‘लेडी विद द बिन्दी’ - Latest News In Hindi, Breaking News In Hindi, ताजा ख़बरें, Daily News In Hindi

लोकसभा चुनाव 2024

पहला चरण - 19 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

102 सीट

दूसरा चरण - 26 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

89 सीट

तीसरा चरण - 7 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

94 सीट

चौथा चरण - 13 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

96 सीट

पांचवां चरण - 20 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

49 सीट

छठा चरण - 25 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

57 सीट

सातवां चरण - 1 जून

Days
Hours
Minutes
Seconds

57 सीट

दूसरा चरण - 26 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

89 सीट

‘लेडी विद द बिन्दी’

अमेरिकी अंतरिक्ष एजैंसी नासा का अंतरिक्ष यान पर्सिवरेंस रोवर मिशन ने मंगल ग्रह की धरती पर सुरक्षित उतर जाने के साथ ही अंतरिक्ष के साथ-साथ पूरी दुनिया में एक और भारतीय सितारा चमक उठा।

अमेरिकी अंतरिक्ष एजैंसी नासा का अंतरिक्ष यान पर्सिवरेंस रोवर मिशन ने मंगल ग्रह की धरती पर सुरक्षित उतर जाने के साथ ही अंतरिक्ष के साथ-साथ पूरी दुनिया में एक और भारतीय सितारा चमक उठा। भारतीय और भारतीय मूल के वैज्ञानिकों ने हमेशा ही अपनी मेघा शक्ति से लोगों को चौंकाया है। नासा के मार्स पर्सिवरेंस रोवर मिशन की सफलता के साथ ही चर्चा में आई स्वाति मोहन। इस मिशन में स्वाति मोहन ने अहम भूमिका निभाई है। उन्होंने ही नासा के कंट्रोल रूम से पर्सिवरेंस रोवर के मंगल की सतह पर ‘टच डाउन’ कंफर्म्ड की घोषणा की तो वह सोशल मीडिया पर छा गई। लोगों के आकर्षण का केन्द्र बिन्दु बनी स्वाति मोहन के माथे पर लगी बिन्दी। लोग उनकी बिन्दी के फैन हो गए। उनके माथे पर लगी बिन्दी भारतीय संस्कारों और संस्कृति का प्रतीक बन गई। बिन्दी ही उनके भारतीय होने की पहचान बन गई। सोशल मीडिया पर लोग उन्हें ‘ले​डी विद द बिन्दी’ जैसे सम्बोधन के साथ उन्हें बधाई दे रहे हैं। कुछ ने इसके लिए नासा की तारीफ की कि वहां पर मौजूद विविधता काबिले तारीफ है।
स्वाति मोहन कैलिफोर्निया स्थित नासा की जेट प्रोपेल्शन लैबोरेटरी में काम करती है। जब वह एक साल की थी तब उनके माता-पिता भारत से अमेरिका चले गए थे। स्वाति वाशिंगटन डीसी के नार्दन वर्जीनिया इलाके में पली-बढ़ी। उन्होंने मैकेनिकल और एयरोस्पेस इंजीनियरिंग में कार्नेल  विश्वविद्यालय से बी.एस. और एरोनाटिक्स में एमआईटी से पीएचडी की। वे नासा के कई मिशन का हिस्सा रह चुकी हैं। मंगल मिशन 2020 के साथ वे 2013 में इसकी शुरुआत से ही जुड़ी थी। 16 साल की उम्र तक उसका वैज्ञानिक बनने का कोई इरादा नहीं था, बल्कि वे बच्चों की डाक्टर बनना चाहती थी लेकिन जब पहली बार उन्होंने फिजिक्स की क्लास अटैंड की तो उनकी मुलाकात एक ऐसे शख्स से हुई, जिन्होंने अंतरिक्ष में उसकी दिलचस्पी बढ़ा दी।
