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मजदूरों की लाईफ लाइन

लोकतंत्र में सरकारें आती-जाती रहती हैं। सत्ता वाले विपक्ष में बैठते हैं और विपक्ष वाले सत्ता में आ जाते हैं,लेकिन सरकारों द्वारा चलाई जा रही योजनाएं जारी रहती हैं।

लोकतंत्र में सरकारें आती-जाती रहती हैं। सत्ता वाले विपक्ष में बैठते हैं और विपक्ष वाले सत्ता में आ जाते हैं,लेकिन सरकारों द्वारा चलाई जा रही योजनाएं जारी रहती हैं। कभी-कभी योजनाओं में कुछ संशोधन भी इसलिए किए जाते हैं ताकि सुधार हो सके, योजनाओं में पारदर्शिता लाई जा सके और सार्वजनिक धन का दुरुपयोग न हो। मोदी सरकार ने मनरेगा योजना को काफी सशक्त बनाया है कि यह श्रमिक वर्ग के लिए काफी कल्याणकारी सिद्ध हुई। अब मजदूरी का पैसा सीधा श्रमिकों के बैंक खातों में जाता है और योजना में पूरी पारदर्शिता बरती जाती है। 
मनरेगा कानून 2005 में संसद में बनाया था। यह योजना अकुशल श्रमिकों को रोजगार के अवसर उपलब्ध कराने के लिए लागू की गई थी, ताकि वह अपना जीवन यापन सहजता से कर सकें। अब हम 2021 में पहुंच गए हैं। बीजद सांसद भातृहरि मेहताब के नेतृत्व वाली श्रम पर स्थाई समिति ने लोकसभा में प्रस्तुत की गई रिपोर्ट में कहा गया है कि अकुशल श्रमिकों के लिए राष्ट्रीय रोजगार गारंटी योजना से सर्वश्रेष्ठ योजना और कोई नहीं है।
कोरोना के कारण मार्च के बाद जब लॉकडाउन लागू हुआ तो लाखों मजदूर बेरोजगार हो गए। सब काम धंधे ठप्प हो गए। रोजाना हजारों मजदूरों का पलायन शुरू हो गया। तब न ट्रेनें चल रही थीं, न ही बस सेवाएं जारी थीं। तब इस देश ने मजदूर परिवारों की व्यथा देखी। मजदूर अपने दुधमुंहे बच्चों को लेकर जो भी साधन मिला उस पर ही अपने पैतृक गांवों को लौटने लगे। मोदी सरकार के सामने सबसे बड़ी चुनौती इन मजदूूरों के खाने-पीने की व्यवस्था करना और गांवों में ही रोजगार उपलब्ध कराना था। कोरोना काल में राज्य सरकारों ने इसके लिए नरेगा को अपनाया। इस योजना के तहत गांवों में कामकाज शुरू किया गया। कहीं तालाब खोदने का काम शुरू किया गया, कहीं तालाबों को गहरा करने का काम चला। खेतों को नई फसल की बुवाई के लिए तैयार करने का काम शुरू हुआ और सड़कों के निर्माण कार्य युद्ध स्तर पर शुरू किए गए। जिन गांवों में मुश्किल से वर्ष में 200ँ-250 लोग काम करने आते थे, वहीं नए जॉब कार्ड के लिए 600-600 आवेदन आने शुरू हो गए। जैसे-जैसे लॉकडाउन के दिन बढ़ते गए, मजदूूरों की संख्या भी बढ़ती गई। मजदूरों को तुरन्त भुगतान भी किया गया।
नरेगा योजना हताश हो चुके श्रमिकों के लिए लाइफ लाइन साबित हुई। जो आंकड़ा पूरे देश से प्राप्त हुआ उसके आधार पर कहा जा सकता है कि यह योजना कितनी सार्थक सा​बित हुई है। आंकड़ों से पता चलता है कि 2019-20 के वित्तीय वर्ष में कुल कार्य के दिन 311 करोड़ थे, जो 2018-19 के वित्तीय वर्ष के मुकाबले 46 करोड़ ज्यादा हैं। इस दौरान काम करने वालों की संख्या तेजी से बढ़ी। इस योजना के तहत साल में कम से कम सौ दिन के काम की गारंटी है और एक दिन की मजदूरी फिलहाल 220 रुपए दी जाती है। यह योजना यूपीए शासन की भी महत्वाकांक्षी योजना बनी थी। यूपीए सरकार ने 2008 में पूरे देश में लागू किया था। 2009 में इस योजना का नाम बदलकर महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना कर दिया गया था।
योजना की सफलता को देखते हुए 2019-20 के बजट में आवंटन बढ़ा कर 71001.81 करोड़ कर दिया गया। चालू वित्त वर्ष में भी इसे 61500 करोड़ रुपए से बढ़ाकर 1,11,500 करोड़ रुपए किया गया। सरकार का कहना है कि अगर भविष्य में जरूरत पड़ती है तो गरीबों और समाज के कमजोर तबकों के हित में खर्च बढ़ाने में हिचकिचाएगी नहीं। अब लगभग हर राज्य इस योजना को लागू कर अकुशल मजदूरों को रोजगार उपलब्ध करा रहा है।
मोदी सरकार ने इस योजना को बहुआयामी बनाया है। जब यह योजना शुरू की गई थी तो कहा गया कि यह केवल गड्ढा खोदने की योजना है। मोदी सरकार ने इस योजना को केवल ग्रामीण इलाकों में लोगों को रोजगार देने वाली योजना ही नहीं बल्कि इसके तहत बुनियादी संरचनाओं का निर्माण हो रहा है। उत्तर प्रदेश सरकार ने तो मजदूरों के लिए बड़ा फैसला लिया है। योगी सरकार ने 15 योजनाओं का लाभ मनरेगा मजदूरों को देने का फैसला किया है। यह लाभ उन मजदूरों को दिया जाएगा जिन्होंने एक वर्ष में कम से कम 90 दिन मनरेगा के तहत काम किया है। इन मजदूरों को पेंशन सहित रहने के लिए घर, शौचालय, मेडिकल सर्विस जैसी सुविधाएं मिलेंगी। मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखंड और राजस्थान इत्यादि राज्यों में यह योजना मजदूरों के लिए संजीवनी साबित हुई। कोरोना काल में राजस्थान में तो इस योजना के तहत जॉब कार्डधारी ग्रामीण परिवारों को रोजगार देने में 11 वर्ष का पुराना रिकार्ड टूट गया। अब जबकि कोरोना वायरस खत्म होने की ओर अग्रसर है।
अब बाजार, मॉल, सिनेमा हाल और स्कूल भी खुल गए हैं। औद्योगिक गतिविधियों में तेजी आने लगी है। निर्माण कार्य भी शुुरू हो गए हैं। अपने गांवों को लौटे मजदूर पंजाब, हरियाणा, महाराष्ट्र और अहमदाबाद लौट चुके हैं। उम्मीद है कि अब इस योजना पर खर्च कम आएगा, लेकिन इतना साबित हो चुका है कि यह योजना मजदूरों के लिए कल्याणकारी बनी है।

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