अभूतपूर्व आर्थिक संकट और सियासी उथल-पुथल के बाद श्रीलंका में हुए मध्यावधि संसदीय चुनावों में वामपंथी नेता अनुरा कुमारा दिसानायके के नेतृत्व वाली एनपीपी गठबंधन की जबर्दस्त जीत हुई है। दरअसल अनुरा कुमारा दिसानायके दो माह पहले ही राष्ट्रपति चुने गए थे लेकिन उन्होंने शपथ लेते ही संसद को भंग कर मध्यावधि चुनावों की घोषणा कर दी थी। इसका कारण यह था कि संसद में अनुरा कुमारा दिसानायके की पार्टी के पास बहुमत नहीं था। उनके पास केवल तीन सांसद थे। दिसानायके नहीं चाहते थे कि आर्थिक बदलाव का वादा पूरा करने में कोई बाधा आए। क्योंकि बहुमत न होने से वे अपनी नीतियां और योजनाओं को लागू करने में सक्षम नहीं थे। अब क्योंकि चुनावों में उनकी पार्टी ने बहुमत हासिल कर लिया है। इस तरह भारत के पड़ोसी देश श्रीलंका में वामपंथी सरकार ने जड़ें मजबूत कर ली हैं। दिसानायके की आंधी में सभी दूसरे दल उड़ गए हैं। कई प्रमुख चेहरे इस बार चुनावों से गायब थे। राष्ट्रपति चुनाव में दिसानायके से हारने वाले विक्रमा सिंगे 1977 के बाद पहली बार संसदीय चुनाव नहीं लड़े। गोटबाया, महिन्दा, चामल और बासिल राजपक्षे भी चुनाव मैदान में नहीं उतरे थे। आर्थिक संकट के चलते श्रीलंका में गृहयुद्ध जैसी स्थितियां पैदा हो गई थीं और आक्रोिशत जनता राष्ट्रपति आवास के भीतर घुस गई थी। तब गोटबाया राजपक्षे को भागना पड़ा था। गोटबाया राजपक्षे के बाद 75 वर्षीय विक्रमा सिंगे को नियुक्त किया गया था लेकिन आर्थिक संकट पर काबू पाने में िवफलता के चलते राष्ट्रपति चुनाव हार गए थे। हालांकि भारत ने श्रीलंका की भरपूर मदद की। गेहूं, चावल और अन्य खाद्य सामग्री तो दी ही साथ ही कर्ज से निकलने के लिए वित्तीय सहायता भी दी थी। अनुरा कुमारा दिसानायके 2022 के आर्थिक संकट के दौरान आंदोलन का प्रमुख चेेहरा बने और वह युवाओं और आम जनता की मजबूत आवाज बनकर उभरे। कौन नहीं जानता कि श्रीलंका में सत्तारूढ़ परिवारों ने चीन और अन्य वित्तीय प्रतिष्ठानों से कर्ज ले-लेकर घी पिया। अपने लिए अकूत सम्पत्ति बटोरी और जनता को भूखे मरने के लिए छोड़ दिया।
राष्ट्रपति चुनाव के दौरान दिसानायके ने जनता से बड़े-बड़े वादे किए थे, उन्होंने 'एग्जीक्यूटिव प्रेसीडेंसी' को खत्म करने का वादा किया था। ये वो सिस्टम है जिसके तहत श्रीलंका में शासन की ज्यादातर शक्तियां राष्ट्रपति को दी गई हैं। 1978 में राष्ट्रपति जे.आर. जयावर्धने जब सत्ता में थे तब पहली बार 'एग्जीक्यूटिव प्रेसीडेंसी' सिस्टम लागू किया गया। बीते कई सालों से श्रीलंका में इस सिस्टम को खत्म करने की मांग की जा रही थी लेकिन कोई भी दल ऐसा करने की हिम्मत नहीं दिखा पाया। देश के आर्थिक और राजनीतिक संकट के लिए भी लंबे समय से इस सिस्टम को ही जिम्मेदार माना जा रहा है। वहीं दिसानायके ने सरकारी तंत्र से भ्रष्टाचार और रानिल विक्रमा सिंघे की सरकार में आईएमएफ से कर्ज लेने के लिए किए गए समझौते को खत्म करने का भी वादा किया था।
श्रीलंका में वामपंथी दिसानायके की सरकार का आना भारत के लिए अच्छी खबर नहीं है। अनुरा कुमारा दिसानायके की पार्टी एनपीपी का भारत के प्रति इतिहास बहुत जटिल है। वे मार्क्सवादी विचारधारा वाले नेता हैं और उनकी पार्टी भारत विरोधी भावनाओं को भड़काने के लिए जानी जाती है। अनुरा कुमारा दिसानायके की चीन से करीबी जगजाहिर है। एकेडी को चीन का काफी करीबी माना जाता है। दिसानायके की जीत चीन के लिए मौके की तरह है। क्योंकि चीन लगातार श्रीलंका देश में अपनी उपस्थिति बढ़ाने की कोशिश कर रहा है। श्रीलंका पहले ही सामरिक रूप से महत्वपूर्ण हम्बनटोटा बंदरगाह को 99 साल की लीज पर बीजिंग को सौंप चुका है। लंबे समय से श्रीलंका पर नजर रखने वाले आर. भगवान सिंह का मानना है कि अनुरा कुमारा दिसानायके की जीत नई दिल्ली के लिए एक चुनौती है। क्योंकि दिसानायके के नेतृत्व वाली श्रीलंका का स्वाभाविक सहयोगी स्पष्ट रूप से चीन होगा। अनुरा कुमार दिसानायके का जो इतिहास रहा है उसे देखकर समझा जा सकता है कि उनका झुकाव भारत कम और चीन की ओर अधिक होगा। दिसानायके को 1987 में जेवीपी के भारतीय शांति सेना के खिलाफ विद्रोह के दौरान प्रसिद्धि मिली थी। उस वक्त भारतीय सेना लिट्टे यानी तमिल ईलम के लिबरेशन टाइगर्स का सफाया करने श्रीलंका में उतरी थी। दिसानायके की पार्टी जेवीपी ने 1987 के भारत-श्रीलंका समझौते का विरोध किया था, जिस पर तत्कालीन श्रीलंका के राष्ट्रपति जेआर जयवर्धने और भारतीय प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने हस्ताक्षर किए थे।
श्रीलंका भारत के लिए सामरिक और रणनीतिक रूप से बहुत महत्व रखता है। तमिलों की संख्या भी अच्छी खासी है। भारत शुरू से ही तमिल हितों की पैरवी करता आया है। भारत तमिलों की सत्ता में भागीदारी का समर्थन करता है। भारत श्रीलंका में कई प्रोजैक्टों पर काम कर रहा है। यह भी सच्चाई है कि अनुरा कुमारा दिसानायके के लिए भारत को पूरी तरह से नजरंदाज करना मुश्किल होगा। देखना होगा कि दिसानायके भारत के साथ बेहतर संबंध बनाए रखते हैं या नहीं। उन्होंने स्वयं यह कहा था कि श्रीलंका चीन और भारत के बीच सैंडविच नहीं बनना चाहता। भारत से बेहतर रिश्ते बनाने के लिए उन्हें संतुलित रवैया अपनाना होगा। यह भी देखना होगा कि वे श्रीलंका को आर्थिक कंगाली से किस तरह से बाहर निकालते हैं।
आदित्य नारायण चोपड़ा
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