अंतरिक्ष के रहस्य जानने के लिए मनुष्य हमेशा जिज्ञासु रहा है। वह टीवी पर धारावाहिक स्टार ट्रैक बेहद मन से देखा करती थी। उसे यह जानने में अच्छा लगता था कि पृथ्वी से करोड़ों मील दूर भी कुछ है। जब उसकी अंतरिक्ष में दिलचस्पी बढ़ी तो उनमें ब्रह्मांड खंगालने की धुन सवार हो गई। यह धुन उनकी जिन्दगी की सफलता बन गई।
नासा की कुल वर्कफोर्स में भारतीय मूल के वैज्ञानिकों की हिस्सेदारी 35 फीसदी है। भारतीय मूल की कल्पना चावला को कौन नहीं जानता। वह अंतरिक्ष यात्री और अंतरिक्ष शटल मिशन विशेषज्ञ थी, कल्पना चावला अंतरिक्ष में जाने वाली प्रथम भारतीय महिला भी थी। वे कोलबिंया अंतरिक्ष यान हादसे में मारे गए सात यात्री दल सदस्यों में से एक थी। उनके अलावा अनीता सेनगुप्ता, डा. मैया मेप्ययन, अश्विन आर वसवदादा, डा. कमलेश लुल्ला, शर्मिला भट्टाचार्य, सुनीता विलियम्स, डा. मधुलिका, गुहाथाकुर्ता, डा. सुरेश बी कुलकर्णी और डाक्टर अमिताभ घोष नासा में कार्यरत हैं और विभिन्न परियोजनाओं से जुड़े हुए हैं।
सबसे बड़ी बात यह है कि भले ही भारतीय मूल के लोगों को अमेरिकी नागरिकता मिल चुकी है लेकिन उन्होंने अपनी जड़ों को नहीं भुलाया है। यद्यपि उन्होंने अमेरिका के संविधान और संस्कृति को आत्मसात ​कर वहां के विकास में अपना योगदान दिया है लेकिन वे अपने गांव की जमीन को नहीं भूले हैं। अप्रवासी भारतीय कहीं भी चले जाएं उनमें अपने गांव, शहर के लिए कुछ न कुछ करने की ललक हमेशा जीवित रही है। ऐसे कई लोगों के नाम लिए जा सकते हैं जो रहते विदेशों में हैं लेकिन उन्होंने भारत में स्कूल-कालेज और कम्प्यूटर केन्द्र खोलने के लिए न केवल जमीनें दान दी बल्कि धन भी दिया। स्वाति मोहन की बिन्दी इस बात का प्रतीक है कि अमेरिका में रह कर भी उन्होंने भारतीयता नहीं छोड़ी। मार्स के करीब पहुंचना शायद कुछ आसान हो लेकिन सबसे मुश्किल होता है यहां रोवर को लैंड कराना। ज्यादातर मिशन इसी स्टेज पर दम तोड़ देते हैं। पर्सिवरेंस रोवर आखिरी प्रति मिनट में 12 हजार मील प्रति घंटे की रफ्तार से शून्य की गति तक पहुंचा, इसके बाद लैंडिंग की। इसकी रफ्तार को शून्य पर लाना और फिर धीरे से लैंड कराना किसी चमत्कार से कम नहीं था। स्वाति मोहन और उनकी टीम ने यह कर दिखाया और दुनिया को उन पर गर्व है।
भारतीय मूल के वैज्ञानिकों ने आधुनिक युग में पूरी दुनिया को मुट्ठी में करने की पहल कर दी है। स्वाति मोहन भारत की युवा पीढ़ी के लिए आदर्श है। भारत में प्रतिभाओं की कमी नहीं जरूरत है उन्हें तराशने की। भारत के विश्वविद्यालयों में नए-नए शोध किए जाने चा​हिए ताकि युवा पीढ़ी कुछ नया करके देश के लिए नए आयाम स्थापित कर सके। स्वाति मोहन की बिन्दी प्रेरणा दे रही है कि शिक्षा और शोध गुणवत्ता के लिए काम करने  की जरूरत है। अगर ऐसा नहीं किया गया तो हमारी युवा पीढ़ी दुनिया में चल रहे नए अनुसंधानों से अनभिज्ञ रह जाएगी।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

18 − 12 =

पंजाब केसरी एक हिंदी भाषा का समाचार पत्र है जो भारत में पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश और दिल्ली के कई केंद्रों से प्रकाशित होता है।