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ईद-उल-जुहा पर कुर्बानी

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ईद-उल-जुहा या बकरीद को लेकर जो बयान उत्तर प्रदेश के मुख्यमन्त्री योगी आदित्यनाथ ने दिया है उसे केवल इस रूप में लिया जाना चाहिए कि भारत सभ्य देश है और इसकी सभ्यता किसी एक धर्म या मजहब की उत्पत्ति नहीं है। हजारों साल से विभिन्न मत-मतान्तरों को मानने वाले कई नस्लों के लोग इसमें मिलजुल कर इस प्रकार रहते आए हैं कि यह विभिन्न संस्कृतियों का एक गुलदस्ता बनकर दुनिया में अपनी खुशबू बिखेरता रहा है। भारत की सबसे बड़ी विशेषता यह रही है कि इसमें विभिन्न धर्मों को मानने वाले लोगों ने एक-दूसरे की धार्मिक परंपराओं के प्रति सहनशील रवैया रखकर अपनी सामाजिक संरचना इस प्रकार रची कि सभी मतावलम्बियों की स्वतन्त्रता बरकरार रह सके।

श्री योगी का यह निर्देश देना कि मुस्लिम सम्प्रदाय के लोगों के त्यौहार बकरीद पर केवल उन्हीं पशुओं की कुर्बानी दी जाए जिनकी वैध रूप से अनुमति है और यह कुर्बानी सार्वजनिक स्थलों पर न की जाए व इससे होने वाले तलछट को खुले में न फैंका जाए और खासकर रक्त को नालियों में न बहने दिया जाये, सरकार के मुखिया के तौर पर सामाजिक समरसता बनाये रखने का कमोबेश प्रयास है। बेशक इस निर्देश की कुछ लोग आलोचना कर सकते हैं और कह सकते हैं कि धार्मिक कार्यों में यह अनाधिकार अतिक्रमण है परन्तु वास्तव में एेसा इसलिए नहीं है कि सार्वजनिक स्वच्छता को बनाए रखने की जिम्मेदारी सरकार की ही होती है।

मुस्लिम मान्यताओं के अनुसार बकरे की बलि दिया जाना सबाब कमाना होता है क्योंकि उनका धर्म उन्हें इसकी ताईद करता है, जाहिर है कि हर मुसलमान को अपने धर्म के अनुसार अपना जीवन जीने का पूरा हक है और भारत का संविधान इसकी गारंटी भी करता है परन्तु संविधान में व्यक्तिगत तौर पर धार्मिक स्वतन्त्रता की गारंटी दी गई है। इसके साथ ही संविधान सभी नागरिकों में वैज्ञानिक सोच का विकास करने की नसीहत भी दी गई है। इसका मतलब यही है कि सभी धर्मों को मानने वाले नागरिक वैज्ञानिकता के अनुरूप अपनी जीवनशैली व कार्यशैली को विकसित करके आधुनिकता की ओर बढ़ें।

बकरीद का पर्व मनाने के ​लिए हमें थोथे प्रदर्शन की जरूरत नहीं है बल्कि अल्लाह की बारगाह में खुद को सादिक बनाने के लिए अपनी प्रिय से प्रिय वस्तु की भी कुर्बानी देने की जरूरत है। बकरा उसका मात्र प्रतीक है जिसे बाद में परंपरा बना दिया गया। अतः इस धार्मिक काम को करते समय हमें उन सामाजिक दायित्वों को भी निभाना होगा जो किसी भी नागरिक का पहला कर्तव्य होता है। अर्थात अहिंसा में विश्वास रखने वाले समाज के अन्य लोगों की भावनाओं का आदर करना भी प्रत्येक मुस्लिम नागरिक का कर्तव्य है। इस मामले में दुनिया के सबसे बड़े इस्लामी देश सऊदी अरब का उदाहरण सभी को मानना चाहिए जहां सामुदायिक आधार पर बकरीद के दिन चुने गए वध स्थलों पर ही कुर्बानी दी जाती है और यह कार्य बिना किसी भौंडे प्रदर्शन के होता है।

वहां की भौगोलिक परिस्थितियों के अनुरूप रेतीली धरती होने के कारण तलछट की समस्या भी नहीं आती है और उसका निष्पादन वैज्ञानिक तरीके से होता है जबकि वहां बहुधार्मिक समाज जैसी भी कोई समस्या नहीं है। यह नियम सऊदी अरब ने अपने नागरिकों की बेहतरी के लिए ही बनाया है लेकिन भारत के सन्दर्भ में हमें यह एहतियात बरतने की जरूरत है कि मजहबी रवायत किसी भी तौर पर जुनून की शक्ल न ले जिससे साम्प्रदायिक सौहार्द पर विपरीत असर पड़े किन्तु ठीक यही नियम हिन्दू समुदाय के लोगों पर भी लागू होता है और सरकार का दायित्व है कि वह इस समाज के धर्मान्ध लोगों पर भी वही कायदे लागू करे जो मुस्लिम समाज के लिए वह लागू कर रही है।

कांवड़ यात्रा पूरी तरह धार्मिक यात्रा है, इसका सरकार से कोई लेना-देना नहीं है। यह भी निजी मान्यता का प्रश्न है अतः कांवडि़यों द्वारा कानून-व्यवस्था को अपने हाथ में लेने की हर कवायद पर सख्ती से पेश आया जाना चाहिए। सरकार इन कानून तोड़ने वालों और विभिन्न शहरों की यातायात व्यवस्था को ठप्प करके अफरा-तफरी का माहौल पैदा करने वालों पर किस तरह फूलों की वर्षा कर सकती है ? अतः योगी सरकार के इकबाल की परीक्षा तो इसी हकीकत से की जा सकती है कि वह अपने नागरिकों को एक नजर से देखती है या दोमुंहेपन का प्रदर्शन करती है। मुसलमानों को उनकी मान्यताओं के अनुसार अपने धार्मिक कृत्यों की छूट देना किसी प्रकार की कृपा नहीं है बल्कि यह उनका मूलभूत अधिकार है किन्तु इसके साथ उनका भी यह कर्तव्य है कि उनके एेसे कार्य से किसी दूसरे धर्म के अनुयायी को कष्ट न हो। भारत का इतिहास इस बात का गवाह है कि किसी भी मुगल बादशाह के शासन के दौरान बकरीद पर हिन्दुओं के लिए पवित्र समझी जाने वाली गाय की बलि नहीं दी जाती थी।

मुस्लिम बादशाहों ने हमेशा हिन्दुओं की भवनाओं का आदर किया और फरमान जारी करके गाय की बलि दिये जाने पर सजा भी मुकर्रर की मगर अंग्रेजों ने भारत की हुकूमत अपने हाथ में लेने के बाद बकरीद को हिन्दू-मुसलमानों को आपस में लड़ाने का जरिया बना दिया और मुसलमानों को एेसा करने के लिए उकसाया। हमें इतिहास से कुछ सीखना चाहिए न कि उसके दिये गये नासूरों पर अपनी सियासत चमकानी चाहिए। अतः मुस्लिम नागरिकों को अपने त्यौहार ईद को इस सलीके से मनाना चाहिए कि अल्लाह उनकी कुर्बानी कबूल करके उन्हें सबाब से नवाजे।

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