बर्फीला रेगिस्तान कहलाने वाला लद्दाख जम्मू-कश्मीर राज्य का सबसे ऊंचा पठार है, जो समुद्र तल से करीब 9800 फुट की ऊंचाई पर स्थित है। यहां जनसंख्या का घनत्व बहुत कम है और यह अत्यन्त भौगोलिक परिस्थितियों वाला क्षेत्र है। साल में 6 माह तक सर्दियों में शेष दुनिया से कटा रहने वाला लद्दाख विकास की दृष्टि से देश के पिछड़े इलाकों में से एक है। लद्दाख के स्थानीय लोगों को अक्सर अपने मुद्दों और प्रशासनिक मामलों के लिए कई मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। लद्दाख के लोग बरसों से एक ऐसी स्थानीय प्रशासनिक व्यवस्था की मांग कर रहे थे, जो लद्दाख की विशिष्ट सांस्कृतिक, सामाजिक और भौगोलिक परिस्थितियों के अनुरूप क्षेत्र के समग्र विकास में सहायक हो तथा सभी नीतिगत मामलों में स्थानीय लोगों की भागीदारी को यकीनी बनाती हो।
सर्दियों में सिर्फ लेह में हवाई जहाज से ही पहुंचा जा सकता है और देश के अन्य भागों के लोग चाहकर भी सर्दियों के दौरान लद्दाख नहीं पहुंच सकते। लद्दाख राजधानी से अपनी दूरी के मद्देनजर एक विशेष व्यवहार का हकदार है। सभी पहलुओं को ध्यान में रखते हुए लद्दाख के लिए एक अलग प्रशासकीय व राजस्व डिवीजन बनाने का फैसला किया गया है। लद्दाख मौजूदा समय में कश्मीर डिवीजन का हिस्सा है लेकिन अब राज्य प्रशासन ने लद्दाख को कश्मीर सम्भाग से अलग कर एक नए सम्भाग का दर्जा प्रदान कर दिया है। अब राज्य में दो नहीं बल्कि तीन सम्भाग होंगे। इसका मुख्यालय लेह में होगा।
लद्दाख को केन्द्रशासित प्रदेश बनाने की मांग भी कई बार उठाई जाती रही है। कभी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने कश्मीर समस्या से मुक्ति पाने के लिए जम्मू-कश्मीर को तीन भागों में बांटने का सुझाव दिया था। संघ का सुझाव था कि मुस्लिम बहुल कश्मीर, हिन्दू बहुल जम्मू आैर बौद्ध बहुल लद्दाख को अलग-अलग राज्य बना दिया जाना चाहिए। विश्व हिन्दू परिषद भी ऐसी मांग का समर्थन करती रही है लेकिन ऐसा करने से समूचे विश्व पर इसका एक गलत मनोवैज्ञानिक प्रभाव पड़ता, इसलिए इस प्रस्ताव को ठण्डे बस्ते में डाल दिया गया। जम्मू-कश्मीर भाजपा लद्दाख को केन्द्रशासित प्रदेश बनाने की मांग पर कायम है। लद्दाख को अलग सम्भाग बना दिए जाने के बाद अब राज्य में सियासत भी शुरू हो गई है। भाजपा को लद्दाख में फायदा हो सकता है लेकिन नेशनल कॉन्फ्रेंस और पीडीपी ने मुस्लिम वोटों के ध्रुवीकरण का कार्ड चल दिया है। सियासत का केन्द्र कश्मीर घाटी की बजाय जम्मू सम्भाग पर रहने वाला है।
नेशनल कॉन्फ्रेंस के उमर अब्दुल्ला और पीडीपी की महबूबा मुफ्ती ने लद्दाख को अलग डिवीजन का दर्जा दिए जाने का दबी जुबान से स्वागत तो किया लेकिन साथ ही जम्मू सम्भाग के राजौरी, पुंछ, रामबन, डोडा और किश्तवाड़ को नजरंदाज करने का मामला उठा दिया। यह पांचों जिले मुस्लिम बहुल हैं। पीरपंजाल और चिनाब क्षेत्र की उपेक्षा का मामला भी उठाया जा रहा है। अलगाववाद समर्थक नेताओं का कहना है कि अगर लद्दाख के पिछड़ेपन को दूर करने के लिए अलग सम्भाग बनाया गया है तो फिर रामबन, डोडा, राजौरी और पुंछ को भी डिवीजन का दर्जा दिया जाना चाहिए।
पीपुल्स कॉन्फ्रेंस के सज्जाद गनी लोन ने भी चिनाब घाटी और पीरपंजाल क्षेत्र के लोगों की समस्याओं को हल करने की मांग की है। राज्यपाल सत्यपाल मलिक पर भाजपा का एजैंडा लागू करने का आरोप लगाया जा रहा है और कहा जा रहा है कि भाजपा कश्मीर को कमजोर बना रही है। नेशनल कॉन्फ्रेंस तो चुनावों के दिनों में क्षेत्रीय स्वायत्तता का ढिंढोरा कुछ ज्यादा ही पीटती है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी कुछ दिन पहले ही लेह-लद्दाख गए थे जहां उन्होंने लद्दाख यूनिवर्सिटी और लेह हवाई अड्डे का शिलान्यास भी किया था। लद्दाख जैसे दुर्गम क्षेत्र में विकास की बयार बहनी ही चाहिए लेकिन राजनीतिक दल हर बात में सियासी मामले ढूंढ लेते हैं। अब उन्होंने जम्मू के मुस्लिम बहुल इलाकों में ध्रुवीकरण की सियासत शुरू कर दी है।
कश्मीर के मसले पर भारत की आज तक की नीति यही रही है कि वहां इतना अधिक पैसा फैंका जाता रहे, इतना ज्यादा तुष्टीकरण किया जाता रहे कि वह भारत वर्ष के प्रति नतमस्तक रहे परन्तु सारी घाटी को उतना विषाक्त पाकिस्तान ने नहीं किया जितना आंतरिक षड्यंत्रों ने किया। चाहिए तो यह था कि धारा 370 को बहुत पहले खत्म कर उस राज्य में जनसंख्या के अनुपात को सेवानिवृत्त सैनिक बसाकर ठीक किया जाता तो कश्मीरी पंडितों का घाटी से पलायन कभी नहीं होता। कश्मीर की कहानी से पूरा राष्ट्र परिचित है। घाटी में सुरक्षा बलों का ऑपरेशन ऑल आउट जारी है। आतंकवादी सरगनाओं की उम्र काफी कम हो रही है। सुरक्षा बल उन्हें ढेर कर रहे हैं। सुरक्षा बलों का लक्ष्य महान है, वह सिर्फ यह है कि घाटी में शांति की स्थापना हो। शांति होगी तो विकास होगा और विकास से ही स्थितियां बदलेंगी।