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तालिबान की हिमायत का ‘कुफ्र’

अफगानिस्तान में तालिबान द्वारा तख्ता पलट को लेकर जिस तरह की प्रतिक्रियाएं कुछ विशेष चुने हुए लोग देने की कोशिश कर रहे हैं

अफगानिस्तान में तालिबान द्वारा तख्ता पलट को लेकर जिस तरह की प्रतिक्रियाएं कुछ विशेष चुने हुए लोग देने की कोशिश कर रहे हैं उस सन्दर्भ में सर्वप्रथम यह समझा जाना चाहिए कि यह समस्या अफगानिस्तान की ऐसी अन्दरूनी समस्या है जिसके सम्बन्ध पिछले 40 साल से ज्यादा के इसके राजनीतिक इतिहास से जुड़े हुए हैं। भारत में जो लोग इसे हिन्दू-मुस्लिम के चश्मे से देखने का प्रयास कर रहे हैं वे अपने देश की संवैधानिक राजनीतिक व्यवस्था और सामाजिक ताने-बाने के मजबूत धागे को कमजोर करने की कोशिश कर रहे हैं। तालिबान सबसे पहले एक ऐसा आतंकवादी संगठन है जिसके सिर पर हजारों अफगानियों के कत्ल का इलजाम चढ़ा हुआ है। इन तालिबानियों का भारत की धरती से यदि एक भी व्यक्ति समर्थन करने की जुर्रत करता है तो वह भारत की राष्ट्रीय एकता को तोड़ने का अपराधी हो सकता है। कट्टरवादी इस्लामी जेहादी मानसिकता से भरे हुए लोग कभी भी इंसानियत के पैरोकार नहीं हो सकते क्योंकि वे इंसानों को ही मुस्लिम व गैर मुस्लिम में बांट कर देखते हैं। जबकि इसके विपरीत भारत की समूची व्यवस्था संवैधानिक तरीके से किसी विशेष धर्म की हिमायत नहीं करती और हर नागरिक को अपने-अपने धर्म का पालन करने की स्वतन्त्रता देती है। अतः बुनियादी तौर पर ही तालिबान इंसानियत के दुश्मन हैं और अपनी बहशियत से पूरे अफगानिस्तान को एेसे मुल्क में बदल देना चाहते हैं जिसमें मजहब ही सियासत की सरपरस्ती करे। 
21वीं सदी में दुनिया के किसी भी देश के लिए एेसा संभव नहीं है क्योंकि हम देख रहे हैं कि विश्व के तमाम इस्लामी मुल्कों में उदारता और मानवीय अधिकारों की किस तरह बयार बह रही है। ये तालिबान उस इस्लाम के ही सबसे बड़े दुश्मन हैं जिसमें इंसानियत को सबसे ऊंचे पायदान पर रखा गया है और महिलाओं को बराबर के अधिकार दिये गये हैं। यहां तक कि पैतृक सम्पत्ति में स्त्रियों की हिस्सेदारी सबसे पहले इस्लाम में ही तसलीम की गई और शिक्षा का एक समान अधिकार भी दिया गया। परन्तु चन्द कठमुल्लावादी वाले विचारों की कट्टरता को ये तालिबान इस्लाम की तर्जुमानी मानते हैं और अपने देश को आदिम युग में ले जाना चाहते हैं। परन्तु दुखद यह है कि भारत में कुछ एेसे तत्व हैं जो तालिबानों के शरीया कानून की हिमायत करने के चक्कर में अपनी पहचान को संकुचित करके धार्मिक दायरे में कैद करके दिखाना चाहते हैं। इन्हें मालूम होना चाहिए कि यह भारत ही है कि 1947 में जिसके मुसलमान नागरिकों  ने पाकिस्तान को तामीर करने पर पूरा इत्तेफाक जाहिर नहीं किया था और मौलाना अब्दुल कलाम आजाद और मुहम्मद करीम भाई चागला जैसे मुस्लिम लीडरों ने इसके खिलाफ मुहीम चलाई थी। अतः जिन इक्का-दुक्का लोगों ने भी तालिबान का समर्थन करने की धृष्टता की है वे हिन्दोस्तान के मुस्लिम नागरिकों के सबसे बड़े दुश्मन है और उनकी राष्ट्रभक्ति को संशय के घेरे में लाने का कुत्सित प्रयास कर रहे हैं।
 आजादी के आन्दोलन के समय तो देवबन्द के दारुल उलूम जैसे संस्थान के उलेमाओं ने पाकिस्तान बनने के खिलाफ तहरीक छेड़ी थी और ऐलान किया था भारत उनका मादरे वतन है और इसकी मिट्टी में फना हो जाना ही उनका धर्म है। ऐसे लोग भारत में हिन्दू-मुस्लिम एकता को चोट पहुंचाना चाहते हैं और इसके बहाने अपने सियासी मंसूबे पूरा करना चाहते हैं। अतः भारत के मुसलमानों को सबसे पहले ऐसे ही लोगों का बहिष्कार करना चाहिए। इसके साथ ही उन हिन्दू कट्टरपंथी लोगों से भी सावधान हो जाना चाहिए जो जहरीली जहनियत के कुछ लोगों के कारनामों को आगे लाकर समूचे मुस्लिम समुदाय के प्रति घृणा का वातावरण पैदा करना चाहते हैं। कल ही असम सरकार ने एेसे 15 लोगों को गिरफ्तार किया है जो सोशल मीडिया पर तालिबानों के समर्थन में लिखने की कुचेष्टा कर रहे थे। इन गाफिल भारतीय नागरिकों को कानून के सामने पेश करके सबसे पहले यही समझा जाना चाहिए कि वे दुनिया के एेसे सबसे बड़े लोकतान्त्रिक देश के नागरिक हैं जहां किसी भी मजहब का राजनीति में दखल असंवैधानिक है। हमारी एक देश के रूप में सबसे बड़ी पहचान यह है कि यहां हर प्रकार के अल्पसंख्यकों को बहुसंख्यकों के समान ही बराबर के  अधिकार प्राप्त हैं। इस देश के किसी भी राजनीतिक दल का नेता जब सामाजिक समता और न्याय की बात करता है तो नागरिकों को हिन्दू-मुसलमान में बांटने की वकालत नहीं करता है। यहां की लोकतान्त्रिक सरकार चुनने की जो प्रक्रिया है उसमें हर मतदाता की हिस्सेदारी होती है, चाहे उसने वोट सत्ताधारी दल को दिया हो अथवा विपक्षी दल को। यही वजह रही कि स्वतन्त्र भारत इस देश के मुसलमानों ने कभी किसी मुस्लिम नेता को अपना रहनुमा नहीं समझा और हमेशा हिन्दू नेताओं पर ही यकीन जाहिर किया। ऐसे महान देश के मुस्लिम नागरिकों को कुछ जहरीले लोग अपने निजी स्वार्थों की पूर्ति के लिए सशंकित कर देना चाहते हैं और वह भी तालिबान के बहाने!  इस जहनियत से भरे हुए लोगों को सबसे पहले अफगानी नागरिकों की दुर्दशा की तरफ ही देखना चाहिए और वहां की औरतों से पूछना चाहिए कि तालिबान उन्हें किस तरह ‘अजाब’ बन कर आये हैं और पूरी मानवता को शर्मसार कर रहे हैं। उनकी हिमायत किसी ‘कुफ्र’ से कम नहीं। 

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