यह तथ्य रखना चाहता हूं कि विदेशी आक्रान्ताओं ने भारत में रहने वाले सभी धर्मों व मतों व समुदायों के लोगों को हिन्दू कह कर पुकारा। जि​सका प्रमाण यह है कि हिन्दुओं के किसी भी धर्म ग्रन्थ में ‘हिन्दू’ शब्द का उल्लेख नहीं मिलता है। अतः भारतीय संस्कृति के अनुयायी लोगों को हिन्दू कह कर पुकारा गया इसी वजह से हम हिन्दू संस्कृति और भारतीय संस्कृति को एक-दूसरे का पर्याय मानते हैं। परन्तु इसका मतलब यह नहीं है कि हिन्दुओं के एक वर्ग या समुदाय की धार्मिक व सांस्कृतिक मान्यताओं को ही हम हिन्दुत्व का नाम दे डालें।
 हिन्दुओं में सैकड़ों मत हैं और हजारों देवता हैं और उन्हें पूजने व मानने की पद्धतियां भी अलग-अलग हैं यहां तक कि इसी देश में ‘हुसैनी ब्राह्मण’ भी रहते हैं जो मुहर्रम के अवसर पर शिया मुसलमानों की तरह अपने अलग ताजिये भी निकालते हैं। इन्हीं हिन्दुओं में निराकार ब्रह्म की उपासना करने वाले लोग भी हैं जो मूर्ति पूजा में विश्वास नहीं रखते। इन्हीं में आदिवासी समुदाय के लोग भी हैं जो अपने लोक देवताओं की उपासना करते हैं। ये सब भारत के ही लोग हैं और आपस में मिल-जुल कर रहते हैं। इनकी सबसे बड़ी विशेषता यह है कि ये अपनी मान्यताओं को किसी दूसरे वर्ग पर लादने में विश्वास नहीं रखते। हो सकता है कि इन्हीं लोगों में से कुछ लोग अथिवादी दृष्टिकोण अपना कर अपना मत दूसरों पर लादने की प्रक्रिया में हिंसात्मक तरीके भी अपनाने लगे हों मगर उनके एेेसा करने से सकल हिन्दुत्व की भावना को नहीं बदला जा सकता। 
भारत एक संविधान से चलने वाला देश है अतः एेसे लोग अक्सर कानून की गिरफ्त में आते रहते हैं। समूचा हिन्दू समाज भी उन्हें अपनी ठेकेदारी करने की इजाजत नहीं देता है और एेसे लोगों की आलोचना सबसे पहले आगे बढ़ कर इसी समाज के लोग करते हैं। यही सबसे बड़ा प्रमाण है कि हिन्दू को किसी धर्म के दायरे में बांधना बेमानी है। मगर जहां तक इस्लामी जेहादी संगठनों का सवाल है वे अपने धर्म के रंग में शेष लोगों को रंग कर उन पर अपनी रवायतें थोप देना चाहते हैं और एेसा करने के लिए पैशाचिक हिंसक तरीके तक अपनाते हैं। उनका नजरिया बहुत संकीर्ण और उग्र धार्मिक सोच से बन्धा होता है। भारत में इसकी नकल अगर कुछ अतिवादी स्वयं को हिन्दुत्व का रक्षक मानने वाले लोग करते हैं तो वे सर्वप्रथम हिन्दुत्व की भावना का ही निरादर करते हैं क्योंकि सहनशीलता और सहिष्णुता हिन्दुत्व का प्रमुख जन्मजात गुण (डीएनए) हैं। शायद यही वजह है कि दूसरे कद्दावर कांग्रेसी नेता श्री गुलाम नबी आजाद ने सलमान खुर्शीद के विचारों से मतभेद प्रकट करते हुए उनकी तुलना को अतिशयोक्तिपूर्ण कहा। श्री आजाद का यह कहना भी पूरी तरह सही है कि खुर्शीद के विचार तथ्यों से मेल नहीं खाते हैं क्योंकि भारत के पिछले पांच हजार साल के इतिहास में एक भी घटना एेसी नहीं है जिसमें जुल्मो-गारत बरपा करके किसी दूसरे वर्ग के लोगों पर अपना मत थोपा गया हो। 
बेशक इस सन्दर्भ में कुछ लोग छठी सदी तक बौद्धों व हिन्दुओं के बीच चले संघर्ष का हवाला देकर यह कह सकते हैं कि उस दौरान हिन्दुओं पर एक विशेष मत थोपने की कोशिश की गई और उस दौरान कहीं-कहीं अथिवादी कदमों का सहारा भी लिया गया परन्तु वास्तविकता यही रहेगी कि बौद्ध धर्म राज्यश्रय मिलने के बाद वैचारिक प्रचार-प्रसार के आधार पर ही ज्यादा फैला था और उससे पहले भारत में जैन धर्म भी मौजूद था। जैन धर्म ने ही हमें ‘स्यातवाद’ का दर्शन देकर लोकतन्त्र का सबक सिखाया जिसमें सभी के कथन को बराबर का सम्मान देने का विधान निहित है। यदि हम प्रागैतिहासिक काल की रामायण व महाभारत की लड़ाइयों पर भी जायेंगे तो इनमें भी किसी पराजित देश या राजा को अपने मत में रंगने का कहीं कोई उदाहरण नहीं मिलता है। दूसरे हिन्दुत्व को किसी एक रंग में भी बांधना भी उचित नहीं है। मगर श्री खुर्शीद ने अयोध्या आन्दोलन और राम मन्दिर निर्माण की पृष्ठभूमि में लिखी अपनी किताब में जिस भारत का दर्शन कराने का प्रयास किया है वह भारत से कहीं मेल नहीं खाता है। 
लोकतन्त्र में राजनीतिक, सामाजिक, धार्मिक व सांस्कृतिक संस्थाओं के गठन पर प्रतिबन्ध नहीं होता। इन सबके एजेंडे अलग-अलग हो सकते हैं मगर भारत का एजेंडा तो शुरू से ही एक रहा है और वह प्रेम व भाईचारे का है। हिन्दू इसी एजेंडे पर प्रारम्भ से ही चलते रहे हैं जो लोग इससे अलग एजेंडा रखते हैं उन्हें राष्ट्रीय धारा से अलग देखा जाता है। उनकी संस्कृति धर्म की जय बोलती है अधर्म के नाश का आह्वान करती है और सभी प्राणियों में सद्भावना की अपील करती है। उत्तर प्रदेश चुनावों से पहले सलमान खुर्शीद ने एेसी विवादास्पद पुस्तक छाप कर क्या सिद्ध करने की कोशिश की है? इसका राज तो उन्हें ही पता होगा ? 

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